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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 53/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒या नि॑ज॒घ्निरोज॑सा रथसं॒गे धने॑ हि॒ते । स्तवा॒ अबि॑भ्युषा हृ॒दा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒या । नि॒ऽज॒घ्निः । ओज॑सा । र॒थ॒ऽस॒ङ्गे । धने॑ । हि॒ते । स्तवै॑ । अबि॑भ्युषा । हृ॒दा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अया निजघ्निरोजसा रथसंगे धने हिते । स्तवा अबिभ्युषा हृदा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अया । निऽजघ्निः । ओजसा । रथऽसङ्गे । धने । हिते । स्तवै । अबिभ्युषा । हृदा ॥ ९.५३.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 53; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! भवान् (अया ओजसा निजघ्निः) अनेन स्वशत्रुदलनशीलमहाबलेन स्वशत्रुशक्तिशमकोऽस्ति | एतेन (रथसङ्गे धने हिते) शरीररूपरथस्य हितकारकधनाद्यैश्वर्यनिमित्तं (अबिभ्युषा हृदा स्तवै) निवृत्तभयान्तःकरणेन भवन्तं स्तुमः ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! आप (अया ओजसा निजघ्निः) अपने इस शत्रुनाशनशील पराक्रम से शत्रु की शक्तियों को शमन करनेवाले हैं। इस से (रथसङ्गे धने हिते) शरीररूप रथ के हितकारक धनादि ऐश्वर्यनिमित्त (अबिभ्युषा हृदा स्तवै) अन्तःकरणों से आपकी स्तुति करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    जो पुरुष शुभ कार्य करते हुए परमात्मा के उपासनासमय निर्भयता से उसकी समक्षता लाभ करते हैं, वे सदैव तेजस्वी और ब्रह्मवर्चस्वी आदि दिव्यभावों को उपलब्ध करते हैं ॥२॥

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    विषय

    ओजस्विता से शत्रुहनन

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! गत मन्त्र के अनुसार तेरे रक्षण के द्वारा उत्पन्न (अया ओजसा) = इस ओज के द्वारा (निजघ्निः) = मैं शत्रुओं का हनन करनेवाला होता हूँ। [२] रथसंगे इस शरीर रूप रथ के वासनाओं के साथ युद्ध के उपस्थित होने पर हिते धने हितकर धन की प्राप्ति के निमित्त मैं (अबिभ्युषा) = न भयभीत हुए हुए (हृदा) = हृदय से (स्तवा) = उस प्रभु का स्तवन करता हूँ। [संग=fight, encounter] प्रभु का स्तवन ही मुझे वह शक्ति देता है, जिससे कि मैं इन काम-क्रोध आदि शत्रुओं का पराभव कर पाता हूँ। इनका पराभव ही मुझे सोम के रक्षण के योग्य बनाता है और तभी मैं ओजस्वी व विजयी बनता हूँ। इस स्थिति ही में मुझे सब इष्ट धनों का लाभ होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु-स्तवन से मैं ओजस्वी बनकर शत्रुओं का विजय करता हूँ। अब सोमरक्षण के होने पर मुझे सब इष्ट धन प्राप्त होते हैं ।

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    विषय

    सेनापति के कर्तव्य।

    भावार्थ

    हे स्वामिन् ! (रथ-सङ्गे) रथों वा रमणीय पदार्थों को प्राप्त करने और (हिते धने) हितकारी धन के निमित्त, मैं (अया ओजसा) इस बल पराक्रम से (निजघ्निः) शत्रुओं का नाश करने और आगे बढ़ने वाला होकर (अबिभ्युषा हृदा) भयरहित चित्त से (स्तवै) तेरी स्तुति करता हूं और करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सार ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ३ निचृद् गायत्री। २, ४ गायत्री ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    By this power and valour of yours you eliminate the negative forces. In this battle of the body chariot on hand in this life, we adore you with a fearless heart, you being the protector and guide.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष शुभ कार्य करून परमात्म्याची उपासना करत निर्भयतेने त्याच्या समकक्षतेचा लाभ घेतात ते सदैव तेजस्वी व ब्रह्मवर्चस्वी इत्यादी दिव्य भाव प्राप्त करतात. ॥२॥

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