ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 6
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - आदित्याः
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
अदि॑तिर्नो॒ दिवा॑ प॒शुमदि॑ति॒र्नक्त॒मद्व॑याः । अदि॑तिः पा॒त्वंह॑सः स॒दावृ॑धा ॥
स्वर सहित पद पाठअदि॑तिः । नः॒ । दिवा॑ । प॒शुम् । अदि॑तिः । नक्त॑म् । अद्व॑याः । अदि॑तिः । पा॒तु॒ । अंह॑सः । स॒दाऽवृ॑धा ॥
स्वर रहित मन्त्र
अदितिर्नो दिवा पशुमदितिर्नक्तमद्वयाः । अदितिः पात्वंहसः सदावृधा ॥
स्वर रहित पद पाठअदितिः । नः । दिवा । पशुम् । अदितिः । नक्तम् । अद्वयाः । अदितिः । पातु । अंहसः । सदाऽवृधा ॥ ८.१८.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अद्वयाः) कामक्रोधरहिताः (अदितिः) विद्या (नः, पशुम्) अस्माकं बन्धनकर्म (दिवा) दिने (अदितिः) सैव (नक्तम्) रात्रौ रक्षतु (सदावृधा) सदा वर्धमानरक्षया (अदितिः) विद्या (अहंसः, पातु) पापात् रक्षतु ॥६॥
विषयः
बुद्धिः प्रशस्यते ।
पदार्थः
अद्वयाः=अद्वितीयाः=साहाय्यरहिताः । अदितिः=खण्डनीया मतिः । नोऽस्माकम् । पशुम्=गवादिकमात्मानं च । दिवा=दिने । पातु=रक्षतु । नक्तम्=रात्रावपि । सादितिर्नः पातु । सदावृधा=सदावर्धनशीला । अदितिः । अंहसः=पापादपि अस्मान् पातु ॥६ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अद्वयाः) कामक्रोधरूप द्वैतरहित (अदितिः) अदीना विद्या (नः, पशुम्) हमारे बन्धन करनेवाले कर्मों की (दिवा) दिन में तथा (अदितिः) वह अदिति ही (नक्तम्) रात्रि में रक्षा करे (सदावृधा) प्रतिदिन बढ़ती हुई रक्षा से (अदितिः) वह विद्या (अंहसः, पातु) पाप से निवृत्त करे ॥६॥
भावार्थ
वह विद्या पापों से निवृत्त करनेवाली तथा रात-दिन हमारी रक्षा करनेवाली है, या यों कहो कि विद्या पुरुष को सब द्वन्द्वों से रहित करके अभयपद=निर्वाण पद को प्राप्त कराती है अर्थात् राग द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा मानापमानादि द्वन्द्वों की निवृत्ति द्वारा पुरुष को उच्च भावोंवाला बनाती है। अधिक क्या भवसागर की लहरों से वही पुरुष पार हो सकता है, जो एकमात्र विद्या का आश्रय लेकर तितीर्षु बनता है ॥६॥
विषय
बुद्धि की प्रशंसा दिखाते हैं ।
पदार्थ
(अद्वयाः) साहाय्यरहिता वह (अदितिः) विमलबुद्धि (नः) हमारे (पशुम्) गवादि पशुओं और आत्मा की (दिवा) दिन में (पातु) रक्षा करें (नक्तम्) रात्रि में भी (अदितिः) वह अदिति पाले (सदावृधा) सदा बढ़ानेवाली (अदितिः) विमलबुद्धि (अंहसः) पाप से भी हमको (पातु) बचावे ॥६ ॥
भावार्थ
सद्बुद्धि मनुष्य की सर्वदा रक्षा करती है, अतः हे मनुष्यों ! उसका उपार्जन सर्वोपाय से करो ॥६ ॥
विषय
विदुषी माता के कर्त्तव्य।
भावार्थ
( अद्वयाः ) अद्वितीय वा बाहर भीतर दोनों में दो भाव न रखती हुई, ( अदितिः ) विदुषी माता ( नः ) हमारे ( पशुम् ) पशुओं की रक्षा करे। वह ( अदितिः ) अखण्ड और अदीन राजशक्ति ( नक्तम् ) रात को भी ( पातु ) पालन करे। वह ( सदावृधा ) प्रजाजनों को बालकवत् पुष्ट करने वाली होकर ( नः अंहसः पातु ) हमें पाप से बचावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
'अद्वयाः' अदितिः
पदार्थ
[१] 'अदिति' स्वास्थ्य की देवता है । स्वस्थ पुरुष काम-क्रोध आदि का भी शिकार नहीं होता यह अदिति 'अद्वया: ' है, 'अन्दर कुछ और बाहिर कुछ इस प्रकार के कपट से वह रहित है । यह (अदितिः) = स्वास्थ्य की देवता (दिवा) = दिन में (नः) = हमारे इन (पशुम्) = 'कामः पशुः क्रोधः पशुः' काम-क्रोध आदि पशुतुल्य वृत्तियों को (पातु) = रक्षित करे, जैसे शेर को पिञ्जरे में बन्द रखते हैं, इसी प्रकार इन्हें नियन्त्रण में रखे। (अदितिः) = यह स्वास्थ्य की देवता (अद्वया:) = हमें कपटरहित बनाती हुई (नक्तम्) = रात्रि में (पातु) = हमारे पशुओं का रक्षण करे, इन्हें बद्ध रखे। [२] (सदावृधा) = सदा (पशुः) = वृद्धि का कारण होती हुई यह (अदितिः) = स्वास्थ्य की देवता (अंहसः पातु) = हमें पाप से बचाये।
भावार्थ
भावार्थ- हम स्वस्थ बनें। यह स्वास्थ्य हमारे काम-क्रोध को दिन-रात नियन्त्रण में रखे और हमें पापों की ओर न जाने दे।
इंग्लिश (1)
Meaning
May Aditi, Mother Nature, her intelligence, energy and stability, preserve, protect and promote our cattle, property and perception day and night. May the light of divinity, always promotive of positivity, save us from sin.
मराठी (1)
भावार्थ
सद्बुद्धी माणसाचे सदैव रक्षण करते. त्यासाठी हे माणसांनो! तिचे सदैव उपार्जन करा. ॥६॥
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