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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 57/ मन्त्र 3
ऋषिः - मेध्यः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
प॒नाय्यं॒ तद॑श्विना कृ॒तं वां॑ वृष॒भो दि॒वो रज॑सः पृथि॒व्याः । स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त ये गवि॑ष्टौ॒ सर्वाँ॒ इत्ताँ उप॑ याता॒ पिब॑ध्यै ॥
स्वर सहित पद पाठप॒नाय्य॑म् । तत् । अ॒श्वि॒ना॒ । कृ॒तम् । वा॒म् । वृ॒ष॒भः । दि॒वः । रज॑सः । पृ॒थि॒व्याः । स॒हस्र॑म् । शंसाः॑ । उ॒त । ये । गवि॑ष्टौ । सर्वा॑न् । इत् । तान् । उप॑ । या॒त॒ । पिब॑ध्यै ॥
स्वर रहित मन्त्र
पनाय्यं तदश्विना कृतं वां वृषभो दिवो रजसः पृथिव्याः । सहस्रं शंसा उत ये गविष्टौ सर्वाँ इत्ताँ उप याता पिबध्यै ॥
स्वर रहित पद पाठपनाय्यम् । तत् । अश्विना । कृतम् । वाम् । वृषभः । दिवः । रजसः । पृथिव्याः । सहस्रम् । शंसाः । उत । ये । गविष्टौ । सर्वान् । इत् । तान् । उप । यात । पिबध्यै ॥ ८.५७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 57; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Praiseworthy is that performance of yours, Ashvins, harbingers of new light, which is generous and rewarding, full of the light of heaven, showers of the cloud from the sky and generosity of the earth. Pray now come, assess and advance all those thousands of advancements we are pursuing in the field of earth sciences, solar energy and the development of cattle wealth, all of which are worthy of appreciation.
मराठी (1)
भावार्थ
तृतीय सवन स्वीकारणाऱ्या स्त्री-पुरुषांनी सुखवर्षक परमेश्वराच्या आज्ञा, विद्वानांचे उपदेश व सम्यक प्रयोगाने सुख देणारे सूर्य, मेघ इत्यादींच्या गुणांना आपल्या अंत:करणात स्थान द्यावे व अभीष्ट सुख प्राप्त करावे. ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (अश्विना) ब्रह्मचर्यव्रती नर-नारियो! (दिवः) द्युलोक से, (रजसः) अन्तरिक्ष से व (पृथिव्याः) भूलोक से (वृषभः) सुख बरसाने वाले सूर्य, मेघ व विद्वान् पुरुष ने (तत्) वह (वाम्) तुम्हारा (कृतं) कर्म (पनाय्यं कृतम्) स्तुत्य बताया है। (उत) और (गविष्टौ) सुखविशेष की इच्छा को पूरा करने के निमित्त (ये) जो (सहस्रम्) हजारों (शंसाः) कथन--वैदिक उपदेश हैं (पिबध्यै) उन्हें अपने अन्तःकरण में संरक्षण देने हेतु (सर्वान् इत तान्) उन सभी के (उप यातम्) निकट जाओ; पास से, सावधान होकर, उन्हें सुनो॥३॥
भावार्थ
सुखदाता परमेश्वर की आज्ञा, विद्वानों के उपदेश व सम्यक् प्रयोग से सुख देने वाले सूर्य, मेघ आदि के गुणों को तृतीय सवन के सेवी नर-नारी अपने अन्तःकरण में स्थान दें और अभीष्ट सुख पाएँ॥३॥
विषय
जीवन का तृतीय सवन।
भावार्थ
( दिवः ) आकाश ( रजसः ) अन्तरिक्ष और ( पृथिव्याः ) भूमि का ( वृषभः ) मेघ, सूर्य अग्निवत् वर्षण करने वाला, विद्वान् पुरुष ( वां ) तुम दोनों के प्रति ( पनाय्यं ) स्तुत्य ( कृतं ) कर्त्तव्य कर्म का उपदेश करे। ( ये ) जो विद्वान् लोग ( गविष्टौ ) वेद-वाणियों के ज्ञान प्रदान के निमित्त ( सहस्रं शंसा ) सहस्रों मन्त्रों का उपदेश करते हैं हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! ( तान् सर्वान् ) उन सब के (उप) पास ( पिबध्यै ) व्रत पालन और ज्ञान प्राप्ति के लिये ( उप यातम् ) प्राप्त होवो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेध्यः काण्व ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१ विराट् त्रिष्टुप्। २, ३ निचृत् त्रिष्टुप्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुऋचं सूक्तम्॥
विषय
'शरीर, मन व बुद्धि' का शक्ति सम्पन्न होना
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! (वां) = आपका (तत्) = वह (कृतं) = कर्म (पनाय्यं) = स्तुत्य है, जो (दिवः) = मस्तिष्करूप द्युलोक का, (रजसः) = हृदयरूप अन्तरिक्षलोक का तथा (पृथिव्याः) = शरीररूप पृथिवीलोक का (वृषभः) = शक्ति का सेचन करनेवाला है। प्राणापान शरीर में सोम की ऊर्ध्वगति का कारण बनते हैं। इस सुरक्षित सोम के द्वारा वे 'शरीर, हृदय व मस्तिष्क' तीनों को शक्तिसम्पन्न बनाते हैं। [२] (उत) = और (पिबध्यै) = सोमपान के लिए (ये) = जो (गविष्टौ) = ज्ञानयज्ञों में (सहस्त्रं) = सहस्रों (शंसा) = ज्ञान की वाणियों के उच्चारण हैं, (तान् सर्वान्) = उन सबको (उपयात) = समीपता से प्राप्त होओ। ज्ञान की वाणियों के अध्ययन से वासनाओं की ओर झुकाव नहीं रहता और इसप्रकार सोम रक्षण सम्भव होता है। सो प्राणायाम के अभ्यासी को चाहिए कि अतिरिक्त समय को सदा स्वाध्याय में व्यतीत करे।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों ही सशक्त बनते हैं। सोमरक्षण के लिए यह भी आवश्यक है कि मनुष्य अतिरिक्त समय का यापन स्वाध्याय में करे ।
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