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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 42/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नाभाकः काण्वः देवता - वरुणः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒मां धियं॒ शिक्ष॑माणस्य देव॒ क्रतुं॒ दक्षं॑ वरुण॒ सं शि॑शाधि । ययाति॒ विश्वा॑ दुरि॒ता तरे॑म सु॒तर्मा॑ण॒मधि॒ नावं॑ रुहेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माम् । धिय॑म् । शिक्ष॑माणस्य । दे॒व॒ । क्रतु॑म् । दक्ष॑म् । व॒रु॒ण॒ । सम् । शि॒शा॒धि॒ । यया॑ । अति॑ । विश्वा॑ । दुः॒ऽइ॒ता । तरे॑म । सु॒ऽतर्मा॑णम् । अधि॑ । नाव॑म् । रु॒हे॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमां धियं शिक्षमाणस्य देव क्रतुं दक्षं वरुण सं शिशाधि । ययाति विश्वा दुरिता तरेम सुतर्माणमधि नावं रुहेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमाम् । धियम् । शिक्षमाणस्य । देव । क्रतुम् । दक्षम् । वरुण । सम् । शिशाधि । यया । अति । विश्वा । दुःऽइता । तरेम । सुऽतर्माणम् । अधि । नावम् । रुहेम ॥ ८.४२.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 42; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Varuna, self-refulgent lord of vision and omniscience, a seeker of light and wisdom as I am, pray sharpen, energise and confirm my intelligence, will and expertise by which we may ride on the efficient ark of navigation and cross over all the evils and difficulties of the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे देवा! बुद्धी, बल व क्रियाशक्ती हे तिन्ही आम्हाला दे. ज्यामुळे आम्ही पाप इत्यादी दु:खातून तरून विज्ञानरूपी नौकेवर चढून तुझ्याजवळ पोचू शकू. ॥३॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे वरुणदेव ! शिक्षमाणस्य=स्वात्मानं परिश्रमे नियुञ्जानस्य । ममोपासकस्य । इमं धियं=इमां सुक्रियाम् । क्रतुं यज्ञम् । दक्षम्=आन्तरिकं बलञ्च । सं शिशाधि=सम्यक् तीक्ष्णीकुरु । यथा धिया । याभ्यां क्रतुदक्षाभ्याञ्च । विश्वा=सर्वाणि । दुरिता=दुरितानि । अतितरेम । पुनः । सुतर्माणं=सुष्ठु तारयित्रीम् । विज्ञानरूपाम् नावमधिरुहेम ॥३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (वरुण+देव) हे निखिल पापनिवारक महादेव ! (शिक्षमाणस्य) अपना जानते पूर्ण परिश्रम और धार्मिक कार्य्य में मनोयोग देते हुए मेरी (इमाम्) इस (धियम्) सुक्रिया को तथा (क्रतुम्+दक्षम्) यज्ञ और आन्तरिक बल को (सं शिशाधि) अच्छे प्रकार तीक्ष्ण कीजिये, (यया) जिस सुक्रिया क्रतु और बल से (विश्वा+दुरिता) निखिल पापों, व्यसनों और दुःखों को (अति+तरेम) तैर जाएँ और (सुतर्माणम्+नावम्) अच्छे प्रकार पार लगानेवाली सुक्रियारूप नौका पर (अधिरुहेम) चढ़ें ॥३ ॥

    भावार्थ

    हे देव ! बुद्धि, बल और क्रियाशक्ति, ये तीनों हमको दे, जिससे पापादि दुःखों को तैर कर विज्ञानरूपी नौका पर चढ़ तेरे निकट पहुँच सकें ॥३ ॥

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    विषय

    नौकावत् वेदवाणी का आश्रय लेने का उपदेश।

    भावार्थ

    हे ( देव ) सब सुखों के दाता सब ज्ञानों के प्रकाशक ! हे ( वरुण ) सर्वश्रेष्ठ ! तू ( इमां धियं ) इस ज्ञान, और कर्म का ( शिक्षमाणस्य ) अनुष्ठान करने और अन्यों को उपदेश देने वाले की ( क्रतुं दक्षं ) बुद्धि और बल को ( सं शिशाधि ) सम्यक् प्रकार से तीक्ष्ण कर और अच्छे मार्ग में चला। ( यया ) जिससे हम ( विश्वा दुरिता ) सब दुष्कर्मों को ( अति तरेम ) पार कर जावें और ( सु-तर्माणं नावं ) सुख से पार उतार देने वाली नौकावत् वेदवाणी पर ( अधि रुहेम) चढ़ें, उसका आश्रय लें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नाभाक: काण्वोऽर्चनाना वा। अथवा १ – ३ नाभाकः काण्वः। ४–६ नाभाकः काण्वोऽर्चनाना वा ऋषयः॥ १—३ वरुणः। ४—६ अश्विनौ देवते। छन्दः—१—३ त्रिष्टुप्। ४—६ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सुतर्मा नौका

    पदार्थ

    [१] हे (देव) = प्रकाशमय (वरुण) = नियामक देव! (इमां धियं) = इस ज्ञानपूर्वक किये जाते हुए कर्म को (शिक्षमाणस्य) = अनुष्ठान करते हुए मेरे (क्रतुं) = प्रज्ञान को व (दक्षं) = बल को (संशिशाधि) = सम्यक् तीक्ष्ण करिये। आप से प्राप्त कराये गये ज्ञान व बल के द्वारा ही तो मैं इस कर्म को कर पाऊँगा । [२] आपके अनुग्रह से हम उस (सुतर्माणम्) = सम्यक् तरानेवाली (नावं) = यज्ञरूप नौका पर (अधिरुहेम) = आरूढ़ हों, (यया) = जिसके द्वारा (विश्वा) = सब बुराइयों को (अति तरेम) = तैर जाएँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु से प्रज्ञान व शक्ति को प्राप्त करके हम यज्ञात्मक कर्मों में प्रवृत्त हों। ये यज्ञ ही सब दुरितों को तैर जाने के लिए नाव हैं।

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