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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 50/ मन्त्र 4
    ऋषिः - उचथ्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ प॑वस्व मदिन्तम प॒वित्रं॒ धार॑या कवे । अ॒र्कस्य॒ योनि॑मा॒सद॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । प॒व॒स्व॒ । म॒दि॒न्ऽत॒म॒ । प॒वित्र॑म् । धार॑या । क॒वे॒ । अ॒र्कस्य॑ । योनि॑म् । आ॒ऽसद॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे । अर्कस्य योनिमासदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । पवस्व । मदिन्ऽतम । पवित्रम् । धारया । कवे । अर्कस्य । योनिम् । आऽसदम् ॥ ९.५०.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 50; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अर्कस्य योनिमासदम्) तेजस्विनां योनिं प्राप्तुं तेजस्वी भवनायेति यावत् (मदिन्तम) हे आनन्दवर्धक (कवे) हे वेदरूपकाव्यरचयितः ! (धारया) स्वज्ञानधारया (पवित्रम् आपवस्व) ममान्तःकरणं पवित्रय ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अर्कस्य योनिमासदम्) तेज की योनि को प्राप्त होने के लिये अर्थात् तेजस्वी बनने के लिये (मदिन्तम) हे आनन्द के बढ़ानेवाले ! (कवे) हे वेदरूप काव्य के रचनेवाले ! (धारया) अपनी ज्ञान की धारा से (पवित्रम् आपवस्व) मेरे अन्तःकरण को पवित्र करिये ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा ही अपने ज्ञानप्रदीप से उपासकों के हृदयरूपी मन्दिर को प्रकाशित करता है ॥४॥

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    विषय

    मदिन्तम कवि

    पदार्थ

    [१] हे (मदिन्तम) = अत्यन्त हर्ष को देनेवाले सोम! (आपवस्व) = तू हमें समन्तात् पवित्र कर । हे (कवे) = क्रान्तदर्शिन् ! बुद्धि को सूक्ष्म बनानेवाले सोम ! (पवित्रम्) = पवित्र हृदयवाले पुरुष का (धारया) = तू धारण कर । पवित्र हृदयवाले पुरुष में ही सोम का रक्षण होता है। रक्षित सोम उसका धारण करता है । सोम हमारा रक्षण इस प्रकार करता है कि यह हमारे ज्ञान को दीप्त करता है। [२] यह सोम अर्कस्य उस अर्चनीय प्रभु के (योनिम्) = स्थान को (आसदम्) = आसीन होने के लिये होता है । अर्थात् सुरक्षित सोम हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें आनन्द को प्राप्त कराता है। ज्ञान को यह बढ़ानेवाला है । अन्ततः यह हमें ब्रह्मलोक में आसीन करता है।

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    विषय

    अर्चना योग्य के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (मदिन्तम) अति हर्षजनक ! हे (कवे) क्रान्तदर्शिन् ! (अर्कस्य) सूर्यवत्, तेजस्वी और अर्चनायोग्य, पूज्य (योनिम् आसदम्) पद को प्राप्त करने के लिये (धारया) वेदवाणी के द्वारा (पवित्रं आ पवस्व) अपना पवित्र करने वाला तेज, ज्ञान प्रकट कर, सब ओर बहा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उचथ्य ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ४, ५ गायत्री। ३ निचृद् गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Flow in and purify, O poetic visionary and most exhilarating Spirit of ecstasy, the sacred heart of the celebrant in streams of beauty, light and sweetness to join the celebrant at the centre of his faith and devotion.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्माच आपल्या ज्ञानप्रदीपाने उपासकाचे हृदयरूपी मंदिर प्रकाशित करतो. ॥४॥

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