ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 19/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
कु॒विद्वृ॑ष॒ण्यन्ती॑भ्यः पुना॒नो गर्भ॑मा॒दध॑त् । याः शु॒क्रं दु॑ह॒ते पय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठकु॒वित् । वृ॒ष॒न्यन्ती॑भ्यः । पु॒ना॒नः । गर्भ॑म् । आ॒ऽदध॑त् । याः । शु॒क्रम् । दु॒ह॒ते । पयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कुविद्वृषण्यन्तीभ्यः पुनानो गर्भमादधत् । याः शुक्रं दुहते पय: ॥
स्वर रहित पद पाठकुवित् । वृषन्यन्तीभ्यः । पुनानः । गर्भम् । आऽदधत् । याः । शुक्रम् । दुहते । पयः ॥ ९.१९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 19; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पुनानः) सर्वस्य पावयिता परमात्मा (वृषण्यन्तीभ्यः) प्रकृतिभ्यः (कुविद् गर्भम्) बहुं गर्भं (आदधत्) दधार (याः) याः प्रकृतयः (शुक्रम् पयः) सूक्ष्मभूतेभ्यः कार्यरूपब्रह्माण्डं (दुहते) दुहन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पुनानः) सबको पवित्र करनेवाले परमात्मा ने (वृषण्यन्तीभ्यः) प्रकृतियों से (कुविद् गर्भम्) बहुत से गर्भ को (आदधत्) धारण किया (याः) जो प्रकृतियें (शुक्रम् पयः) सूक्ष्म भूतों से कार्यरूप ब्रह्माण्ड को (दुहते) दुहती हैं ॥५॥
भावार्थ
तात्पर्य यह है कि जलादि सूक्ष्म भूतों से यह ब्रह्माण्ड स्थूलावस्था में आता है। पञ्च तन्मात्रा के कार्य जो पाँच सूक्ष्म भूत उन्हीं का कार्य यह सब संसार है, जैसा कि ‘तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः, आकाशाद्वायुः, वायोरग्निरग्नेरापोऽद्भ्यः पृथिवी’ तै० २।१॥ इत्यादि वाक्यों में निरूपण किया है कि परमात्मारूपी निमित्त कारण से प्रथम आकाशरूप तत्त्व का आर्विभाव हुआ, जो एक अतिसूक्ष्मतत्त्व और जिसका शब्द गुण है फिर उससे वायु और वायु के संघर्षण से अग्नि और अग्नि से फिर जल आर्विभाव में अर्थात् स्थूलावस्था में आया। उसके अनन्तर पृथिवी ने स्थूलरूप को धारण किया, यह कार्यक्रम है, जिसको उक्त मन्त्र ने वर्णन किया है ॥५॥
विषय
प्रभु से मेल
पदार्थ
[१] (वृषण्यन्तीभ्यः) = [वृषणं सोममात्मन इच्छन्तीभ्यः] शक्ति को देनेवाले सोम की कामना करती हुई प्रजाओं के लिये (पुनानः) = पवित्रता को करता हुआ यह सोम (कुवित्) = खूब (गर्भम्) = प्रभु के साथ मेल को आदधत् धारण करता है। जब हम सोम का रक्षण करते हैं, यह रक्षित सोम हमें निर्मल जीवनवाला बनाता है, अन्ततः प्रभु से हमारा मेल कराता है। [२] उन प्रजाओं का यह प्रभु से मेल कराता है, (याः) = जो इस सोम से (शुक्रं पयः) = दीप्त आप्यायन शक्ति को (दुहते) = दोहते हैं। सोमरक्षण के द्वारा शरीर के सब अंग-प्रत्यंग आप्यायित हो उठते हैं। सब अंग-प्रत्यंगों के आप्यायित होने पर हम पूर्ण स्वास्थ्य का अनुभव करते हैं, और अपने जीवन को पवित्र बनाकर प्रभु से मेलवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे शरीरों को आप्यायित करके हमारे जीवन को पवित्र करता है तथा प्रभु से हमारा मेल कराता है।
विषय
जगत्-सर्गकारी प्रभु ने प्रकृति को कैसे गर्भित किया। पक्षान्तर में-गौ, सांड और राज प्रजा के व्यवहार का स्पष्टीकरण।
भावार्थ
जिस प्रकार (पुनानः) वायु या पवित्रकारक या व्यापक तेजस्वी सूर्य (वृषण्यन्तीभ्यः) वर्षक मेघ की कामना करने वाली भूमियों के लिये (कुविद् गर्भम्) बहुत भारी अन्तरिक्ष में (आदधत्) जल को गर्भित कर धारण कराता है, (याः) जो अनन्तर (पयः शुक्रम् दुहते) शुद्ध जल का दोहन करती हैं उसी प्रकार (पुनानः) सर्वपावन प्रभु (वृषण्यन्तीभ्यः) बलवान् सञ्चालक की अपेक्षा करने वाली प्रकृति के सूक्ष्म परमाणुओं के बीच (पुनानः) व्याप कर (कुवित्) बहुत प्रकार से (गर्भम् आदधत्) जगत् को गर्भित करता है और प्रकृति के परमाणु वा ‘आपः’ (शुक्रं) कान्तियुक्त (पयः) महत् जगत् को मातृदुग्धवत् दोहन करते हैं। (२) इसी प्रकार वृषभ को चाहती हुई गौओं में विजार सांड गर्भ धरता और वे गौएं कान्तियुक्त दूध देती हैं। (३) इसी प्रकार प्रजाएं बलवान् राजा की अपेक्षा करती हैं। वे शुद्ध अन्न और बल प्रदान करती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आसतः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ विराड् गायत्री। २, ५, ७ निचृद् गायत्री। ३, ४ गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The great lord omnipotent Soma, pure and immaculate, impregnates the forms of nature overflowing with desire which receive the seed and create living milk for the growth of life.
मराठी (1)
भावार्थ
जल इत्यादी सूक्ष्म भूतांपासून हे ब्रह्मांड स्थूलावस्थेत येते. पञ्चतन्मात्रांचे कार्य जे पाच सूक्ष्म भूत त्यांचेच कार्य हे सर्व जग आहे. जसे ‘तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाश: संभूत: आकाशाद्वायु: वायोरग्निरग्नेरापोऽदभ्य: पृथिवी’ तै. २।१ इत्यादी वाक्यात निरूपण केलेले आहे की परमात्मरूपी निमित्त कारणाने प्रथम आकाशरूपी तत्त्व प्रकट झाले. जे एक अतिसूक्ष्म तत्त्व आहे व शब्द हा ज्याचा गुण आहे. नंतर वायू व वायूच्या संघर्षणाने अग्नी व अग्नीपासून जलाचा आविर्भाव झाला अर्थात ते स्थूलावस्थेत आले त्यानंतर पृथ्वीने स्थूलरूप धारण केले. या कार्याचे वरील मंत्रात वर्णन आहे. ॥५॥
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