ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
ए॒ष ग॒व्युर॑चिक्रद॒त्पव॑मानो हिरण्य॒युः । इन्दु॑: सत्रा॒जिदस्तृ॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । ग॒व्युः । अ॒चि॒क्र॒द॒त् । पव॑मानः । हि॒र॒ण्य॒ऽयुः । इन्दुः॑ । स॒त्रा॒ऽजित् । अस्तृ॑तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष गव्युरचिक्रदत्पवमानो हिरण्ययुः । इन्दु: सत्राजिदस्तृतः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । गव्युः । अचिक्रदत् । पवमानः । हिरण्यऽयुः । इन्दुः । सत्राऽजित् । अस्तृतः ॥ ९.२७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 27; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अस्तृतः एषः) अयमुक्तोऽविनाशी परमात्मा (सत्राजित्) सर्वविधशत्रूणां विजयं कृत्वा सदाचारिभ्यो (हिरण्ययुः) धनं ददाति किञ्च (पवमानः) पुनानः (अचिक्रदत्) निर्भयतामुपदिशति स एव परमात्मा (गव्युः) भूम्यादि धनं वितरति (इन्दुः) प्रकाशरूपश्चास्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अस्तृतः एषः) यह उक्त अविनाशी परमात्मा (सत्राजित्) सब प्रकार के शत्रुओं को जीत कर सदाचारियों को (हिरण्ययुः) धन देता है और (पवमानः) पवित्र करता हुआ (अचिक्रदत्) निर्भयता का उपदेश करता है और वही परमात्मा (गव्युः) भूम्यादि धनों का दाता है (इन्दुः) प्रकाशस्वरूप है ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा जिन लोगों पर प्रसन्न होता है, उनको भूम्यादि धनों का स्वामी बनाता है और उनको हिरण्यादि ऐश्वर्यों का स्वामी बनाकर उनसे शत्रुओं को परास्त कराता है ॥४॥
विषय
गव्यु-हिरण्ययु
पदार्थ
[१] (एषः) = यह सोम (गव्युः) = हमारे लिये प्रशस्त इन्द्रियों की कामना करता है, इन्द्रियों को शक्तिशाली बनाता है। (अचिक्रदत्) = प्रभु का आह्वान करता है, सोमरक्षण से मनुष्य प्रभु की ओर झुकाववाला होता है । (पवमानः) = यह हमारे जीवनों को पवित्र करता है । (हिरण्ययुः) = [हिरण्यं वै ज्योति:] हमारे लिये ज्ञान ज्योति की कामनावाला होता है । [२] (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला यह सोम (सत्राजित्) = महान् शत्रुभूत आसुर वृत्तियों को जीतनेवाला होता है और (अस्तृतः) = स्वयं कभी हिंसित नहीं होता। शरीर में सोम के रक्षित होने पर रोग इस पर कभी आक्रमण नहीं कर पाते ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम [क] हमारी इन्द्रियों को उत्तम बनाता है, [ख] हमें प्रभु-प्रवण करता है, [ग] पवित्र करता है, [घ] ज्ञान - ज्योति को दीप्त करता है, [ङ] हमें रोगादि शत्रुओं से आक्रान्त नहीं होने देता।
विषय
उसका प्रभाव।
भावार्थ
(एषः) वह (गव्युः) भूमि, इन्द्रिय, वेदवाणी आदि का स्वामी, जितेन्द्रिय विद्वान्, (हिरण्ययुः) धन का स्वामी, (इन्दुः) ऐश्वर्यवान्, दयार्द्र स्वभाव, (अस्तृतः) अहिंसक (सत्राजित्) सत्य के बल से जीतने वाला, (पवमानः) सब को पवित्र करता हुआ (अचि-क्रदत्) शासन करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेध ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ६ निचृद् गायत्री। ३–५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
It loves the earth and earthly joys and loves to give, speaking loud and bold its own eternal Word, it is pure and purifier, it loves the golden beauty and prosperity of life and loves to bless, it is soothing and self-refulgent beautiful, conqueror of all battles of cosmic dynamics, and eternally invincible.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा ज्या लोकांवर प्रसन्न होतो त्यांना भूमी इत्यादी धनांचा स्वामी बनवितो व त्यांना हिरण्य इत्यादी ऐश्वर्याचा स्वामी बनवून त्यांच्या शत्रूंना पराजित करतो. ॥४॥
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