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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    यु॒वं हि स्थः स्व॑र्पती॒ इन्द्र॑श्च सोम॒ गोप॑ती । ई॒शा॒ना पि॑प्यतं॒ धिय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वम् । हि । स्थः । स्व॑र्पती॒ इति॒ स्वः॑ऽपती । इन्द्रः॑ । च॒ । सो॒म॒ । गोप॑ती॒ इति॒ गोऽप॑ती । ई॒शा॒ना पि॑प्यत॒न् धियः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवं हि स्थः स्वर्पती इन्द्रश्च सोम गोपती । ईशाना पिप्यतं धिय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवम् । हि । स्थः । स्वर्पती इति स्वःऽपती । इन्द्रः । च । सोम । गोपती इति गोऽपती । ईशाना । पिप्यतन् । धियः ॥ ९.१९.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! भवान् (इन्द्रश्च) अध्यापकश्च (युवम् हि) उभावपि (स्वर्पती) सुखस्वामिनौ (स्थः) भवथः (गोपती) वाणीपती अपि स्थः (ईशाना) शिक्षां प्रदातुमीश्वरौ च स्थः (धियः पिप्यतम्) युवामुभावपि मद्बुद्धीः उपदेशेन समेधयतम् ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! आप (च) और (इन्द्रः) अध्यापक (युवम् हि) ये दोनों (स्वर्पती) सुख के पति (स्थः) हैं और (गोपती) वाणियों के पति हैं और (इशाना) शिक्षा देने में समर्थ हैं (धियः पिप्यतम्) आप दोनों हमारी बुद्धि को उपदेश द्वारा बढ़ाइये ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा ने जीवों को प्रार्थना द्वारा यह शिक्षा दी है कि तुम अपने अध्यापकों से और ईश्वर से सदैव शुभ शिक्षा की प्रार्थना किया करो ॥२॥

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    विषय

    स्वः पति-गोपति

    पदार्थ

    [१] 'इन्द्र' जितेन्द्रिय पुरुष है। यह 'सोम' का रक्षण करता है। प्रभु कहते हैं कि हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (च) = और (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (युवम्) = तुम दोनों (हि) = निश्चय से (स्वः पती) = स्वर्ग के व प्रकाश के स्वामी (स्थ:) = होते हो तथा (गोपती) = ज्ञान की वाणियों के स्वामी बनते हो या इन्द्रियों के स्वामी होते हो। [२] इस प्रकार प्रकाश व ज्ञान की वाणियों के व इन्द्रियों के [गावः इन्द्रियाणि] (ईशाना) = स्वामी होते हुए आप (धियः) = ज्ञानपूर्वक कर्मों का (पिप्यतम्) = आप्यायन करनेवाले बनो । इन कर्मों से ही वस्तुतः प्रभु का उपासन होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - एक जितेन्द्रिय पुरुष सोम का रक्षण करता हुआ प्रकाश व ज्ञान का स्वामी बनकर उत्तम कर्मों का आप्यायन [वर्धन] करता है।

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    विषय

    शक्ति वाले जीव और प्रभु।

    भावार्थ

    हे (सोम) जगत् के उत्पादक और (इन्द्रः च) हे इन्द्र ! जीवात्मन् ! (युवं हि) तुम दोनों (स्वः-पती) सुख के पालक और सब के पालक और (गो-पती स्थः) इन्द्रियों और सूर्यादि के पालक हो। तुम दोनों (ईशाना) देह और विश्व के स्वामी होकर (धियः पिप्यतम्) ज्ञानों और कर्मों को करते हो। जीव और परमेश्वर के सिवाय दूसरा कोई भी शक्तिमान नहीं है। भेद केवल अल्पता और अधिकता का है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आसतः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ विराड् गायत्री। २, ५, ७ निचृद् गायत्री। ३, ४ गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of peace and purity, Indra, lord of honour and excellence, both of you are protectors, sustainers and sanctifiers of earth, earthly well being, culture and sacred speech, of heaven and heavenly light and joy. Rulers and sustainers of existence, pray bless us with exuberant intelligence and will for holy thought, action and advancement.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराने जीवांना प्रार्थनेद्वारे ही शिकवण दिलेली आहे की, तुम्ही आपल्या अध्यापकांकडून व ईश्वराकडून सदैव शुभ शिकवणुकीसाठी प्रार्थना करा. ॥२॥

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