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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 72/ मन्त्र 6
    ऋषिः - हरिमन्तः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अं॒शुं दु॑हन्ति स्त॒नय॑न्त॒मक्षि॑तं क॒विं क॒वयो॒ऽपसो॑ मनी॒षिण॑: । समी॒ गावो॑ म॒तयो॑ यन्ति सं॒यत॑ ऋ॒तस्य॒ योना॒ सद॑ने पुन॒र्भुव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अं॒शुम् । दु॒ह॒न्ति॒ । स्त॒नय॑न्तम् । अक्षि॑तम् । क॒विम् । क॒वयः॑ । अ॒पसः॑ । म॒नी॒षिणः॑ । सम् । ई॒म् इति॑ । गावः॑ । म॒तयः॑ । य॒न्ति॒ । स॒म्ऽयतः॑ । ऋ॒तस्य॑ । योना॑ । सद॑ने । पु॒नः॒ऽभुवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अंशुं दुहन्ति स्तनयन्तमक्षितं कविं कवयोऽपसो मनीषिण: । समी गावो मतयो यन्ति संयत ऋतस्य योना सदने पुनर्भुव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अंशुम् । दुहन्ति । स्तनयन्तम् । अक्षितम् । कविम् । कवयः । अपसः । मनीषिणः । सम् । ईम् इति । गावः । मतयः । यन्ति । सम्ऽयतः । ऋतस्य । योना । सदने । पुनःऽभुवः ॥ ९.७२.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 72; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पुनर्भुवः) भूयोभूयोऽभ्यासकारिण्यः (गावो मतयः) बुद्धिरूपा इन्द्रियवृत्तयः (संयतः) संयमिताः (ऋतस्य योना सदने) सत्यस्य यज्ञे स्थिराः (ईम्) उक्तं परमात्मानं (संयन्ति) प्रापयन्ति। अथ च (मनीषिणः) बुद्धिमन्तः (अपसः) कर्मयोगिनः (कवयः) स्तोतारो जनाः (कविम्) सर्वज्ञं (अंशुम्) सर्वव्यापकं (स्तनयन्तम्) जगद्विस्तारयन्तं (अक्षितम्) अविनाशिनं परमेश्वरं (दुहन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पुनर्भुवः) बारम्बार अभ्यास करनेवाली (गावो मतयः) बुद्धिरूपी इन्द्रियवृत्तियें (संयतः) संयम को प्राप्त हुई (ऋतस्य योना सदने) सचाई के यज्ञ में स्थिर (ईम्) उक्त परमात्मा को (संयन्ति) प्राप्त कराती हैं और (मनीषिणः) बुद्धिमान् (अपसः) कर्मयोगी (कवयः) स्तुति की शक्ति रखनेवाले लोग (कविम्) सर्वज्ञ (अंशुम्) सर्वव्यापक तथा (स्तनयन्तम्) सम्पूर्ण संसार का विस्तार करनेवाले (अक्षितम्) क्षयरहित परमात्मा का   (दुहन्ति) साक्षात्कार करते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    जो लोग सर्वाधार और सर्वेश्वर परमात्मा के ज्ञान को लाभ करते हैं, वे ही उसके सच्चाई के यज्ञ के ऋत्विक् बन सकते हैं, अन्य नहीं ॥६॥

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    विषय

    गुरु विद्वान् से ज्ञान की प्राप्ति का उपदेश। उसके चरणों में जिज्ञासुओं का आगमन।

    भावार्थ

    (मनीषिणः कवयः) बुद्धिमान्, दूरदर्शी, (अपसः) कर्म-कुशल पुरुष उसके (अंशुम्) सर्वव्यापक (स्तनयन्तम्) मेघवत् गर्जन वाले, वा माता के स्तनवत् सब प्राणियों को दुग्धवत् अन्न प्राण देने वाले मातृवत्, गुरुवत्, उपदेशप्रद (अक्षितं) अक्षय, अविनाशी, (कविं) क्रान्तदर्शी, पुरुष को प्राप्त कर उससे (ऋतस्य अक्षितं) सत्य ज्ञान वेद का अक्षय कोप (दुहन्ति) प्राप्त करते हैं। और (मतयः) विचारवान् पुरुष (गावः) गौओं के समान, आत्मा के प्रति इन्द्रियों के तुल्य (संयतः) एक साथ यत्नशील होकर वा संयत सुसम्बद्ध, सुव्यवस्थित होकर (ऋतस्य योना) सत्य ज्ञान के आश्रय (सदने) परम आश्रय में (पुनर्भुवः) पुनः २ प्रकट होने वाले (यन्ति) प्राप्त होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    हरिमन्त ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१—३, ६, ७ निचृज्जगती। ४, ८ जगती। ५ विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    स्तनयन् अक्षित कवि

    पदार्थ

    [१] (कवयः) = क्रान्तप्रज्ञ-तत्त्वद्रष्टा, (अपस:) = कर्मशील, (मनीषिणः) = मन का शासन करनेवाले लोग (अंशुम्) = प्रकाश की रश्मियों को उत्पन्न करनेवाले इस सोम को (दुहन्ति) = अपने में प्रपूरित करते हैं। यह सोम (स्तनयन्तम्) = गर्जना करनेवाला है, प्रभु का स्तवन करनेवाला है, हमें प्रभु-प्रवण बनाता है । (अक्षितम्) = हमें क्षीण नहीं होने देता, सोमरक्षण से हमारी शक्ति ठीक बनी रहती है। (कविम्) = यह हमें क्रान्तप्रज्ञ बनाता है, हमारी बुद्धि को सूक्ष्म करता है, मन में 'स्तनयन्', शरीर में 'आक्षित' तथा मस्तिष्क में 'कवि' बनाता है। [२] सोम का अपने में दोहन [प्रपूरण] करने पर (ई) = निश्चय से (गावः) = ज्ञान की वाणियाँ व (मतयः) = बुद्धियाँ (संयतः) = परस्पर संगत हुईं - हुईं (संयन्ति) = इस सोमरक्षक को प्राप्त होती हैं । परिणामतः, ये सोमरक्षक पुरुष (ऋतस्य योना) = ऋत के उत्पत्ति - स्थान, सदने उस सर्वाधार प्रभु में, सब के आशयभूत प्रभु में, (पुनर्भुवः) = फिर प्रकट होनेवाले होते हैं । अर्थात् ये ब्रह्मलोक में निवासवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण हमें 'प्रभु की स्तुति करनेवाला, अक्षीण, क्रान्तदर्शी' बनाता है। इसके रक्षण से हमें ज्ञान व बुद्धि प्राप्त होती हैं (धी- विद्या) तथा अन्ततः हम ब्रह्म के साथ विचरते हैं ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All perceptions, volitions, thoughts and feelings, collected together into the mind through repeated practice, absorb into the heart centre of the original seat of meditative meet of the soul with divinity, and there in awareness wise men of holy action and creative vision receive and experience soma showers of joy, vital, voluble, imperishable, creative and blissful.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक सर्वाधार व सर्वेश्वर परमेश्वराचे ज्ञान प्राप्त करतात, तेच सत्यरूपी यज्ञाचे ऋत्विक बनू शकतात, इतर नव्हे. ॥६॥

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