ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 27/ मन्त्र 2
ए॒ष इन्द्रा॑य वा॒यवे॑ स्व॒र्जित्परि॑ षिच्यते । प॒वित्रे॑ दक्ष॒साध॑नः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । इन्द्रा॑य । वा॒यवे॑ । स्वः॒ऽजित् । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । प॒वित्रे॑ । द॒क्ष॒ऽसाध॑नः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष इन्द्राय वायवे स्वर्जित्परि षिच्यते । पवित्रे दक्षसाधनः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । इन्द्राय । वायवे । स्वःऽजित् । परि । सिच्यते । पवित्रे । दक्षऽसाधनः ॥ ९.२७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 27; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः) स उक्तः परमात्मा (वायवे इन्द्राय) कर्मयोगिने सुलभः (स्वर्जित् परिषिच्यते) विजितसुखास्वादैः पुरुषैः सत्क्रियते (पवित्रे) पवित्रान्तःकरणे च (दक्षसाधनः) सुनीतिं ददाति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः) वह उक्त परमात्मा (वायवे इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये सुलभ होता है (स्वर्जित् परिषिच्यते) जिन लोगों ने सुख को जीत लिया है, उन लोगों से सत्कृत होता है और (पवित्रे) पवित्र अन्तःकरण में (दक्षसाधनः) सुनीति का देनेवाला है ॥२॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा पर दृढ़ विश्वास रखते हैं, उनको परमात्मा सुनीति का दान देता है और वह परमात्मा जिन लोगों ने विषयजन्य सुख को जीत लिया है, उन्हीं की चित्तवृत्तियों का विषय होता है। वा यों कहो कि कर्मयोगी लोग अपने उग्र कर्मों द्वारा उसको उपलब्ध करके उसके भावों को प्राप्त होते हैं। जो लोग आलसी बनकर अपने जन्म को व्यर्थ व्यतीत करते हैं, उनका उद्धार कदापि नहीं होता ॥२॥
विषय
दक्षसाधनः
पदार्थ
[१] (एषः) = यह सोम (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिये होता है । (वायवे) = गतिशीलता के लिये होता है । (स्वर्जित्) = सब प्रकाशों व सुखों का विजय करनेवाला यह सोम (परिषिच्यते) = शरीर में चारों ओर सिक्त होता है। [२] (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में यह (दक्षसाधनः) = सब उन्नतियों को सिद्ध करनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ही ऐश्वर्य, गति व उन्नति का साधक है।
विषय
अभिषेक योग्य पुरुष के गुण।
भावार्थ
(एषः) यह (दक्ष-साधनः) बल से शत्रुओं को वश करने वाला, (स्वर्जित्) सब का विजेता पुरुष, (इन्द्राय) शत्रुओं के नाश करने, ऐश्वर्य के बढ़ाने और (वायवे) वायुवत् प्रबल हो कर प्रजा को जीवन देने और शत्रुओं को मूल से उखाड़ डालने वाले पद के लिये (पवित्रे) देश को दुष्टों से रहित, स्वच्छ करने के विशेष पद पर (परि सिच्यते) सर्वोपरि अभिषेक किया जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेध ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ६ निचृद् गायत्री। ३–५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This all potent and versatile divine spirit of universal joy manifests in the pure consciousness of the karma-yogi and wins the light of heaven for the vibrant meditative soul.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमेश्वरावर दृढ विश्वास ठेवतात त्यांना परमात्मा सुनीतीचे दान देतो. ज्या लोकांनी विषयजन्य सुखाला जिंकलेले असते. त्यांच्या चित्तवृत्तींचा विषय परमात्मा असतो.
टिप्पणी
असे ही म्हणता येईल की कर्मयोगी लोक आपल्या उग्र कर्माद्वारे त्याला प्राप्त करतात जे लोक आळशी बनून आपला जन्म व्यर्थ घालवितात त्यांचा कधीही उद्धार होत नाही. ॥२॥
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