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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 34/ मन्त्र 4
    ऋषिः - त्रितः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    भुव॑त्त्रि॒तस्य॒ मर्ज्यो॒ भुव॒दिन्द्रा॑य मत्स॒रः । सं रू॒पैर॑ज्यते॒ हरि॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भुव॑त् । त्रि॒तस्य॑ । मर्ज्यः॑ । भुव॑त् । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रः । सम् । रू॒पैः । अ॒ज्य॒ते॒ । हरिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भुवत्त्रितस्य मर्ज्यो भुवदिन्द्राय मत्सरः । सं रूपैरज्यते हरि: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भुवत् । त्रितस्य । मर्ज्यः । भुवत् । इन्द्राय । मत्सरः । सम् । रूपैः । अज्यते । हरिः ॥ ९.३४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 34; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    परमात्मा (त्रितस्य) श्रवणमनननिदिध्यासनैः त्रिभिः साधनैः (मर्ज्यः भुवत्) उपासनीयः (इन्द्राय मत्सरः भुवत्) विज्ञानिभ्यः आह्लादजनकश्चास्ति तथा (हरिः रूपैः समज्यते) पापशमकः परमात्मा ब्रह्माण्डरूपैः स्वकार्यैः अभिव्यक्तो भवति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    परमात्मा (त्रितस्य) श्रवण मनन निदिध्यासन इन तीनों साधनों से (मर्ज्यः भुवत्) उपासनीय है और (इन्द्राय मत्सरः भुवत्) विज्ञानियों के लिये आह्लादकारक है तथा (हरिः रूपैः समज्यते) पापनाशक परमात्मा अपने ब्रह्माण्डरूप कार्यों से अभिव्यक्त होता है ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा की रचना से उसकी सत्ता का स्पष्ट प्रमाण मिलता है अर्थात् जो नियम इस ब्रह्माण्ड में पाये जाते हैं, उनका नियन्ता वही अवश्य मानना पड़ता है। उस नियन्ता का साक्षात्कार यम-नियमादि साधनों द्वारा होता है, अन्यथा नहीं ॥४॥

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    विषय

    मर्ज्य:- मत्सरः

    पदार्थ

    [१] यह सोम (त्रितस्य) = ' काम-क्रोध-लोभ' को तैर जानेवाले का (मर्ज्य:) = शोधन करनेवालों में उत्तम होता है। सुरक्षित हुआ हुआ सोम त्रित के जीवन को बड़ा सुन्दर बना देता है । यह (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मत्सरः) = आनन्द का संचार करनेवाला (भुवत्) = होता है । शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ सोम उल्लास को पैदा करता है। [२] यह (हरिः) =‍ सब रोगों का हरण करनेवाला सोम (रूपैः) = सौन्दर्यों से (समज्यते) = समलंकृत किया जाता है। शरीर में सोम के सुरक्षित होने पर सब अंग-प्रत्यंग शोभायमान होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम जीवन को शुद्ध, उल्लासमय व उत्तम रूपवान् बनाता है।

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    विषय

    सर्वोपरि पुरुष का स्थान।

    भावार्थ

    (त्रितस्य) सब से ऊपर के शासक के (इन्द्राय) परमेश्वर पद के लिये (मत्सरः) आनन्दप्रद, सब को सुख देने वाला, सर्वपोषक पुरुष ही (मर्ज्यः भुवत्) अभिषेक योग्य होता है। वह (हरिः) सर्व दुःखहारी पुरुष (रूपैः समज्यते) नाना रुचिकर पदार्थों से सुशोभित किया जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४ निचृद गायत्री। ३, ५, ६ गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, lord of peace and bliss, is the object of pure meditation for the yogi past the bonds of body, sense and mind, the object for inspiration and ecstasy for the yogi of power on way to aesthetic meditation, and for the average person he is perceived through the infinite forms of divine reflection in life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या रचनेने त्याच्या सत्तेचे स्पष्ट प्रमाण मिळते. अर्थात जे नियम या ब्रह्मांडात आढळतात त्याचा नियन्ता ही अवश्य मानावा लागतो. त्या नियन्त्याचा साक्षात्कार यम नियम इत्यादी साधनांद्वारे होतो, अन्यथा नाही. ॥४॥

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