ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
ऋषिः - दृळहच्युतः आगस्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒रु॒षो ज॒नय॒न्गिर॒: सोम॑: पवत आयु॒षक् । इन्द्रं॒ गच्छ॑न्क॒विक्र॑तुः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒रु॒षः । ज॒नय॑न् । गिरः॑ । सोमः॑ । प॒व॒ते॒ । आ॒यु॒षक् । इन्द्र॑म् । गच्छ॑न् । क॒विऽक्र॑तुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अरुषो जनयन्गिर: सोम: पवत आयुषक् । इन्द्रं गच्छन्कविक्रतुः ॥
स्वर रहित पद पाठअरुषः । जनयन् । गिरः । सोमः । पवते । आयुषक् । इन्द्रम् । गच्छन् । कविऽक्रतुः ॥ ९.२५.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अरुषः) प्रकाशमानः परमात्मा (गिरः) वेदरूपा गिरः (जनयन्) उत्पादयन् (सोमः) संसारस्य स्रष्टा (इन्द्रम्) जीवात्मानं (आयुषक्) यः कर्मयोगे संसक्तस्तं (गच्छन्) प्राप्नुवन् (पवते) पवित्रयति स च परमात्मा (कविक्रतुः) सर्वज्ञः ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अरुषः) प्रकाशमान परमात्मा (गिरः) वेदरूप वाणियों को (जनयन्) उत्पन्न करनेवाला (सोमः) संसार के उत्पन्न करनेवाला (इन्द्रम्) जीवात्मा को (आयुषक्) जो कि कर्मयोग में लगा हुआ है, (गच्छन्) प्राप्त होकर (पवते) पवित्र करता है (कविक्रतुः) वह परमात्मा सर्वज्ञ है ॥५॥
भावार्थ
शुभाशुभ कर्मों के द्वारा परमात्मा प्रत्येक जीव को प्राप्त है। अर्थात् उनको शुभाशुभ कर्मों के फल देता है और वही परमात्मा वेदरूप वाणियों का प्रकाश करके पुरुषों को शुभाशुभ मार्ग दर्शाकर शुभ कर्मों की ओर प्रेरणा करता है ॥५॥
विषय
कविक्रतुः
पदार्थ
[१] (अरुषः) = आरोचमान (सोमः) = सोम पवते पवित्र करनेवाला होता है। यह सोम अपने रक्षक को तेजस्विता से दीप्त कर देता है। यह (गिरः) = ज्ञान की वाणियों को (जनयन्) = प्रादुर्भूत करता है । इसके रक्षण से बुद्धि तीव्र होती है और हम ज्ञान की वाणियों के तत्वार्थ को देखनेवाले होते हैं । [२] (आयुषक्) = आयु के साथ मेल करनेवाला दीर्घजीवन की प्राप्ति का साधनभूत यह सोम (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष को (गच्छन्) = प्राप्त होता है। और (कविक्रतुः) = क्रान्तप्रज्ञ व शक्तिशाली है । मनुष्य को सूक्ष्म बुद्धिवाला व शक्तिशाली बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'तेजस्वी, तत्त्वद्रष्टा, दीर्घजीवी, सूक्ष्म बुद्धि व शक्ति सम्पन्न ' बनाता है।
विषय
साधनाओं के पश्चात् उपासक को मोक्षलोक की प्राप्ति।
भावार्थ
(अरुषः) तेजः स्वरूप, स्वप्रकाश (सोमः) जीव (आयुषक्) जीवन को प्राप्त करके (गिरः जनयन्) स्तुति वाणियां प्रकट करता हुआ (कवि-क्रतुः) क्रान्तदर्शी ज्ञान वाला होकर (इन्द्रम् गच्छन्) उस परमैश्वर्यवान् प्रभु को प्राप्त होता हुआ (पवते) पवित्र हो जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दृढ़च्युतः आगस्त्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ३, ५, ६ गायत्री। २, ४ निचृद गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, glorious and blissful omniscient creator of the poetry of existence articulating the divine voice of the Veda flows vibrant and omnipresent to loving humanity especially to men of action and enlightenment.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रत्येक जीवाला परमात्मा शुभाशुभ कर्मांद्वारे प्राप्त होतो. अर्थात त्यांना शुभाशुभ कर्मांचे फळ देतो व तोच परमात्मा वेदरूपी वाणीचा प्रकाश करून माणसांना शुभाशुभ मार्ग दर्शवून शुभ कर्माकडे प्रेरित करतो. ॥५॥
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