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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    म॒हान्तं॑ त्वा म॒हीरन्वापो॑ अर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः । यद्गोभि॑र्वासयि॒ष्यसे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हान्त॑म् । त्वा॒ । म॒हीः । अनु॑ । आपः॑ । अ॒र्ष॒न्ति॒ । सिन्ध॑वः । यत् । गोभिः॑ । वा॒स॒यि॒ष्यसे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महान्तं त्वा महीरन्वापो अर्षन्ति सिन्धवः । यद्गोभिर्वासयिष्यसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महान्तम् । त्वा । महीः । अनु । आपः । अर्षन्ति । सिन्धवः । यत् । गोभिः । वासयिष्यसे ॥ ९.२.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (महान्तम्) सर्वतो महान्तम् (त्वा) भवन्तम् (महीः) पृथिवी (आपः) जलं तथा (सिन्धवः) स्यन्दनशीलाः पदार्थाः (अर्षन्ति) आश्रयन्ति (यत्) यतस्त्वम् (गोभिः) स्वशक्तिभिः सर्वम् (वासयिष्यसे) नियमयसि ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (महान्तम्) सबसे बड़े (त्वा) तुमको (महीः) पृथिवी और (आपः) जल तथा (सिन्धवः) स्यन्दनशील सब पदार्थ (अर्षन्ति) आश्रय किये हुए हैं (यत्) क्योंकि तुम (गोभिः) अपनी शक्तियों से सबका (वासयिष्यसे) नियमन करते हो ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा की शक्ति में पृथिवी, जल, वायु इत्यादि सम्पूर्ण तत्त्व तथा लोक-लोकान्तर परिभ्रमण करते हैं। उसी महतोभूत के आश्रित होकर यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ठहरा हुआ है। इसका वर्णन “एतस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद् यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदः” “एतस्य वाक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्य्याचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठतः” “भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्य्यः भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चमः” इत्यादि द्वारा जिसका ब्रहमाण्ड और उपनिषदों में वर्णन किया गया है, उसी पूर्ण पुरुष का वर्णन इस मन्त्र में है। मालूम होता है कि पूर्वोक्त प्रमाण, जो परमात्मा को सर्वाधार वर्णन करते हैं, वे इसी मन्त्र के आधार पर हैं ॥४॥

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    विषय

    ज्ञान-वस्त्र का धारण

    पदार्थ

    [१] हे जीव ! (यद्) = जब (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों से (वासयिष्यसे) = तू अपने को आच्छादित करेगा तो (महान्तम्) = महान् बने हुए (त्वा) = तुझ को (मही:) = ये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण (सिन्धवः आपः) = बहनेवाले रेतःकण (अनु अर्षन्ति) = अनुकूलता से प्राप्त होते हैं। ' आपः रेतो भूत्वा०' जल शरीर में रेतः कणों के रूप में रहते हैं। ये सब प्रकार की उन्नतियों का मूल होने से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । [२] इन रेतः कणों का रक्षण ज्ञान से अपने को आच्छादित करनेवाला ही कर पाता है। स्वाध्याय में लगे रहने से इन रेतः कणों का ज्ञानाग्नि के दीपन में व्यय होता है, और साथ ही हम वासनाओं के आक्रमण से बचे रहते हैं। इस प्रकार यह ज्ञान का आच्छादन सोमरक्षण का साधन बन जाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ज्ञान प्राप्ति में लगे रहना सोमरक्षण का उत्तम साधन है ।

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    विषय

    नदी और समुद्रों के तुल्य विद्या-वाणियों से शासक वा विद्वान् की शोभा।

    भावार्थ

    जैसे (महान्तं महीः आपः सिन्धवः) महान् समुद्र के प्रति बड़ी २ तीव्र जलधारा और नद (अनु अर्षन्ति) जाते हैं और वह (गोभिः वासयिष्यसे) गमनशील नदियों और जलों से पूर्ण हो जाता है उसी प्रकार (यत्) जब हे सोम विद्यावान् और ऐश्वर्यवान् पुरुष ! तू भी (गोभिः) उत्तम ज्ञानयुक्त वाणियों, भूमियों वा चमकीले, तेजोयुक्त वस्त्रों द्वारा (वासयिष्यसे) आच्छादित किया जाय तब (त्वा महान्तं) तुझको महान् जान कर (अनु) तेरे पीछे (आपः) आप्त प्रजाएं और (सिन्धवः) वेग से जाने वाले अश्वारोही जन भी (अर्षन्ति) चलें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेधातिथिऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५, ७―९ गायत्री। १० विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Just as great floods of water, rivers and seas join the great ocean, and the great ocean abides by you, O lord omnipotent, similarly all our will and actions abide in you, lord supreme, since by your word and powers you inspire them.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याच्या शक्तीने पृथ्वी, जल, वायू इत्यादी संपूर्ण तत्त्व व लोकलोकांतर परिभ्रमण करतात. त्याच महाभूताच्या आश्रयाने हे संपूर्ण ब्रह्मांड स्थित आहे. याचे वर्णन ‘‘एतस्य महतो भूतस्य विश्वसितमेवैतद् यदृग्वेदो यजुर्वेद: सामवेद’’ ‘‘एतस्य वाक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्याचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठत:’’ ‘‘भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्य्य: भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चम:’’ इत्यादी प्रमाणांचे ब्राह्मण व उपनिषदात वर्णन केलेले आहे. त्याच पूर्ण पुरुषाचे वर्णन या मंत्रात आहे. परमेश्वर सर्वाधार असल्याचे जे पूर्वोक्त प्रमाण आहे ते याच मंत्राच्या आधारे आहे. ॥४॥

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