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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 11
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - आदित्याः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यु॒योता॒ शरु॑म॒स्मदाँ आदि॑त्यास उ॒ताम॑तिम् । ऋध॒ग्द्वेष॑: कृणुत विश्ववेदसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒योत॑ । शरु॑म् । अ॒स्मत् । आ । आदि॑त्यासः । उ॒त । अम॑तिम् । ऋध॑क् । द्वेषः॑ । कृ॒णु॒त॒ । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युयोता शरुमस्मदाँ आदित्यास उतामतिम् । ऋधग्द्वेष: कृणुत विश्ववेदसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युयोत । शरुम् । अस्मत् । आ । आदित्यासः । उत । अमतिम् । ऋधक् । द्वेषः । कृणुत । विश्वऽवेदसः ॥ ८.१८.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (आदित्यासः) हे विद्वांसः ! (अस्मत्, आ) भवन्तोऽस्मत् (शरुम्, उत, अमतिम्) हिंसकम् अज्ञानं च (युयोत) पृथक् कुरुत (विश्ववेदसः) हे सर्वज्ञाः ! (द्वेषः) द्वेष्टॄन् (ऋधक्, कृणुत) पृथक्कुरुत ॥११॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्त्तते ।

    पदार्थः

    हे आदित्यासः=आदित्या बुद्धिपुत्रा आचार्य्याः । यूयम् । अस्मद्=अस्मत्तः । शरुम्=हिंसकम् । युयोत=पृथक् कुरुत । उत=अपि च । अमतिम्=दुर्मतिं मूर्खतां वा । युयोत । हे विश्ववेदसः=विश्वज्ञानाः सर्वज्ञाः । द्वेषः=द्वेष्टॄन् । ऋधक्=पृथक् । कृणुत=कुरुत ॥११ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (आदित्यासः) हे विद्वानो ! (अस्मत्, आ) आप हमसे (शरुम्, उत, अमतिम्) हिंसक और अज्ञान को (युयोत) पृथक् करें (विश्ववेदसः)ठे सर्वज्ञाता ! (द्वेषः) द्वेष रखनेवालों को (ऋधक्, कृणुत) अलग करें ॥११॥

    भावार्थ

    हे सब विद्याओं के ज्ञाता विद्वान् पुरुषो ! आप विद्याप्रचार द्वारा हमारे अज्ञान को निवृत्त करें, ताकि हम हिंसक स्वभाववाले न होकर मित्र हों, न हम किसी से द्वेष करें और न हमारे द्वेषी उत्पन्न हों अर्थात् द्वेष करनेवालों को हमसे सदा पृथक् करें ॥११॥

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    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    (आदित्यासः) हे आचार्य्यो ! आप (अस्मद्+आ) हम लोगों के समीप से (शरुम्) हिंसक को (युयोत) पृथक् कीजिये । (उत) और (अमतिम्) मूर्खता या दुर्बुद्धि या दुर्भिक्ष आदि को भी दूर कीजिये (विश्ववेदसः) हे सर्वज्ञ आदित्यों ! (द्वेषः) द्वेष करनेवालों को भी (ऋधग्+कृणुत) पृथक् कीजिये ॥११ ॥

    भावार्थ

    आचार्य्य और ज्ञानी पुरुषों को उचित है कि वे जहाँ रहें, वहाँ अज्ञान का नाश और सुख की वृद्धि किया करें ॥११ ॥

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    विषय

    विद्वानों से अज्ञान और पापनाश की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे ( विश्व-वेदसः ) समस्त ज्ञानों के जानने वाले ( आदित्यासः ) आदित्यवत् तेजस्वी एवं संसार के समस्त पदार्थों से ज्ञान और उपयोगी पदार्थों के लेने वाले पुरुषो ! आप लोग ( अस्मत् शरुं ) हम से 'शरु' अर्थात् हिंसक और हिंसाभाव ( उत ) तथा ( अमतिम् ) मूर्ख और मूर्खता को ( युयोत ) पृथक् करो। और ( द्वेषः ) द्वेष को भी ( ऋधक् कृणुत ) पृथक् करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥

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    विषय

    विश्ववेदसः

    पदार्थ

    हे (विश्ववेदसः) = सर्वज्ञ प्रभो ! आप (अस्मत) = हमारे (शरुम्) = हिंस्र भाव को (अमतिम्) = निर्बुद्धि को युयोत दूर करो (उत) = तथा (द्वेषः) = द्वेष को (ऋधक् कृणुत) = अलग करो।

    भावार्थ

    भावार्थ - वह सर्वज्ञ हमारे हिंसक भाव, निर्बुद्धि तथा द्वेषता को दूर करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the Adityas, divine harbingers of light and life, drive away from us all forms of violence and enmity. May they ward off all those stupid fools who lack understanding and refuse to think positively. May the pioneers of enlightenment who know the world and all its ways eliminate hate and malignity from the world of humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आचार्य व ज्ञानी पुरुष जेथे जातील तेथे त्यांनी अज्ञानाचा नाश करावा व सुखाची वृद्धी करावी ॥११॥

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