ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 20/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वं राजे॑व सुव्र॒तो गिर॑: सो॒मा वि॑वेशिथ । पु॒ना॒नो व॑ह्ने अद्भुत ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । राजा॑ऽइव । सु॒ऽव्र॒तः । गिरः॑ । सो॒म॒ । आ । वि॒वे॒शि॒थ॒ । पु॒ना॒नः । व॒ह्ने॒ । अ॒द्भु॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं राजेव सुव्रतो गिर: सोमा विवेशिथ । पुनानो वह्ने अद्भुत ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । राजाऽइव । सुऽव्रतः । गिरः । सोम । आ । विवेशिथ । पुनानः । वह्ने । अद्भुत ॥ ९.२०.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 20; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! (त्वम् राजा इव) भवान् राजा इव (सुव्रतः) सुकर्माऽस्ति तथा (गिरः आविवेशिथ) वेदवाक्षु प्रविष्टोऽस्ति (पुनानः) सर्वस्य पावयितास्ति (वह्ने) हे सर्वस्य प्रेरक ! भवान् (अद्भुत) नित्यनवोऽस्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (त्वम् राजा इव) आप राजा की तरह (सुव्रतः) सुकर्मी हैं और (गिरः आविवेशिथ) वेदवाणियों में प्रविष्ट हैं (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाले हैं और (वह्ने) हे सबके प्रेरक ! आप (अद्भुत) नित्य नूतन हैं ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा सब नियमों का नियन्ता है। नियम पालने की शक्ति मनुष्यों में उसी की कृपा से आती है ॥५॥
विषय
'सुव्रत' सोम
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (त्वम्) = तू (पुनानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ (राजा इव) = राजा की तरह (सुव्रतः) = उत्तम व्रतों व कर्मोंवाला होता है । अपनी इन्द्रियों पर शासन करनेवाला व्यक्ति 'राजा' है । सोमरक्षण के होने पर हमारे सब कर्म शोभन होते हैं। उसी प्रकार शोभन होते हैं, जैसे कि एक राजा के जितेन्द्रिय पुरुष के कर्म शोभन होते हैं, [२] हे (वह्ने) = हमारे लिये सब उत्तमताओं को प्राप्त करानेवाले अद्भुत अनुपम शक्तिवाले सोम ! तू (गिरः) = ज्ञान की वाणियों को (आविवेशिथ) = हमारे में प्रविष्ट करा । अर्थात् हमारी बुद्धियों को तीव्र बनाकर हमें ज्ञान को प्राप्त करा ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के परिणामस्वरूप हमारे कर्म पवित्र हों, हमें ज्ञान की वाणियाँ प्राप्त हों ।
विषय
सन्मार्ग के नेता से उत्तम वाणियों की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन्! हे (अद्भुत) आश्चर्यकारक ! अभूतपूर्व ! हे (वह्ने) कार्य-भार को अपने कन्धों लेने हारे ! (त्वं पुनानः) अभिषिक्त होकर (राजा इव सु-व्रतः) राजा के समान उत्तम कर्म करता हुआ (गिरः विवेशिथ) आज्ञाएं प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४—७ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, you are like a ruler sustainer of the holy laws of existence. You are present in the hymns of the Veda and you inspire the songs of celebrants. Pure and purifying, O wielder and sustainer of the universe, you are wondrous great and sublime, the like of which never was and never shall be, rival there is none.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर सर्व नियमांचा नियंता आहे. माणसांमध्ये नियम पाळण्याची शक्ती त्याच्याच कृपेने येते. ॥५॥
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