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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 49/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कविभार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स न॑ ऊ॒र्जे व्य१॒॑व्ययं॑ प॒वित्रं॑ धाव॒ धार॑या । दे॒वास॑: शृ॒णव॒न्हि क॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । ऊ॒र्जे । वि । अ॒व्यय॑म् । प॒वित्र॑म् । धा॒व॒ । धार॑या । दे॒वासः॑ । शृ॒णव॑न् । हि । क॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स न ऊर्जे व्य१व्ययं पवित्रं धाव धारया । देवास: शृणवन्हि कम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । ऊर्जे । वि । अव्ययम् । पवित्रम् । धाव । धारया । देवासः । शृणवन् । हि । कम् ॥ ९.४९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 49; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (सः) स त्वं (ऊर्जे) ज्ञाने तथा क्रियायां च बलप्राप्तये (नोऽव्ययं पवित्रम्) ममान्तःकरणं निश्चलं कृत्वा (धारया धाव) ज्ञानस्य धारया शुद्धं कुरु। अथ च हे जगदीश्वर ! (कम्) भवदुच्चारितां वेदवाणीं (देवासः हि) दिव्यगुणयुक्ता विद्वांस एव (शृणवन्) शृण्वन्तु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (सः) वह आप (ऊर्जे) ज्ञान और क्रिया में बलप्राप्ति के लिये (नोऽव्ययं पवित्रम्) हमारे अन्तःकरण को निश्चल करके (धारया धाव) ज्ञान की धारा से शुद्ध करें और हे भगवन् ! (कम्) आपकी उच्चारित वेदवाणियों को (देवासः हि) दिव्य गुणवाले विद्वान् ही (शृणवन्) सुनें ॥४॥

    भावार्थ

    जो लोग दिव्य शक्तिवाले होते हैं, वे ही परमात्मा की वेदरूपी वाणी का श्रवण मनन आदि कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥४॥

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    विषय

    पवित्र हृदय में प्रभु-प्रेरणा का श्रवण

    पदार्थ

    [१] हे सोम! (सः) = वह तू (नः) = हमें ऊर्जे बल व प्राणशक्ति को प्राप्त कराने के लिये (धाव) = प्राप्त हो (अव्ययम्) = [अ-वि- अय्] इधर-उधर न भटकनेवाले (पवित्रम्) = पवित्र हृदय को तू (वि धाव) = विशेष रूप से शुद्ध कर डाल। [२] (हि) = जिससे निश्चयपूर्वक (देवासः) = देववृत्ति के बनकर हम लोग (कम्) = प्रभु की सुखकर प्रेरणा को (शृण्वन्) = सुननेवाले बनें। हमें अन्तः स्थित प्रभु की प्रेरणा सुन पड़े। यह प्रेरणा हमें उत्थान की ओर ले जाकर देव बनाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हृदय पवित्र व न भटकनेवाला बनता है । वहाँ प्रभु की प्रेरणा सुन पड़ती है।

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    विषय

    जलधारा से अन्न के तुल्य वाणी से ज्ञानप्राप्ति की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (सः) वह तू (धारया ऊर्जे) अन्न की वृद्धि के लिये जल धारावत् (धारया) वाणी से (नः ऊर्जे) हमारे बल की वृद्धि के लिये (अव्ययं पवित्रं वि धाव) अक्षय, पवित्र ज्ञान प्राप्त करा। जिसे (देवासः शृणवन् हि) श्रवण किया करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For energy, give us showers in streams of imperishable purity of heart, and let the noble devotees hear the blissful music of the rain.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक दिव्यशक्ती असणारे असतात तेच परमात्म्याच्या वेदरूपी वाणीचे श्रवण मनन इत्यादी करू शकतात. ॥४॥

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