ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 19/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - भुरिग्गायत्री
स्वरः - षड्जः
उप॑ शिक्षापत॒स्थुषो॑ भि॒यस॒मा धे॑हि॒ शत्रु॑षु । पव॑मान वि॒दा र॒यिम् ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । शि॒क्ष॒ । अ॒प॒ऽत॒स्थुषः॑ । भि॒यस॑म् । आ । धे॒हि॒ । शत्रु॑षु । पव॑मान । वि॒दाः । र॒यिम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उप शिक्षापतस्थुषो भियसमा धेहि शत्रुषु । पवमान विदा रयिम् ॥
स्वर रहित पद पाठउप । शिक्ष । अपऽतस्थुषः । भियसम् । आ । धेहि । शत्रुषु । पवमान । विदाः । रयिम् ॥ ९.१९.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 19; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वस्य पावयितः भगवन् ! (अपतस्थुषः उपशिक्ष) स्वानुकूलजनान् उपदिशतु तथा (शत्रुषु भियसम् आधेहि) स्वप्रतिकूलेभ्यश्च भयमादधातु अथ (विदः रयिम्) तद्धनानि चापहरतु ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) ‘पवत इति पवमानः संबुद्धौ तु पवमान’ हे सबको पवित्र करनेवाले भगवन् ! आप (अपतस्थुषः उपशिक्ष) जो आपके समीप में रहनेवाले हैं, उनको शिक्षा दीजिये और (शत्रुषु भियसम् आधेहि) शत्रुओं में भय उत्पन्न करिये तथा (विदः रयिम्) उनके धन को अपहरण कर लीजिये ॥६॥
भावार्थ
मित्रदल से तात्पर्य यहाँ उस दल का है, जो न्यायकारी और दोनों पर दया और प्रेम करनेवाला हो। शत्रुदल से तात्पर्य उस दल का है, जो “शातयतीति शत्रुः” शुभगुणों का नाश करनेवाला हो, इसलिये उक्त मन्त्रार्थ में अन्याय का दोष नहीं, क्योंकि न्याय यही चाहता है कि दैवी सम्पत्ति के गुण रखनेवाले वृद्धि को प्राप्त हों और आसुरी सम्पत्ति के रखनेवाले नाश को प्राप्त हों ॥६॥
विषय
शत्रुओं में भय सञ्चार
पदार्थ
[१] हे सोम ! (अपतस्थुषः) = वासनाओं से दूर स्थित होनेवाले हम लोगों को (उपशिक्ष) = उस प्रभु के समीप करनेवाला हो, हमें प्रभु को प्राप्त करा । हमारे (शत्रुषु) = शातन [ विनाश] करनेवाले काम-क्रोध आदि शत्रुओं में (भियसम्) = भय को (आधेहि) = स्थापित कर । अर्थात् इस सोम के रक्षण से काम-क्रोध आदि शत्रु विनष्ट हो जायें। [२] हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम ! तू सुरक्षित होने पर (रयिं विदा) = हमें ज्ञान रूप ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाला हो । वस्तुतः सोमरक्षण से बुद्धि तीव्र होती है और हम ज्ञानैश्वर्य को प्राप्त करनेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमें प्रभु का सान्निध्य प्राप्त कराता है, काम-क्रोधादि को विनष्ट करता है, ज्ञानैश्वर्य का वर्धन करता है ।
विषय
शत्रुनाश की प्रार्थना।
भावार्थ
(अप तस्थुषः) अपने से अलग विद्यमान जीवों को तू हे प्रभो ! (उप शिक्ष) समीप रख और उत्तम दान दे और (शत्रुषु) शत्रुओं में (भियसम् आ धेहि) भय डाल। हे (पवमान) परम पावन ! तू हमें (रयिम् विद) ऐश्वर्य प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आसतः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ विराड् गायत्री। २, ५, ७ निचृद् गायत्री। ३, ४ गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of purity, those who stay far off, bring close and instruct; those who are negative, strike with fear; bring wealth, honour and excellence for life.
मराठी (1)
भावार्थ
मित्रदल याचा अर्थ जे न्यायकारी, दया व प्रेम करणारे असतात व शत्रूदल याचा अर्थ जे ‘शातयतीति शत्रु:’ शुभ गुणांचा नाश करणारे असतात. त्यासाठी दैवीसंपत्तीचे गुण असणारे लोक वृद्धिंगत व्हावेत व आसुरी संपत्ती असणाऱ्यांचा नाश व्हावा ॥६॥
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