Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 22 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 22/ मन्त्र 10
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - सतःपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    याभि॑: प॒क्थमव॑थो॒ याभि॒रध्रि॑गुं॒ याभि॑र्ब॒भ्रुं विजो॑षसम् । ताभि॑र्नो म॒क्षू तूय॑मश्वि॒ना ग॑तं भिष॒ज्यतं॒ यदातु॑रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याभिः॑ । प॒क्थम् । अव॑थः । याभिः॑ । अध्रि॑ऽगुम् । याभिः॑ । ब॒भ्रुम् । विऽजो॑षसम् । ताभिः॑ । नः॒ । म॒क्षु । तूय॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । आ । ग॒त॒म् । भि॒ष॒ज्यत॑म् । यत् । आतु॑रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याभि: पक्थमवथो याभिरध्रिगुं याभिर्बभ्रुं विजोषसम् । ताभिर्नो मक्षू तूयमश्विना गतं भिषज्यतं यदातुरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याभिः । पक्थम् । अवथः । याभिः । अध्रिऽगुम् । याभिः । बभ्रुम् । विऽजोषसम् । ताभिः । नः । मक्षु । तूयम् । अश्विना । आ । गतम् । भिषज्यतम् । यत् । आतुरम् ॥ ८.२२.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 22; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (आश्विना) हे अश्विनौ ! (याभिः) याभिरोषधिभिः (पक्थम्, अवथः) परिपक्वशरीरो यो दृश्यते तं रक्षथः (याभिः, अध्रिगुम्) याभिश्च अधृतगमनं बलातिशयाच्छीघ्रगामिनं रक्षथः (याभिः) याभिश्च (बभ्रुम्, विजोषसम्) विशेषेण जोषसम्=सर्वप्राणिप्रियंकरम् अन्नादिभिर्भरणशीलं जनं च अवथः (ताभिः) ताभिरेवोषधीभिः (नः, यत्, आतुरम्) अस्मासु यो रुग्णस्तम् (मक्षु, भिषज्यतम्) शीघ्रं चिकित्सेथाम्, तदर्थं च (तूयम्, आगतम्) क्षिप्रमागच्छतम् ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषयः

    पुनः राजकर्माणि शिक्षते ।

    पदार्थः

    हे अश्विनौ=राजानौ ! याभिरूतिभिः=रक्षाभिः । युवाम् । पक्वम्=शस्त्रेषु व्यवहारादिषु च परिपक्वं निपुणं नरम् । अवथः=रक्षथः । याभी रक्षाभिः । अध्रिगुम्=अधृतगमनं पङ्गुम् । अवथः । याभी रक्षाभिः । बभ्रुम्=अनाथभर्तारम् । अवथः । तथा । विजोषसम्= अविशेषेण प्रीतिसम्पन्नं पुरुषम् । अवथः । ताभिरूतिभिः । नोऽस्मान् रक्षितुं । मक्षु=शीघ्रम् । तूयम्=शीघ्रमेव । आगतम्=आगच्छतम् । तथा । यद् यदि कश्चिदातुरो रोगी तमातुरम् । भिषज्यतम्=चिकित्सतम् ॥१० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे व्यापक गतिवाले ! (याभिः) जिन औषधों से आप (पक्थम्, अवथः) परिपक्व शरीरवालों की रक्षा करते हैं (याभिः) और जिनसे (अध्रिगुम्) शीघ्रगतिवाले अर्थात् जिनकी गति को कोई पा नहीं सकता, ऐसे बलिष्ठ पुरुषों की रक्षा करते हैं (याभिः) जिन ओषधियों से (बभ्रुम्, विजोषसम्) विशेष करके सब प्राणियों पर प्रेम रखनेवाले तथा सब जीवों का भरण-पोषण करनेवाले मनुष्यों की रक्षा करते हैं, (ताभिः) उन्हीं ओषधियों से (नः, यत्, आतुरम्) हम लोगों में जो रोगग्रस्त हैं, उसकी (मक्षु, भिषज्यतम्) शीघ्र चिकित्सा करें और उसके लिये (तूयम्, आगतम्) शीघ्र ही आएँ ॥१०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में रोगनिवृत्ति अर्थात् रोगियों को निरोग करने के लिये न्यायाधीश तथा सेनाधीश से प्रार्थना कथन की गई है कि आप वृद्ध, युवा तथा बालकों की चिकित्सा का पूर्ण प्रबन्ध करें, ताकि सब नीरोगावस्था में रहकर अपने कर्तव्य का पालन करते रहें, या यों कहो कि सब प्रजाजन उद्योगी होकर जीवन व्यतीत करें, निरुद्यमी होकर नहीं ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुनः राजकर्मों की शिक्षा देते हैं ।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे राजन् तथा मन्त्रिन् ! (याभिः) जिन रक्षाओं से आप (पक्वम्) शास्त्रों तथा व्यवहारों में परिपक्व और निपुण जन की (अवथः) रक्षा करते हैं, (याभिः) जिन रक्षाओं से (अध्रिगुम्) चलने में असमर्थ पङ्गु की रक्षा करते हैं, (याभिः) जिन रक्षाओं से (बभ्रुम्) अनाथों के भरण-पोषण करनेवाले की तथा (विजोषसम्) विशेषप्रीतिसम्पन्न पुरुष की रक्षा करते हैं, (ताभिः) उन रक्षाओं से (नः) हमारी रक्षा करने को (मक्षु) शीघ्र (तूयम्) शीघ्र ही (आगतम्) आवें तथा (यद्) यदि कोई रोगी हो, तो उस (आतुरम्) आतुर पुरुष की (भिषज्यतम्) दवा कीजिये ॥१० ॥

