ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वं सो॑म नृ॒माद॑न॒: पव॑स्व चर्षणी॒सहे॑ । सस्नि॒र्यो अ॑नु॒माद्य॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । सो॒म॒ । नृ॒ऽमाद॑नः । पव॑स्व । च॒र्ष॒णि॒ऽसहे॑ । सस्निः॑ । यः । अ॒नु॒ऽमाद्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं सोम नृमादन: पवस्व चर्षणीसहे । सस्निर्यो अनुमाद्य: ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । सोम । नृऽमादनः । पवस्व । चर्षणिऽसहे । सस्निः । यः । अनुऽमाद्यः ॥ ९.२४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सर्वोत्पादक ! (त्वम्) भवान् (नृमादनः) मनुष्येभ्य आनन्दस्य दाता (चर्षणीसहे) स्वप्रतिकूलेभ्योऽपि क्षमते (सस्निः) शुद्धस्वरूपः (अनुमाद्यः) सर्वथा स्तुत्यः (यः) एवम्भूतो यो विराजते स भवानेव (पवस्व) अस्मान्पावयतु ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (त्वम्) तुम (नृमादनः) मनुष्यों को आनन्द देनेवाले हो (चर्षणीसहे) जो आप से विमुख मनुष्य हैं, उन पर भी कृपा करनेवाले हो (सस्निः) शुद्धस्वरूप हो (अनुमाद्यः) सर्वथा स्तुति करने योग्य हो (यः) जो इस प्रकार के गुणों के आधार सर्वोपरि देव आप हैं (पवस्व) आप हम पर कृपा करें ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा किसी से राग द्वेष नहीं करते, सब को स्वकर्मानुकूल फल देते हैं। अर्थात् एकमात्र परमात्मा ही पक्षपात से शून्य होकर न्याय करते हैं, इसीलिये परमात्मा को यहाँ “चर्षणीसह” अर्थात् सव पर दया करनेवाला कहा गया है ॥४॥
विषय
सस्त्रिः अनुमाद्यः
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (त्वम्) = तू (नृमादनः) = मनुष्यों को आनन्दित करनेवाला है। तू (चर्षणीसहे) = सब मनुष्यों को अभिभूत करनेवाले प्रभु के लिये (पवस्व) = प्रगतिवाला हो, प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़। तेरी रक्षा करनेवाला व्यक्ति प्रभु को प्राप्त करनेवाला हो । [२] वह तू प्रभु को प्राप्त करानेवाला हो (यः) = जो कि (सस्नि:) = हमारे जीवन को बड़ा शुद्ध बनाता है और (अनुमाद्यः) = उस शुद्धता के अनुपात में ही हर्ष को प्राप्त करानेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम [क] हमारे जीवन को आनन्दमय बनाता है। [ख] हमें शुद्ध करता है और [ग] प्रभु प्राप्ति का पात्र बनाता है ।
विषय
परमेश्वर प्राप्ति का उपदेश।
भावार्थ
हे (सोम) उत्पन्न होने वाले जीव ! (त्वं) तू (नृ-मादनः) अपने नेतृ वर्ग इन्द्रिय गण को तृप्त करने और उनसे स्वयं तृप्त होने वाला है। तू (चर्षणीसहे) समस्त मनुष्यों को वश करने वाले उस प्रभु को प्राप्त करने के लिये (पवस्व) आगे बढ़। (यः सस्निः) जो नित्य शुद्ध, पवित्र और (अनुमाद्यः) निरन्तर सब दिनों हर्ष देने वाला है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २ गायत्री। ३, ५, ७ निचृद् गायत्री। ४, ६ विराड् गायत्री ॥ सप्तर्चं सूकम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, joyous lover and lord of humanity, let the ecstasy of your presence flow purifying for the protection and fulfilment of humanity, pure, generous and adorable as you are.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा कुणाचा रागद्वेष करत नाही. प्रत्येकाला त्याच्या कार्यानुकूल फळ देतो. अर्थात एकमात्र परमात्माच भेदभाव न करता न्याय करतो. त्यासाठी परमात्म्याला येथे ‘चर्षणीसह’ अर्थात सर्वांवर दया करणारा म्हटलेले आहे. ॥४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal