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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 6
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - अग्निः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अग्ने॑ या॒हि सु॑श॒स्तिभि॑र्ह॒व्या जुह्वा॑न आनु॒षक् । यथा॑ दू॒तो ब॒भूथ॑ हव्य॒वाह॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । या॒हि । सु॒श॒स्तिऽभिः॑ । ह॒व्या । जुह्वा॑नः । आ॒नु॒षक् । यथा॑ । दू॒तः । ब॒भूथ॑ । ह॒व्य॒ऽवाह॑नः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने याहि सुशस्तिभिर्हव्या जुह्वान आनुषक् । यथा दूतो बभूथ हव्यवाहनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । याहि । सुशस्तिऽभिः । हव्या । जुह्वानः । आनुषक् । यथा । दूतः । बभूथ । हव्यऽवाहनः ॥ ८.२३.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अग्ने) हे संग्रामवेत्तः ! त्वम् (यथा) यतः (हव्यवाहनः, दूतः, बभूथ) प्रजाभ्यो भागधेयाहरणाय सम्राजो दूतो भवति अतः (सुशस्तिभिः) प्रजानां शोभनस्तुतिभिः (हव्या, जुह्वानः) हव्यानि प्रयच्छन् (याहि, आनुषक्) अनुषक्तः सन् याहि ॥६॥

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    विषयः

    तस्य स्तुतिं दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे अग्ने=सर्वाधार ! आनुषग्=आनुषक्तं यथा भवति तथा । हव्या=हव्यानि । जुह्वानः=स्वयमेव । जुह्वत् । प्रशस्तिभिः=स्तोत्रैः सह । याहि । हे ईश ! यथास्माकं त्वं हव्यवाहनः । तथा दूतोऽपि । बभूथ ॥६ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे संग्रामवेत्ता विद्वान् ! आप (यथा) जो (हव्यवाहनः, दूतः, बभूथ) प्रजाओं से राजभाग आहरण करने के लिये सम्राट् के दूत सदृश हैं, इसलिये (सुशस्तिभिः) शोभन प्रार्थनाओं से (हव्या, जुह्वानः) प्रजाओं को हव्यपदार्थ प्रदान करते हुए (आनुषक्, याहि) सबकी रक्षा करते हुए भ्रमण करें ॥६॥

    भावार्थ

    भाव यह है कि संग्रामवेत्ता विद्वान् सम्राट् के दूतसदृश होते हैं, जो प्रजाओं से राजभाग लेते हैं, या यों कहो कि जिस प्रकार शिक्षा, कल्प तथा व्याकरणादि वेद के अङ्ग हैं, इसी प्रकार परा अपरा विद्यावेत्ता विद्वान् सम्राट् के अङ्ग कहलाते हैं, इसलिये सम्राट् को उचित है कि उक्त विद्वान् उत्पन्न करके सुरीति तथा सुनीति का प्रचार करे, ताकि प्रजा में सुव्यवस्था उत्पन्न होकर प्रजागण सदैव धर्मपरायण हों और वे विद्वान् सब प्रजाओं की रक्षा करते हुए राजभाग को ग्रहण करें ॥६॥

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    विषय

    उसकी स्तुति दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे सर्वाधार ! (आनुषक्) तू मानो आसक्त होकर (हव्या+जुहानः) हव्य पदार्थों को स्वयं होमता हुआ (प्रशस्तिभिः) नाना स्तुतियों के साथ (याहि) स्तुतिपाठकों के गृह पर जा । हे ईश ! (यथा) जैसे हम लोगों का तू (हव्यवाहनः) हव्य पदार्थों को वहन करनेवाला है । (दूतः+बभूथ) वैसे तू हम लोगों का दूत भी है । अर्थात् तू अपनी आज्ञाओं को दूत के समान हम लोगों से अन्तःकरण में कहता है ॥६ ॥

    भावार्थ

    दूत=ईश्वर दूत इसलिये है कि वह अपना सन्देशा हम लोगों के निकट पहुँचाता है और हव्यवाहन इसलिये है कि उसी का यह महान् प्रबन्ध है कि वस्तु एक स्थान से दूसरे स्थान में जाती रहती है ॥६ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में अग्निवत् राजा और विद्वानों का वर्णन। उस के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    जिस प्रकार अग्नि ( सुशक्तिभिः हव्या आनुषक् जुह्वानः ) उत्तम वेद-स्तुतियों सहित उत्तम हव्यों का ग्रहण करता हुआ (दूतः) तापकारी होकर (हव्य-वाहनः भवति) हव्य, चरु आदि पदार्थों को दूर २ तक पहुंचाने में समर्थ होता है उसी प्रकार हे (अग्ने) राजन् ! विद्वन् ! तू भी ( सु-शक्तिभिः ) उत्तम शासनों द्वारा ( आनुषक् ) निरन्तर ( हव्या जुह्वानः ) राजा के ग्रहणयोग्य करों और विद्वानों के ग्राह्य उत्तम अन्नादि पदार्थों को लेता हुआ ( दूतः यथा ) दूत, संदेश हर के समान ( हव्य वाहनः बभूथ ) ग्राह्य बचन और ज्ञान को पहुंचाने वाला होता है । वह तू ( याहि ) हमें प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:—१, ३, १०, १४—१६, १९—२२, २६, २७ निचृदुष्णिक्। २, ४, ५, ७, ११, १७, २५, २९, ३० विराडुष्णिक्। ६, ८, ९, १३, १८ उष्णिक्। १२, २३, २८ पादनिचृदुष्णिक्। २४ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    दूतः-हव्यवाहनः

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! आप (सुशस्तिभिः) = उत्तम ज्ञान के शंसनों के साथ (याहि) = हमें प्राप्त होइये, हम आपकी उपासना करें और हृदयस्थ आप से उत्तम प्रेरणात्मक ज्ञानों को प्राप्त करें। आप हमारे लिये (आनुषक्) = निरन्तर (हव्या जुह्वान:) = हव्य पदार्थों के देनेवाले हों। [२] हे प्रभो ! आप ऐसा अनुग्रह करिये (यथा) = जिस से आप हमारे लिये (दूतः) = ज्ञान के सन्देश को देनेवाले व (हव्य वाहनः) = हव्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु के उपासक बनें। प्रभु हमारे लिये ज्ञान के सन्देश को प्राप्त करायेंगे और हव्य [पवित्र] पदार्थों के देनेवाले होंगे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Go, Agni, with the hymns of adoration, constantly receiving, returning, and transmitting the holy materials of yajna to the divinities as, like a messenger, you are the carrier of fragrance of the havi offered into the vedi.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    दूत = ईश्वर दूत यासाठी आहे की, तो आपला संदेश आमच्यापर्यंत पोहोचवितो व हव्यवाहन यासाठी आहे की, त्याचाच हा सारा महान प्रबंध आहे की, एक वस्तू एक स्थानाहून दुसऱ्या स्थानी जाते. ॥६॥

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