ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 43/ मन्त्र 3
ऋषिः - मेध्यातिथिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
पु॒ना॒नो या॑ति हर्य॒तः सोमो॑ गी॒र्भिः परि॑ष्कृतः । विप्र॑स्य॒ मेध्या॑तिथेः ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ना॒नः । या॒ति॒ । ह॒र्य॒तः । सोमः॑ । गीः॒ऽभिः । परि॑ऽकृतः । विप्र॑स्य । मेध्य॑ऽअतिथेः ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनानो याति हर्यतः सोमो गीर्भिः परिष्कृतः । विप्रस्य मेध्यातिथेः ॥
स्वर रहित पद पाठपुनानः । याति । हर्यतः । सोमः । गीःऽभिः । परिऽकृतः । विप्रस्य । मेध्यऽअतिथेः ॥ ९.४३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 43; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(गीर्भिः परिष्कृतः) वेदवाग्भिः स्तुतः (हर्यतः सोमः) दर्शनीयः परमात्मा (पुनानः) पवित्रयन् (मेध्यातिथेः विप्रस्य) ज्ञानयोगिनो विदुषो हृदये (याति) निवसति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(गीर्भिः परिष्कृतः) वेदवाणियों से स्तुति किया गया (हर्यतः सोमः) दर्शनीय परमात्मा (पुनानः) पवित्र करता हुआ (मेध्यातिथेः विप्रस्य) ज्ञानयोगी विद्वान् के हृदय में (याति) निवास करता है ॥३॥
भावार्थ
जो लोग ज्ञानयोगी बनकर ज्ञानप्रदीप से अपने हृदयमन्दिर को प्रदीप्त करते हैं, उनके हृदयरूपी मन्दिर में परमात्मा का पूर्णतया आभास होता है ॥३॥
विषय
विप्र मेध्यातिथि द्वारा सोम का पवित्रीकरण
पदार्थ
[१] (विप्रस्य) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले, (मेध्यातिथेः) = पवित्र प्रभु को अपना अतिथि बनानेवाले, प्रभु का, हृदयासन पर बिठाकर, आतिथ्य करनेवाले, ज्ञानी पुरुष की (गीभिः) = स्तुति- वाणियों से यह (सोमः) = सोम [वीर्य] (परिष्कृतः) = सुसंस्कृत होता है। प्रभु की उपासना, वासनाओं को नहीं पैदा होने देती। यह वासनाशून्यता सोम को पवित्र रखती है । [२] यह पवित्र (हर्यतः) = कान्ति से युक्त सोम (पुनानः) = हमारे जीवन को पवित्र करता हुआ (याति) = हमें प्राप्त होता है, शरीर के अंग-प्रत्यंग में गतिवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ-स्तुति - वाणियों से परिष्कृत हुआ हुआ सोम हमें पवित्र करता है ।
विषय
सर्वशासक प्रभु।
भावार्थ
(मेध्यातिथेः) यज्ञ में अतिथिवत् पूज्य (विप्रस्य) विद्वान् पुरुष की (गीर्भिः) वाणियों द्वारा (परिष्कृतः) सुशोभित (हर्यतः) कान्तियुक्त (सोमः) ऐश्वर्यवान् प्रभु (पुनानः याति) हमें पवित्र करता हुआ प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेध्यातिथिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ४, ५ गायत्री । ३, ६ निचृद् गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pure and purifying, blissful in experience, adored and glorified with songs of divinity by the vibrant sagely celebrant dedicated to the yoga of the knowledge way, Soma vibrates in the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक ज्ञानयोगी बनून ज्ञानप्रदीपाने आपल्या हृदय मंदिराला प्रदीप्त करतात. त्यांच्या हृदयरूपी मंदिरात परमात्म्याचा पूर्ण अवभास (प्रकाश) होतो. ॥३॥
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