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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं त्वा॒ मदा॑य॒ घृष्व॑य उ लोककृ॒त्नुमी॑महे । तव॒ प्रश॑स्तयो म॒हीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । त्वा॒ । मदा॑य । घृष्व॑ये । ऊँ॒ इति॑ । लो॒क॒ऽकृ॒त्नुम् । ई॒म॒हे॒ । तव॑ । प्रऽश॑स्तयः । म॒हीः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं त्वा मदाय घृष्वय उ लोककृत्नुमीमहे । तव प्रशस्तयो महीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । त्वा । मदाय । घृष्वये । ऊँ इति । लोकऽकृत्नुम् । ईमहे । तव । प्रऽशस्तयः । महीः ॥ ९.२.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमेश्वर ! (तम्) प्रसिद्धम् (त्वा) भवन्तम् (ईमहे) वयं प्राप्नुयाम यो भवान् (लोककृत्नुम्) सम्पूर्णसंसारस्य रचयितास्ति स त्वम् (मदाय) आनन्दाय (उ) किञ्च (घृष्वये) दुःखनिवृत्त्यै प्राप्तो भव (तव) भवतः (प्रशस्तयः) स्तुतयः (महीः) पृथिवीमात्रे लभ्यन्ते ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमेश्वर ! (तम्) उस (त्वा) तुझको (ईमहे) हम प्राप्त हों, जो तू (लोककृत्नुम्) सम्पूर्ण संसार का रचनेवाला है। (मदाय) आनन्द की प्राप्ति (उ) और (घृष्वये) दुःखों की निवृत्ति के लिये प्राप्त हो, (तव) तुम्हारी (प्रशस्तयः) स्तुतियें (महीः) पृथिवी भर में पाई जाती हैं ॥८॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आपका स्तवन प्रत्येक वस्तु कर रही है और आप सम्पूर्ण संसार के उत्पति-स्थिति-संहार करनेवाले हैं। आपकी प्राप्ति से सम्पूर्ण अज्ञानों की निवृत्ति होती है, इसलिये हम आपको प्राप्त होते हैं ॥८॥

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    विषय

    उल्लास - रोग विनाश- -प्रकाश

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! (तं त्वा) = उस तुझ को हम (ईमहे) = याचना करते हैं, तेरी प्राप्ति के व रक्षण के लिये हम यत्नशील होते हैं। जो तू (लोककृत्नुम्) = प्रकाश [आलोक] को करनेवाला है । सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि का दीपन होकर हमारा जीवन प्रकाशमय बनता है। [२] हे सोम ! हम इसलिए तेरी प्राप्ति के लिये यत्नशील होते हैं कि (मदाय) = तू हमारे जीवनों में उल्लास का कारण बनता है, उल्लास के लिये होता है । (उ) = और घृष्वये सब शत्रुओं को घर्षण के लिये होता है । सोमरक्षण से सब रोगकृमिरूप शत्रुओं का संहार हो जाता है। इस प्रकार हे सोम ! (तव) = तेरी (प्रशस्तयः) = प्रशस्तियाँ [प्रशंसायें] (मही:) = महान् हैं। मानव जीवन के उत्कर्ष में सर्वप्रमुख स्थान इस 'सोम' का ही है। इसी में जीवन है 'मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात्' ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम [क] उल्लास का कारण होता है, [ख] रोगकृमिरूप शत्रुओं का विनाश करता है, [ग] ज्ञानाग्नि को दीप्त करके जीवन को प्रकाशमय बनाता है ।

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    विषय

    ऐश्वर्यवान् प्रभु से प्रार्थनाएं, स्तुतिएं।

    भावार्थ

    (मदाय) आनन्द, हर्ष और स्तुति और (घृष्वये) शत्रु जनों से संघर्ष प्राप्त करने के लिये (लोक-कृत्नुम्) उत्तम लोकों के बनाने वाले (तं त्वा) उस तुझ से ही हम (ईमहे) याचना करते हैं। (तव प्रशस्तयः महीः) हे प्रभो ! तेरी ही बड़ी उत्तम स्तुतियां हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेधातिथिऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५, ७―९ गायत्री। १० विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the sake of joy and elimination of the suffering of life, we adore you, creator of the worlds of nature and humanity. O lord, great are your glories sung all round.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमेश्वरा! प्रत्येक वस्तू तुझे स्तवन करत आहे व तू संपूर्ण जगाची उत्पत्ती, स्थिती, प्रलय करणारा आहेस. तुझ्या प्राप्तीने संपूर्ण अज्ञानाची निवृत्ती होते. त्यासाठीच आम्ही तुला प्राप्त करतो. ॥८॥

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