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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 27/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नृमेधः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष नृभि॒र्वि नी॑यते दि॒वो मू॒र्धा वृषा॑ सु॒तः । सोमो॒ वने॑षु विश्व॒वित् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । नृऽभिः॑ । वि । नी॒य॒ते॒ । दि॒वः । मू॒र्धा । वृषा॑ । सु॒तः । सोमः॑ । वने॑षु । वि॒श्व॒ऽवित् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष नृभिर्वि नीयते दिवो मूर्धा वृषा सुतः । सोमो वनेषु विश्ववित् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । नृऽभिः । वि । नीयते । दिवः । मूर्धा । वृषा । सुतः । सोमः । वनेषु । विश्वऽवित् ॥ ९.२७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 27; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एषः) अयं परमात्मा (वनेषु सोमः) प्रार्थनासु सौम्यः (दिवः मूर्धा) द्युलोकस्य मस्तकरूपः (वृषा) सर्वकामदः (सुतः) स्वयंसिद्धः (विश्ववित्) सर्वज्ञश्च एवम्भूतः परमात्मा (नृभिः विनीयते) मनुष्यैरुपास्यो भवति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (एषः) यह परमात्मा (वनेषु सोमः) प्रार्थनाओं में सौम्य स्वभाववाला है (दिवः मूर्धा) और द्युलोक का मूर्धारूप है (वृषा) सब कामनाओं को देनेवाला है (सुतः) स्वयंसिद्ध है (विश्ववित्) सर्वज्ञ है, एवंभूत परमात्मा (नृभिः विनीयते) मनुष्यों का उपास्य देव है ॥३॥

    भावार्थ

    ईश्वर की आज्ञा को पालन करनेवाले नम्र पुरुषों के लिये परमात्मा सौम्यस्वभाव है और जो उद्दण्ड अनाज्ञाकारी हैं, उनके लिये परमात्मा उग्ररूप है। उक्त परमात्मा से सदैव अपने कल्याण की प्रार्थना करनी चाहिये ॥३॥

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    विषय

    दिवः-मूर्धा-वृषा

    पदार्थ

    [१] (एषः) = यह सोम (नृभिः) = [कर्मनेतृभिः सा० ] यज्ञ आदि उत्तम कर्मों का प्रणयन करनेवालों से (विनीयते) = शरीर के अंग-प्रत्यंग में प्राप्त कराया जाता है । यह (दिवः मूर्धा) = ज्ञान का शिखर बनता है और (सुतः) = सम्यक् उत्पन्न हुआ हुआ (वृषा) = शक्ति का सेचन करनेवाला होता है । [२] यह (सोमः) = सोम [वीर्य] (वनेषु) = उपासकों में (विश्ववित्) = सब वसुओं को प्राप्त करानेवाला होता है [विद् लाभे] ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञान के दृष्टिकोण से हमें शिखर पर पहुँचाता है और शक्तिशाली बनाता है।

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    विषय

    उसका कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (एषः सोमः) वह उत्तम शासनकुशल, (विश्ववित्) सब का ज्ञाता, (वृषा) बलवान्, प्रजा पर सुखों की वृष्टि करने वाला, (दिवः मूर्धा) इस भूमि पर शिर के तुल्य उन्नत होकर (नृभिः) नायक उत्तम पुरुषों से (वनेषु) समस्त ऐश्वर्यों पर (सुतः) अभिषिक्त करके (वि नीयते) विशेष रूप से प्राप्त किया जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नृमेध ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ६ निचृद् गायत्री। ३–५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Soma, joyous spirit of divinity, is the summit of heaven, infinitely generous, self-existent and omniscient, and with meditation, the ecstasy of it is collected in abundance in the consciousness by the dedicated sages.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वराची आज्ञा पालन करणाऱ्या नम्र पुरुषांसाठी परमात्मा सौम्य स्वभावाचा आहे व जे उद्धट व अवज्ञा करणारे असतात. त्यांच्यासाठी परमात्मा उग्ररूप आहे. आपल्या कल्याणासाठी त्या परमेश्वराची सदैव प्रार्थना केली पाहिजे. ॥३॥

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