ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 20/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
स वह्नि॑र॒प्सु दु॒ष्टरो॑ मृ॒ज्यमा॑नो॒ गभ॑स्त्योः । सोम॑श्च॒मूषु॑ सीदति ॥
स्वर सहित पद पाठसः । वह्निः॑ । अ॒प्ऽसु । दु॒स्तरः॑ । मृ॒ज्यमा॑नः । गभ॑स्त्योः । सोमः॑ । च॒मूषु॑ । सी॒द॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स वह्निरप्सु दुष्टरो मृज्यमानो गभस्त्योः । सोमश्चमूषु सीदति ॥
स्वर रहित पद पाठसः । वह्निः । अप्ऽसु । दुस्तरः । मृज्यमानः । गभस्त्योः । सोमः । चमूषु । सीदति ॥ ९.२०.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 20; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः सोमः) स परमात्मा (अप्सु) प्रतिलोकं विद्यमानः (वह्निः) सर्वेषां प्रेरकश्च तथा (दुष्टरः) दुराधर्षोऽस्ति (गभस्त्योः) स्वप्रकाशैः (मृज्यमानः) प्रकाशमानः (चमूषु सीदति) न्यायकारिसेनाषु स्वयं विराजते च ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सः सोमः) वह परमात्मा (अप्सु) लोक-लोकान्तर में विद्यमान है और (वह्निः) सबका प्रेरक है और (दुष्टरः) दुराधर्ष है (गभस्त्योः) अपने प्रकाश से (मृज्यमानः) स्वयं प्रकाशित है (चमूषु सीदति) न्यायकारियों की सेना में स्वयम् विराजमान होता है ॥६॥
भावार्थ
यद्यपि परमात्मा के भाव सर्वत्र भावित हैं, तथापि जैसे न्यायकारी सम्राजों की सेनाओं में उनके रौद्र वीर भयानकादि भाव प्रस्फुटित होते हैं, ऐसे अन्यत्र नहीं ॥६॥
विषय
'दुष्टर' सोम
पदार्थ
[१] (सः) = वह सोम (वह्निः) = हमारे लिये ज्ञान व शक्ति आदि को प्राप्त करानेवाला है। (अप्सु) = कर्मों में (दुष्टर:) = विघ्नों से आसानी से पराभूत होनेवाला नहीं । अर्थात् सोमरक्षक पुरुष कर्मों को करता हुआ विघ्नों से पराजित नहीं हो जाता। (मृज्यमानः) = शुद्ध किया जाता हुआ यह (गभस्त्यो:) = बाहुओं में होता है । अर्थात् भुजाओं को यह शक्तिशाली बनाता है। [२] यह (सोमः) = सोम (चमूषु) = शरीररूप पात्रों में (सीदति) = आसीन होता है। वस्तुतः इस सोम [वीर्य] का आधारभूत पात्र यह शरीर ही है। शरीर में सुरक्षित होने पर यह उसे 'सत्य, यश व श्री' से सम्पन्न करता है।
भावार्थ
भावार्थ - रक्षित सोम हमें ज्ञान व शक्ति प्राप्त कराता है। कर्मों में विघ्नों से पराभूत नहीं होने देता ।
विषय
सेनाध्यक्ष का वर्णन
भावार्थ
(सः) वह (वह्निः) कार्य भार को वहन करने वाला, (दुस्तरः) शत्रुओं से पराजित न होने वाला, तेजस्वी (गभस्त्योः) हाथों के बल-पराक्रम से, (अप्सु मृज्यमानः) जलोंवत् प्रजाओं के बीच में परि-शुद्ध होकर (चमूषु) समस्त सेनाओं पर भी (सीदति) अध्यक्ष बनता है। (२) इसी प्रकार आत्म-शरीर का उठाने वाला (अप्सु) प्राणों में संमार्जित, शुद्ध रूप होकर (चमूषु) विषयग्राहिणी इन्द्रियों पर अध्यक्षवत् विराजता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४—७ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That lord Soma, burden bearer of existence, is the universal inspirer, energiser and enlightener, the very passion and fire of life, pervasive in the waters of space, unconquerable, blazing in the self-circuit of his own refulgence, and he abides in the holy ladles of yajna as much as in the mighty majestic armies of the universe.
मराठी (1)
भावार्थ
जरी परमात्म्याचे भाव सर्वत्र प्रकट आहेत तरी जसे न्यायकारी सम्राटाच्या सेवेत त्यांचे रौद्र, वरी, भयानक भाव प्रस्फुटित होतात तसे अन्यत्र नाही. ॥६॥
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