    भावार्थ

    महामात्य राजा सब प्रकार के मनुष्यों=अन्ध, बधिर, पङ्गु इत्यादिकों और प्राणियों की रक्षा करे-करावे तथा सर्वत्र औषधालय स्थापित कर रोगियों की चिकित्सा का प्रबन्ध करे ॥१० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रोगी की सेवा का उपदेश।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) वेगवान्, अश्व स्थादि के स्वामी जनो ! आप दोनों ( याभिः ) जिन उपायों से ( पक्थम् अवथः ) पके अन्न की रक्षा करते हो, और ( याभिः ) जिन उपायों से ( अ ध्रिगुं अवथः ) अस्थिर रूप से गमन करने वाले, निर्बल बालकवत् दीन जन की रक्षा करते हो, और ( याभिः ) जिन उपायों और शक्तियों से ( वि-जोषसम् ) विशेष प्रीति युक्त ( बभ्रुं ) भरण पोषणकारी माता पितावत् पालक एवं सेवक जन की रक्षा करते हो, ( ताभिः ) इन सब शक्तियों वा साधनों सहित ( नः ) हमें ( मक्षु तूयम् ) शीघ्रातिशीघ्र ( आ गतम् ) आओ और ( यत् आतुरम् ) जो पीड़ित जन हो उसके ( भिषज्यतम् ) दुःखों को दूर करो। इति षष्टो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृत पंक्ति:। ४, १० सतः पंक्तिः। २४ भुरिक पंक्ति:। ८ अनुष्टुप्। ९,११, १७ उष्णिक्। १३ निचुडुष्णिक्। १५ पादनिचृदुष्णिक्। १२ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भिषज्यतं यद् आतुरम्

    पदार्थ

    [१] (याभिः) = जिन रक्षणों के द्वारा (पक्थम्) = ज्ञानाग्नि में अपने को परिपक्व करनेवाले को आप (अवथः) = रक्षित करते हो। (याभिः) = जिन रक्षणों से अध्रिगुम्-अधृत गमनवाले, न्याय मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़नेवाले व्यक्ति का आप रक्षण करते हो। और (याभिः) = जिन रक्षणों से (बभ्रुम्) = भरण करनेवाले को पालन-पोषण करनेवाले को व (विजोषसम्) = विशिष्ट प्रीति से कर्त्तव्यों का सेवन करनेवाले को रक्षित करते हो। हे (अश्विना) = प्राणापानो! (ताभिः) = उन रक्षणों के साथ (नः) = हमें (मक्षू) = शीघ्र, (तूयम्) = त्वरा के साथ (आगतम्) = प्राप्त होवो । प्राणापान ही वस्तुतः हमें 'पक्थ-अध्रिगु- बभ्रु व विजोषस' बनाते हैं। [२] हे प्राणापानो! आप हमें प्राप्त होवो और (यद्) = जो भी हमारा अंग-प्रत्यंग (आतुरम्) = रुग्ण हो, उसे (भिषज्यतम्) = चिकित्सित करो। प्राणापान ही सर्वमहान् वैद्य हैं, ये सब रोगों को दूर करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना से हम 'परिपक्व ज्ञानवाले, न्याय मार्ग पर आगे बढ़नेवाले, ठीक से भरण-पोषण करनेवाले व प्रीतिपूर्वक कर्त्तव्य का सेवन करनेवाले' बनते हैं। ये प्राणापान सब रुग्ण अंगों को नीरोग बनाते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, rulers and administrators of the social system of health and security, come with those protections and securities by which you protect and maintain the healthy veterans of knowledge and practical action, by which you assist the disabled and help the support system for the weak and the destitute. Come fast without delay to sustain the weak and suffering in a state of emergency and provide them medical aid.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    अमात्यासह राजाने सर्व प्रकारच्या माणसांचे अंध, बधिर, अपंग इत्यादी प्राण्यांचे रक्षण करावे-करवावे व सगळीकडे औषधालय स्थापन करून रोग्यांच्या चिकित्सेचा प्रबंध करावा. ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top