ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 24/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्दो॒ यदद्रि॑भिः सु॒तः प॒वित्रं॑ परि॒धाव॑सि । अर॒मिन्द्र॑स्य॒ धाम्ने॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्दो॒ इति॑ । यत् । अद्रि॑ऽभिः । सु॒तः । प॒वित्र॑म् । प॒रि॒ऽधाव॑सि । अर॑म् । इन्द्र॑स्य । धाम्ने॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्दो यदद्रिभिः सुतः पवित्रं परिधावसि । अरमिन्द्रस्य धाम्ने ॥
स्वर रहित पद पाठइन्दो इति । यत् । अद्रिऽभिः । सुतः । पवित्रम् । परिऽधावसि । अरम् । इन्द्रस्य । धाम्ने ॥ ९.२४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 24; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे परमात्मन् ! त्वं (यत्) यदा (पवित्रम्) पवित्रान्तःकरणं (परिधावसि) अधितिष्ठसि तदा (अद्रिभिः सुतः) अन्तःकरणवृत्तिभिः साक्षात्कृतः (इन्द्रस्य धाम्ने) कर्मयोगिणामन्तःकरणरूपे धाम्नि (अरम्) अलङ्करोषि ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे परमात्मन् ! (यत्) जब तुम (पवित्रम्) पवित्र अन्तःकरणों में (परिधावसि) निवास करते हो, तब (अद्रिभिः सुतः) अन्तःकरण की वृत्तिद्वारा साक्षात्कार को प्राप्त हुए आप (इन्द्रस्य धाम्ने) कर्मयोगी पुरुष के अन्तःकरणरूपी धाम को (अरम्) अलंकृत करते हो ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा अपनी व्यापकता से कर्मयोगी पुरुषों के अन्तःकरणों को अलंकृत करता है। यद्यपि परमात्मा प्रत्येक पुरुष के अन्तःकरण को विभूषित करता है तथापि कर्मयोग वा ज्ञानयोग द्वारा जिन पुरुषों ने अपने अन्तःकरणों को निर्मल बनाया है, उनके अन्तःकरण में परमात्मा का प्रकाश विशेषरूप से प्रतीत होता है, इसीलिये योगियों के अन्तःकरणों का विशेषरूप से प्रकाशित होना कथन किया गया है ॥५॥
विषय
इन्द्रधाम की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (इन्दो) = हे सोम ! (यत्) = जब तू (अद्रिभिः) = [ those who adore ] उपासकों से (सुतः) = उत्पन्न किया हुआ (पवित्रम्) = पवित्र हृदय की ओर (परिधावसि) = गतिवाला होता है तो (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के धाने तेज के लिये (अरम्) = पर्याप्त होता है । अर्थात् तू इस उपासक को प्रभु की प्राप्ति करानेवाला होता है । [२] प्रभु की उपासना से हृदय पवित्र बनता है। हृदय की पवित्रता सोम के रक्षण का साधन बनती है, सुरक्षित सोम बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है। यह सूक्ष्म बुद्धि प्रभु- दर्शन का साधन बनती है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु का उपासक, हृदय की पवित्रता के द्वारा, सोम का रक्षण करनेवाला बनता है। सुरक्षित सोम इसे प्रभु की तेजस्विता को प्राप्त कराता है।
विषय
परमेश्वर प्राप्ति का उपदेश।
भावार्थ
हे (इन्दो) उस प्रभु के प्रति द्रुत गति से जाने वाले, एवं उस के प्रति भक्ति रसादि से आर्द्र जीव ! तू (यत्) जब (अद्रिभिः सुतः) धर्ममेध समाधियों द्वारा परिष्कृत होकर (पवित्रं) परम पावन प्रभु को लक्ष्य करके (परि धावसि) इस संसार से दूर चला जाता है, तब तू (इन्द्रस्य धाम्ने) उस परमैश्वर्यवान् परमेश्वर के परम तेज को प्राप्त करने के लिये (अरम्) पर्याप्त योग्य होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २ गायत्री। ३, ५, ७ निचृद् गायत्री। ४, ६ विराड् गायत्री ॥ सप्तर्चं सूकम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, shower of divine beauty and bliss, perceived, internalised and realised through the mind and vision of the celebrant, you vibrate and shine in sanctified awareness as the absolute beauty, bliss and glory of existence for the human soul.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आपल्या व्यापकतेने कर्मयोगी पुरुषांच्या अंत:करणांना अलंकृत करतो.
टिप्पणी
जरी परमात्मा प्रत्येक पुरुषाच्या अंत:करणाला विभूषित करतो तरी कर्मयोग किंवा ज्ञानयोगाद्वारे ज्या पुरुषांनी आपले अंत:करण निर्मल बनविलेले आहे त्यांच्या अंत:करणात परमात्म्याचा प्रकाश विशेषरूपाने प्रतीत होतो. यासाठी योग्यांच्या अंत:करणांचे विशेष रूपाने प्रकाशित होण्याचे कथन केलेले आहे. ॥५॥
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