ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 59/ मन्त्र 3
ऋषिः - सुपर्णः काण्वः
देवता - इन्द्रावरुणौ
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
स॒त्यं तदि॑न्द्रावरुणा कृ॒शस्य॑ वां॒ मध्व॑ ऊ॒र्मिं दु॑हते स॒प्त वाणी॑: । ताभि॑र्दा॒श्वांस॑मवतं शुभस्पती॒ यो वा॒मद॑ब्धो अ॒भि पाति॒ चित्ति॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒त्यम् । तत् । इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒ । कृ॒शस्य॑ । वा॒म् । मध्वः॑ । ऊ॒र्मिम् । दु॒ह॒ते॒ । स॒प्त । वाणीः॑ । ताभिः॑ । दा॒श्वांस॑म् । अ॒व॒त॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । यः । वा॒म् । अद॑ब्धः । अ॒भि । पाति॑ । चित्ति॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्यं तदिन्द्रावरुणा कृशस्य वां मध्व ऊर्मिं दुहते सप्त वाणी: । ताभिर्दाश्वांसमवतं शुभस्पती यो वामदब्धो अभि पाति चित्तिभिः ॥
स्वर रहित पद पाठसत्यम् । तत् । इन्द्रावरुणा । कृशस्य । वाम् । मध्वः । ऊर्मिम् । दुहते । सप्त । वाणीः । ताभिः । दाश्वांसम् । अवतम् । शुभः । पती इति । यः । वाम् । अदब्धः । अभि । पाति । चित्तिऽभिः ॥ ८.५९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 59; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra and Varuna, symbolic powers of love, judgement and social cohesion, true it is that for you the sevenfold voices of the dedicated sage distil the honey sweet vibrations of divine energy in your service and with these you, protectors and promoters of the good and auspiciousness of life, strengthen and advance the generous yajaka who, with sincere thoughts and actions, without fear, serves and augments you with devotion and resolution.
मराठी (1)
भावार्थ
शक्ती, न्याय व प्रेमाच्या माध्यमाने अति कृश तपस्व्याला ही वेदवाणीच्या रूपाने मधुर सत्याचा बोध होतो व साधक मननाद्वारे या शक्तींना जागृत ठेवतो. ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (इन्द्रावरुणा) शक्ति, न्याय तथा प्रेम की प्रतीक दिव्य शक्तियो! (युवाम्) तुम दोनों (सप्त वाणीः) सात छन्दों वाली वेदवाणी से निचोड़कर (तत्) वह प्रसिद्ध (मध्वः ऊर्मिम्) मधुरता की लहर के तुल्य (सत्यम्) सत्यज्ञान (कृशस्य) तपस्वी के हेतु (दुहते) प्राप्त करती हो। (ताभिः) उन वेदवाणियों से, हे (शुभस्पती) शुभ पालको! तुम उस (दाश्वांसम्) दानशील समर्पित भक्त का (अवतम्) पालन करो (यः) जो (वाम्) तुम दोनों तरह की शक्तियों को (चित्तिभिः) मननपूर्वक (अभि पाति) बनाये रखता है॥३॥
भावार्थ
न्याय, शक्ति तथा प्रेम के माध्यम से अति कृश तपस्वी को भी वेदवाणी के रूप में मधुर सत्य का बोध होता है। और यह साधक मनन के द्वारा इन शक्तियों को जगाए रखता है॥३॥
विषय
उन के समान सेनापति और राजा के कर्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्द्रावरुणा) ऐश्वर्यवन् ! हे वरण करने योग्य श्रेष्ठ जनो ! ( वां ) आप दोनों के प्रति ( कृशस्य ) तपस्या द्वारा कृश हुए तपस्वी जन की ( सप्त वाणीः ) सातों छन्दों वाली वेद-वाणियां ( सत्यं ) सत्य ज्ञान और ( मध्वः ) मधुर, आनन्दप्रद ज्ञान के ( ऊर्मिम् ) तरंग को ( दुहते ) दोहन या प्रदान करता है, अथवा, आप दोनों की वा आप दोनों के विषयक वाणियां तपस्वी जन को सत्य ज्ञान और आनन्द प्रदान करती हैं। (ताभिः) उन वाणियों से आप दोनों ( शुभः पती ) शुभ, कल्याण मार्ग के पालक आप दोनों उस ( दाश्वांसम् अवतम् ) दानशील भद्र पुरुष की रक्षा वा ज्ञान दान करते हो। जो ( अदब्धः) अबाधित होकर ( वान् ) आप दोनों के ( चितिभिः ) उत्तम ज्ञानों उत्तम विचारों द्वारा ( अभिपाति ) रक्षा करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सुपर्णः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रावरुणौ देवते॥ छन्दः—१ जगती। २, ३ निचृज्जगती। ४, ५, ७ विराड् जगती। ६ त्रिष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
विषय
[१] हे (इन्द्रावरुणा) = जितेन्द्रियता व निर्देषता के भावो ! (सत्यं तत्) = वह सत्य है कि (वां) = आपके (कृशस्य) = तपः कृश व्यक्ति के जीवन में (सप्त वाणी:) = सात छन्दोमयी सात वेदवाणियाँ (मध्वः ऊर्मि) = सोम की तरंग को अथवा सोमरक्षणजनित उल्लास को दुहते पूरित करती हैं। जो व्यक्ति जितेन्द्रियता व निर्देषता की साधना करता है वह तपःकृश बनता है। यह वेदवाणियों का स्वाध्याय करता हुआ सोम का रक्षण करता है और सोमरक्षणजनित उल्लास को प्राप्त करता है। [२] हे (शुभस्पती) = शुभ कल्याणमार्ग के पालक इन्द्र और वरुण ! आप (ताभिः) = उन वेदवाणियों के द्वारा उस (दाश्वांसं) = आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाले पुरुष को (अवतम्) = रक्षित करो। उस दाश्वान् को, (यः) = जो (अदब्धः) = वासनाओं से हिंसित न होता हुआ (चित्तिभिः) = ज्ञानों के द्वारा (वाम्) = आपका-जितेन्द्रियता व निर्देषता का (अभिपति) = रक्षण करता है।
पदार्थ
भावार्थ- हम जितेन्द्रियता व निद्वेषता की साधना करते हुए तपःकृश बनें। स्वाध्याय करते हुए हम सोम का रक्षण करें।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal