ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 8/ मन्त्र 19
ऋषिः - सध्वंशः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
आ नो॑ गन्तं मयो॒भुवाश्वि॑ना श॒म्भुवा॑ यु॒वम् । यो वां॑ विपन्यू धी॒तिभि॑र्गी॒र्भिर्व॒त्सो अवी॑वृधत् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । ग॒न्त॒म् । म॒यः॒ऽभुवा॑ । अश्वि॑ना । श॒म्ऽभुवा॑ । यु॒वम् । यः । वा॒म् । वि॒प॒न्यू॒ इति॑ । धी॒तिऽभिः॑ । गीः॒ऽभिः । व॒त्सः । अवी॑वृधत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो गन्तं मयोभुवाश्विना शम्भुवा युवम् । यो वां विपन्यू धीतिभिर्गीर्भिर्वत्सो अवीवृधत् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । गन्तम् । मयःऽभुवा । अश्विना । शम्ऽभुवा । युवम् । यः । वाम् । विपन्यू इति । धीतिऽभिः । गीःऽभिः । वत्सः । अवीवृधत् ॥ ८.८.१९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 8; मन्त्र » 19
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(मयोभुवा) हे सुखस्योत्पादकौ (शंभुवा) शान्त्युत्पादकौ (अश्विना) बलेन व्यापकौ ! (नः) अस्मान् (आगन्तम्) आगच्छतम् (विपन्यू) हे विशेषेण व्यवहारकुशलौ ! (यः, वत्सः) यस्ते परिपाल्यः (धीतिभिः) कर्मभिः (गीर्भिः) वेदवाग्भिर्वा (वाम्) युवाम् (अवीवृधत्) वर्धये ॥१९॥
विषयः
राजकर्त्तव्यमुपदिशति ।
पदार्थः
हे अश्विना=अश्विनौ=राजसचिवौ ! मयोभुवा= मयसः=सुखस्य भावयितारौ । यद्वा । मयः कल्याणं भवत्याभ्यामिति मयौभुवौ । पुनः । शंभुवा=रोगाणां शमस्य भावयितारौ । युवम=युवाम् । नोऽस्मान् । आगन्तमागच्छतम् । हे विपन्यू ! विशेषेण पनितव्यौ=स्तुत्यौ । पन व्यवहारे स्तुतौ च । यो वत्सः=यः प्रियपुत्रवत् पालनीयो जनः । धीतिभिः=कर्मभिः परिचरणैः । गीर्भिः=स्तुतिभिश्च । वाम्=युवाम् । अवीवृधत्=वर्धयति स्तौति । तं प्रत्यपि आगच्छतम् ॥१९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(मयोभुवा) हे सुखोत्पादक (शम्भुवा) शान्त्युत्पादक (अश्विना) बल द्वारा सर्वत्र विद्यमान के समान ! (नः) हमारे समीप (आगन्तम्) आवें (विपन्यू) हे व्यवहारकुशल ! (यः, वत्सः) जो वत्ससदृश पालनीय हम लोग (धीतिभिः) कर्मों द्वारा और (गीर्भिः) वेदवाणियों द्वारा (वाम्) आपको (अवीवृधत्) बढ़ाते हैं ॥१९॥
भावार्थ
हे शान्ति तथा सुखोत्पादक सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप हमारे यज्ञ को प्राप्त हों, हम लोग आपकी वृद्ध्यर्थ वेदवाणियों द्वारा परमात्मा से प्रार्थना करते हैं ॥१९॥
विषय
राजकर्त्तव्य का उपदेश देते हैं ।
पदार्थ
(अश्विना) हे प्रजाहितचिन्तक राजा और सचिव ! आप दोनों (मयोभुवा) सुखकारी और (शंभुवा) कल्याणकारी हैं, अतः (युवम्) आप दोनों (नः) हमारे निकट सुख-दुःख श्रवण करने को सदा (आ+गन्तम्) आया करें (यः+वत्सः) जो प्रियपुत्रवत् लालनीय पालनीय जन है, वह (विपन्यू) हे स्तवनीय राजा अमात्य ! (धीतिभिः) सेवाओं से तथा (गीर्भिः) स्तुतियों से (वाम्) आपके सुयश को (अवीवृधत्) बढ़ाता है, उसकी भी नाना उपायों से रक्षा कीजिये ॥१९ ॥
भावार्थ
अमात्यवर्गों के साथ राजा सदा प्रजाओं का हितचिन्तन करे । वैद्यों को ग्राम-२ में रखकर रोगों को दूर करावे और इतिहासलेखक आदि विद्वानों को सर्वोपायों से पाले ॥१९ ॥
विषय
missing
भावार्थ
हे ( अश्विना ) उत्तम स्त्री पुरुषो ! ( यः ) जो ( वत्सः ) उत्तम उपदेष्टा गुरु ( विपन्यू ) विशेष व्यवहार कुशल एवं प्रार्थी ( वां ) आप दोनों को ( धीतिभिः ) उत्तम कर्मों और ( गीर्भिः ) उत्तम वेद वाणियों द्वारा ( अवीवृधत् ) वृद्धि को प्राप्त कराता है उससे उपदिष्ट होकर ( युवम् ) आप दोनों ( मयोभुवा ) सुखप्रद और ( शंभुवा ) शान्तिदायक होकर ( नः आगन्तम् ) हमें प्राप्त होओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सध्वंसः काण्व ऋषिः। अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, २, ३, ५, ९, १२, १४, १५, १८—२०, २२ निचुदनुष्टुप्। ४, ७, ८, १०, ११, १३, १७, २१, २३ आर्षी विराडनुष्टुप्। ६, १६ अनुष्टुप् ॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
विषय
मयोभुवा-शम्भुवा
पदार्थ
[१] हे (मयोभुवा) = [मयस :- सुखस्य भावयितारौ ] सुख के उत्पन्न करनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! (नः) = हमें (आगन्तम्) = प्राप्त होइये। (युवम्) = आप (शम्भुवा) = सब रोगों के शमन को उत्पन्न करनेवाले हो । [२] हे (विपन्यू) = विशेषरूप से स्तुति के योग्य प्राणापानो ! (यः) = जो (वत्सः) = वेदवाणियों का उच्चारण करनेवाला यह ज्ञानी पुरुष है, वह (धीतिभिः) = उत्तम यज्ञादि क्रियाओं से तथा (गीर्भिः) = ज्ञान की वाणियों से (वां अवीवृधत्) = आपका वर्धन करता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधक को चाहिये कि यह यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त रहे, स्वाध्याय को अपनाये [ धीतिभिः, गीर्भिः] । इस प्रकार प्राण उसे सुखी व नीरोग बनायेंगे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, harbingers of peace, pleasure and well being in prosperity, lovers and admirers of joyous programmes, come both of you to us who, your darling celebrants, exalt you with our words, thoughts and actions.
मराठी (1)
भावार्थ
हे शान्ती व सुखोत्पादक सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, तुम्ही आमच्या यज्ञात या. आम्ही तुमच्या वृद्धीसाठी वेदवाणीद्वारे परमेश्वराची प्रार्थना करतो. ॥१९॥
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