ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 34/ मन्त्र 3
वृषा॑णं॒ वृष॑भिर्य॒तं सु॒न्वन्ति॒ सोम॒मद्रि॑भिः । दु॒हन्ति॒ शक्म॑ना॒ पय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठवृषा॑णम् । वृष॑ऽभिः । य॒तम् । सु॒न्वन्ति॑ । सोम॑म् । अद्रि॑ऽभिः । दु॒हन्ति॑ । शक्म॑ना । पयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषाणं वृषभिर्यतं सुन्वन्ति सोममद्रिभिः । दुहन्ति शक्मना पय: ॥
स्वर रहित पद पाठवृषाणम् । वृषऽभिः । यतम् । सुन्वन्ति । सोमम् । अद्रिऽभिः । दुहन्ति । शक्मना । पयः ॥ ९.३४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 34; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
विद्वांसः (वृषाणम्) सर्वकामदं (सोमम्) परमात्मानं (यतम्) बुद्धिविषयं विधाय (वृषभिः अद्रिभिः) अखिलकामसाधिकाभिः इन्द्रियवृत्तिभिः (शक्मना) ज्ञानयोगेन कर्मयोगेन च (सुन्वन्ति) प्रेरयन्तः (पयः) ब्रह्मानन्दं (दुहन्ति) अनुभवन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
विद्वान् लोग (वृषाणम्) सब कामनाओं के देनेवाले (सोमम्) परमात्मा को (यतम्) ज्ञान का विषय बनाकर (वृषभिः अद्रिभिः) अखिल कामनाओं की साधक इन्द्रियवृत्तियों द्वारा (शक्मना) ज्ञानयोग और कर्म योगद्वारा (सुन्वन्ति) प्रेरणा करते हुए (पयः) ब्रह्मानन्द को (दुहन्ति) दुहते हैं ॥३॥
भावार्थ
जो लोग कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगी बनकर अभ्यास करते हैं, वे ही लोग ब्रह्मामृतरूप दुग्ध को परमात्मरूप कामधेनु से दोहन करते हैं, अन्य नहीं ॥३॥
विषय
आप्यायन
पदार्थ
[१] (वृषाणम्) = शक्ति को देनेवाले, (वृषभिः यतम्) = शक्तिशाली पुरुषों से शरीर में ही संयत किये गये (सोमम्) = सोम को [वीर्यशक्ति को] (अद्रिभिः) = उपासनाओं के द्वारा (सुन्वन्ति) = अपने में उत्पन्न करते हैं। प्रभु की उपासना से सोम शरीर में ही सुरक्षित रहता है । [२] (शक्मना) = शक्ति की प्राप्ति के हेतु से ये उपासक इस सोम से (पयः दुहन्ति) = शरीर में आप्यायन-वर्धन का दोहन करते हैं, प्रपूरण करते हैं। सोम के रक्षण से सब अंगों की शक्ति का वर्धन व आप्यायन होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से सब अंगों की शक्ति का वर्धन करते हैं ।
विषय
उनका सत्कार।
भावार्थ
(वृषभिः यतम्) बलवान् पुरुषों से सम्बद्ध, (वृषाणम् सोमम्) बलवान्, ऐश्वर्यवान् शासक की (अद्रिभिः) नाना भोग साधनों से (सुन्वन्ति) सत्कार करते हैं और (शक्मना) शक्ति से उसके (पयः) बलवीर्य को (दुहन्ति) बढ़ाते और पूर्ण करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४ निचृद गायत्री। ३, ५, ६ गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Effusive and abundant generative energy of soma, divine creativity, collected and controlled by virile and visionary sages with adamantine discipline of body, sense and mind, later scholarly yogis distil and advance further with their spiritual power and thus create still higher food for the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक कर्मयोगी व ज्ञानयोगी बनून अभ्यास करतात तेच लोक ब्रह्मामृतरूपी दुग्ध परमात्मरूपी कामधेनूद्वारे दोहन करतात, इतर नाही. ॥३॥
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