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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अचि॑क्रद॒द्वृषा॒ हरि॑र्म॒हान्मि॒त्रो न द॑र्श॒तः । सं सूर्ये॑ण रोचते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अचि॑क्रदत् । वृषा॑ । हरिः॑ । म॒हान् । मि॒त्रः । न । द॒र्श॒तः । सम् । सूर्ये॑ण । रो॒च॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अचिक्रदद्वृषा हरिर्महान्मित्रो न दर्शतः । सं सूर्येण रोचते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अचिक्रदत् । वृषा । हरिः । महान् । मित्रः । न । दर्शतः । सम् । सूर्येण । रोचते ॥ ९.२.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (हरिः) दुष्टदमनः, सर्वेषाम् (मित्रः, न) मित्रसदृशः, (दर्शतः) सन्मार्गप्रदर्शकः (सम्) सम्यक्प्रकारेण (सूर्य्येण) स्वविज्ञानेन (रोचते) प्रकाशमानो भवति (वृषा) सर्वकामप्रदः स परमात्मा (अचिक्रदत्) सर्वान् स्वाभिमुखमाह्वयति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (हरिः) दुष्टों का दलन करनेवाला और सबका (मित्रः) मित्र के (न) समान (दर्शतः) सन्मार्ग दिखलानेवाला और (सम्) भली प्रकार (सूर्य्येण) अपने विज्ञान से (रोचते) प्रकाशमान हो रहा है, (वृषा) सर्वकामप्रद वह परमात्मा (अचिक्रदत्) सबको अपनी और बुला रहा है ॥६॥

    भावार्थ

    वह परमात्मा जो आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक तापरूपी शत्रुओं का नाश करनेवाला मित्र की तरह सब प्राणियों का सन्मार्गप्रदर्शक तथा आत्मज्ञान द्वारा सबके हृदय में प्रकाशित है, उसी के आह्वानरूप वेदवाणीयें हैं और वही परमात्मा सब कामनाओं का पूर्ण करनेवाला है, इसलिये उसी एकमात्र परमात्मा की शरण में सबको जाना उचित है ॥६॥

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    विषय

    'ज्ञानी भक्त' का जीवन

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार सोम को अपने में सुरक्षित करनेवाला व्यक्ति (अचिक्रदत्) = प्रातः सायं प्रभु का आह्वान करता है। यह प्रभु का आराधन ही उसे सोमरक्षण के योग्य बनाता है । सोमरक्षण से यह (वृषा) = शक्तिशाली बनता है । शक्ति के द्वारा (हरिः) = औरों के दुःखों का हरण करनेवाला होता है । पर दुःखहरण से यह (महान्) = महान् होता है, लोक में समादृत होता है । [२] इस समय यह (मित्रः न) = सूर्य के समान (दर्शतः) = दर्शनीय होता है, अर्थात् अत्यन्त तेजस्वी प्रतीत होता है । और (सूर्येण) = ज्ञानसूर्य से (संरोचते) = सम्यक् देदीप्यमान होता है । यह तेजस्वी व ज्ञानी बनकर लोकहित में प्रवृत्त हुआ हुआ प्रभु का प्रिय होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु स्मरण करें। शक्तिशाली बनकर परदुःखहरण में प्रवृत्त हों । तेजस्वी व ज्ञानी बनकर लोकहित को करनेवाले हों। इस प्रकार हम प्रभु के ज्ञानी भक्त बनें ।

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    विषय

    न्याय शासक के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (वृषा) बलवान् प्रजा पर सुखों की वर्षा करने वाला, (हरिः) दुःखों और मन का हरण करने वाला, (महान्) गुणों में श्रेष्ठ, (मित्रः न) स्नेही जन के समान (दर्शतः) व्यवहारों का द्रष्टा, न्यायशील, शासक (सूर्येण सं रोचते) सूर्य के समान तेज से भली प्रकार प्रकाशित होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेधातिथिऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५, ७―९ गायत्री। १० विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, Spirit of universal peace and bliss, is generous and virile, destroyer of suffering, great, noble guide as a friend, and proclaims his presence everywhere as he shines glorious with the sun.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा, आध्यात्मिक, आधिभौतिक, तापरूपी शत्रूंचा नाश करणारा, मित्राप्रमाणे सर्व प्राण्यांचा सन्मार्गदर्शक व आत्मज्ञानाद्वारे सर्वांच्या हृदयात प्रकाशित असतो. त्याचीच आव्हानात्मक अशी वेदवाणी आहे व तोच परमात्मा सर्व कामना पूर्ण करणारा आहे. यासाठी त्या एकमेव परमात्म्याला शरण जाणे योग्य आहे. ॥६॥

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