ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 72/ मन्त्र 8
स तू प॑वस्व॒ परि॒ पार्थि॑वं॒ रज॑: स्तो॒त्रे शिक्ष॑न्नाधून्व॒ते च॑ सुक्रतो । मा नो॒ निर्भा॒ग्वसु॑नः सादन॒स्पृशो॑ र॒यिं पि॒शङ्गं॑ बहु॒लं व॑सीमहि ॥
स्वर सहित पद पाठसः । तु । प॒व॒स्व॒ । परि॑ । पार्थि॑वम् । रजः॑ । स्तो॒त्रे । शिक्ष॑न् । आ॒ऽधू॒न्व॒ते । च॒ । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो । मा । नः॒ । निः । भा॒क् । वसु॑नः । सा॒द॒न॒ऽस्पृशः॑ । र॒यिम् । पि॒शङ्ग॑म् । ब॒हु॒लम् । व॒सी॒म॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स तू पवस्व परि पार्थिवं रज: स्तोत्रे शिक्षन्नाधून्वते च सुक्रतो । मा नो निर्भाग्वसुनः सादनस्पृशो रयिं पिशङ्गं बहुलं वसीमहि ॥
स्वर रहित पद पाठसः । तु । पवस्व । परि । पार्थिवम् । रजः । स्तोत्रे । शिक्षन् । आऽधून्वते । च । सुक्रतो इति सुऽक्रतो । मा । नः । निः । भाक् । वसुनः । सादनऽस्पृशः । रयिम् । पिशङ्गम् । बहुलम् । वसीमहि ॥ ९.७२.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 72; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुक्रतो) हे शोभनयज्ञप्रभो जगन्नियन्तः ! (सः) पूर्वोक्तस्त्वं (तु) झटिति (पार्थिवम्) पृथ्वीलोकस्य तथा (रजः) अन्तरिक्षलोकस्य (परि) चतुर्दिक्षु (पवस्व) मां पवित्रय। अथ च (आ धून्वते स्तोत्रे) कम्पितं स्तोतारं मां (शिक्षन्) शिक्षयन् पवित्रय। तथा (सादनस्पृशः) यत् मन्दिरशोभारूपं (वसुनः) धनं वर्तते तेन (नः) अस्मान् (मा निः भाक्) अवियुक्तान् कुरु। अतः (पिशङ्गं बहुलं रयिम्) स्वर्णादियुतं बहुधनं (वसीमहि) वयं प्राप्नुमः ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुक्रतो) हे शोभनयज्ञेश्वर परमात्मन् ! (सः) वह पूर्वोक्त आप (तु) शीघ्र (पार्थिवम्) पृथिवीलोक और (रजः) अन्तरिक्षलोक के (परि) चारों ओर (पवस्व) हमको पवित्र करें और (आ धून्वते स्तोत्रे) कम्पायमान हुए तथा स्तुति करते हुए मुझको (शिक्षन्) शिक्षा करते हुए आप पवित्र करें और (सादनस्पृशः) घर के शोभाभूत (वसुनः) जो धन है, उससे (नः) हमको (मा निः भाक्) वियुक्त मत करिये। इस लिये (पिशङ्गं) स्वर्णादियुत (बहुलं रयिम्) बहुत धन को (वसीमहि) हम लोग प्राप्त हों ॥८॥
भावार्थ
हे परमात्मन् ! आपकी कृपा से हम लोग पृथिवी तथा अन्तरिक्षलोक के चारों ओर परिभ्रमण करें और नाना प्रकार के धनों को प्राप्त करें ॥८॥
विषय
त्यागी तपस्वी साधक का उच्च प्रकाशमय परलोक को प्राप्त करने का उपदेश।
भावार्थ
हे (सुक्रतो) उत्तम प्रज्ञा और कर्म करने हारे ! शक्ति-शालिन् ! (स्तोत्रे) स्तुति करने वाले और (आधून्वते च) और अपने चित्त के मलों और विक्षेपों को साफ़ कर डालने और कषाय मलों को त्याग देने वाले को (शिक्षन्) ज्ञान प्रदान करता हुआ (सः) वह (पार्थिवं स्वः) पृथिवी रजोरूप पार्थिव लोक या देह को भी (परि पवस्व) मेघवत् सूर्य-प्रकाशवत् प्राप्त हो, उसे व्याप। (नः) हमें (सादन-स्पृशः) गृह आदि प्रदान कराने वाले या घर में आये (वसुनः) ऐश्वर्य से (मा निर् भाक्) निर्भक्त या पृथक् मत कर और हम (बहुलम्) बहुतसा (पिशंगम् रयिम् वसीमहि) पीले रंग का ऐश्वर्य, सुवर्णादि धारण करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
हरिमन्त ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१—३, ६, ७ निचृज्जगती। ४, ८ जगती। ५ विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
ज्ञान व शक्ति रूप धन
पदार्थ
[१] हे (सुक्रतो) = शोभनप्रज्ञ व शोभनशक्ते सोम ! (सः) = वह (तु) = तो (पार्थिवं रजः) = इस पार्थिव लोक को (परिपवस्व) = चारों ओर प्राप्त हो । अर्थात् तेरा शरीर में ही व्यापन हो । तू (स्तोत्रे) = स्तोता के लिये (च) = और (आधुन्वते) = वासनाओं को अपने से कम्पित करके दूर करनेवाले के लिये (शिक्षन्) = [धनादिकं प्रयच्छन्] शक्ति व ज्ञान रूप धन को देनेवाला हो। शरीर में व्याप्त हुआ-हुआ सोम हमें सशक्त बनाता है। यही सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर हमारे ज्ञान को बढ़ाता है । [२] हे सोम ! तू (नः) = हमें (सादनस्पृशः) = इस शरीर रूप गृह के साथ सम्पर्कवाले (वसुनः) = शक्ति व ज्ञानरूप धन से (मा निर्भाक्) = पृथक् मत कर। हे सोम ! हम तेरे रक्षण से (पिशंगं) [पिश् To adorn, decorate] = जीवन को अलंकृत करनेवाले (बहुलं रयिम्) = खूब ही ज्ञान व शक्ति रूप धन को (वसीमहि) = धारण करें।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा हमें वह ज्ञान व शक्ति रूप धन प्राप्त हो जो हमारे जीवन को अलंकृत करे ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of holy action and yajnic dynamics of the universe, flow and purify everything of the globe and the skies, giving me, your enthusiastic celebrant, the vision and wisdom for the good life. Deprive us not of the peace, power and wealth of the home and family.$Bless us that we may live in peace and enjoy peace and homely wealth of golden plenty and variety.
मराठी (1)
भावार्थ
हे परमात्मा! तुझ्या कृपेने आम्ही पृथ्वी व अंतरिक्ष लोकाच्या चारही बाजूंनी परिभ्रमण करावे व नाना प्रकारचे धन प्राप्त करावे. ॥८॥
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