ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 10
अपामी॑वा॒मप॒ स्रिध॒मप॑ सेधत दुर्म॒तिम् । आदि॑त्यासो यु॒योत॑ना नो॒ अंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठअप॑ । अमी॑वाम् । अप॑ । स्रिध॑म् । अप॑ । से॒ध॒त॒ । दुः॒ऽम॒तिम् । आदि॑त्यासः । यु॒योत॑न । नः॒ । अंह॑सः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अपामीवामप स्रिधमप सेधत दुर्मतिम् । आदित्यासो युयोतना नो अंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठअप । अमीवाम् । अप । स्रिधम् । अप । सेधत । दुःऽमतिम् । आदित्यासः । युयोतन । नः । अंहसः ॥ ८.१८.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 10
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(आदित्यासः) हे विद्यावेत्तारः ! (अमीवाम्, अप) रोगमपनयत (स्रिधम्, अप) बाधकान् अपास्यत (दुर्मतिम्) दुर्बुद्धिम् (अपसेधत) अपगमयत (नः) अस्मान् (अंहसः) पापात् (युयोतन) पृथक्कुरुत ॥१०॥
विषयः
पुनः प्रार्थना विधीयते ।
पदार्थः
हे आदित्यासः=आदित्याः=बुद्धिपुत्रा मनुष्याः । अमीवाम्=रोगम् । अपसेधत=पृथक् कुरुत । स्रिधम्=बाधकं शत्रुं विघ्नं वा । अपसेधत । दुर्मतिम्=दुर्बुद्धिमपि । अपसेधत । तथा । नोऽस्मान् । अंहसः=पापादपि । युयोतन=पृथक् कुरुत ॥१० ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(आदित्यासः) हे विविध विद्याओं को जाननेवाले ! (अमीवाम्, अप) आप हर प्रकार के रोगों को दूर करें (स्रिधम्, अप) कर्मघाती को दूर करें (दुर्मतिम्) दूषित बुद्धि को (अपसेधत) दूर करें (नः) हमको (अंहसः) पाप से (युयोतन) मुक्त करें ॥१०॥
भावार्थ
हे सब विद्याओं के ज्ञाता परमात्मन् ! आप हमसे शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकारे के रोग दूर करें, हमारे कामों में विघ्नकारक पुरुषों को हमसे सदा पृथक् रखें और हमें पवित्र बुद्धि दें, जिससे हम सब पापों से दूर रहकर उन्नतिशील हों ॥१०॥
विषय
पुनः प्रार्थना का विधान करते हैं ।
पदार्थ
(आदित्यासः) हे बुद्धिपुत्र आचार्य्यो ! तथा विद्वानों ! आप (अमीवाम्) रोग को (अपः+सेधत) मनुष्यसमाज से दूर कीजिये (स्रिधम्) बाधक विघ्न और शत्रु को (अप) दूर कीजिये (दुर्मतिम्) दुर्बुद्धि को (अप) दूर कीजिये । तथा (नः) हम साधारणजनों को (अंहसः) पाप क्लेश और दुर्व्यसन आदि से (युयोतन) पृथक् करें ॥१० ॥
भावार्थ
हे मनुष्यों ! तुम सद्बुद्धि उपार्जन करो, जिससे तुम सब प्रकार सुखी होगे ॥१० ॥
विषय
विद्वानों से अज्ञान और पापनाश की प्रार्थना।
भावार्थ
हे ( आदित्यासः ) उत्तम माता पिता गुरु आदि के पुत्र ! एवं हे पुत्रों के उत्तम पिता मातादि गुरुजनो ! आप लोग ( अमीवाम् अप ) रोग को दूर करो । ( स्त्रिधम् ) नाशकारी ( दुर्मतिम् ) दुष्टमति को ( अप सेधत ) दूर करो। और ( नः अंहसः युयोतन ) हमारे पापों को दूर करो । इति षड्विंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
आदित्यासः
पदार्थ
हे (आदित्यासः) = बुद्धि व स्वास्थ के देवो ! (अमीवाम्) = रोगों को (अप) = दूर करो। (स्त्रिधम् अप) = दुःखों को दूर करो। (दुर्मतिम् अप) = दुर्बुद्धि को दूर करो। (नः अंहसः युयोतन) = हमारे पापों को दूर करो।
भावार्थ
भावार्थ- हम रोग, दुःख, दुर्बुद्धि तथा पापों से बचें।
इंग्लिश (1)
Meaning
May the Adityas, powers of light and life in nature and humanity, drive away all disease of body and mind and keep off negativities of thought and intelligence from us. May the children of imperishable divinity keep us safe, far away from the onslaughts of sin and adversity.
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! तुम्ही सद्बुद्धीचे उपार्जन करा. ज्यामुळे तुम्ही सर्व प्रकारे सुखी व्हाल ॥१०॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal