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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 82/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कुसीदी काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इ॒षा म॑न्द॒स्वादु॒ तेऽरं॒ वरा॑य म॒न्यवे॑ । भुव॑त्त इन्द्र॒ शं हृ॒दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒षा । म॒न्द॒स्व॒ । आत् । ऊँ॒ इति॑ । ते । अर॑म् । वरा॑य । म॒न्यवे॑ । भुव॑त् । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । शम् । हृ॒दे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इषा मन्दस्वादु तेऽरं वराय मन्यवे । भुवत्त इन्द्र शं हृदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इषा । मन्दस्व । आत् । ऊँ इति । ते । अरम् । वराय । मन्यवे । भुवत् । ते । इन्द्र । शम् । हृदे ॥ ८.८२.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 82; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Be happy with the food, and then let it exhilarate you with the cherished fulfilment of your heart. Indra, O soul of this existential yajna, let there be peace at your heart unto the depth of your soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अन्न इत्यादी परमेश्वर निर्मित पदार्थांचा उपभोग या पद्धतीने करावा, की त्यापासून सुखाचा वर्षाव व्हावा. या प्रकारे माणसाच्या इन्द्रियांना वीर्य, पराक्रम व बल मिळेल. वीर्यवान इंद्रियांच्या साधनांनी साधकाला जीवन संघर्षात विजय प्राप्त होईल. ॥३॥

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    हिन्दी (2)

    पदार्थ

    (इषा) सुखवर्षक अन्न आदि की वृष्टि से (मन्दस्व) तृप्त हो; (आत्) अनन्तर (उ) ही प्रभुरचित पदार्थ (ते) तेरे (वराय) वरणीय श्रेष्ठ (मन्यवे) क्रोध हेतु (अरम्) पर्याप्त या उसको उत्पन्न करने में समर्थ (भुवत्) हों; हे (इन्द्र) साधक! वे (ते) तेरे (हृदे) हृदय के लिये (शम्) कल्याणकारी हों॥३॥

    भावार्थ

    अन्न इत्यादि प्रभुरचित पदार्थों का उपभोग इस तरह से करो कि वे सुख की वर्षा करें। इस तरह मानव की इन्द्रियों को वीर्य, पराक्रम व बल मिलेगा और वीर्यवती इन्द्रियों की साधना (से) जीव को जीवन-संघर्ष में विजय भी मिलेगी॥३॥

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    विषय

    अन्न सर्वोत्तम भोजन।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! तू ( इषा ) अन्न से ( मन्दस्व ) तृप्ति कर। क्योंकि ( वराय मन्यवे ) श्रेष्ठ ज्ञान के लिये यह अन्न ही (अरं) अति गुणकारी और उपयोगी है। हे ऐश्वर्यवन् ! यह अन्न ( ते दृदे शम् ) तेरे हृदय को भी शान्ति देने वाला हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुसीदी काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ७, ६ निचृद् गायत्री। २, ५, ६, ८ गायत्री। ३, ४ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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