ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 89/ मन्त्र 6
वि॒ष्ट॒म्भो दि॒वो ध॒रुण॑: पृथि॒व्या विश्वा॑ उ॒त क्षि॒तयो॒ हस्ते॑ अस्य । अस॑त्त॒ उत्सो॑ गृण॒ते नि॒युत्वा॒न्मध्वो॑ अं॒शुः प॑वत इन्द्रि॒याय॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒ष्ट॒म्भः । दि॒वः । ध॒रुणः॑ । पृ॒थि॒व्याः । विश्वाः॑ । उ॒त । क्षि॒तयः॑ । हस्ते॑ । अ॒स्य॒ । अस॑त् ते॒ । उत्सः॑ । गृ॒ण॒ते । नि॒युत्वा॑न् । मध्वः॑ । अं॒शुः । प॒व॒त्चे । इ॒न्द्रि॒याय॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्टम्भो दिवो धरुण: पृथिव्या विश्वा उत क्षितयो हस्ते अस्य । असत्त उत्सो गृणते नियुत्वान्मध्वो अंशुः पवत इन्द्रियाय ॥
स्वर रहित पद पाठविष्टम्भः । दिवः । धरुणः । पृथिव्याः । विश्वाः । उत । क्षितयः । हस्ते । अस्य । असत् ते । उत्सः । गृणते । नियुत्वान् । मध्वः । अंशुः । पवत्चे । इन्द्रियाय ॥ ९.८९.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 89; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(दिवः, विष्टम्भः) यो द्युलोकस्याधिकरणं (धरुणः, पृथिव्याः) पृथिव्यधिकरणञ्चास्ति। (उत) अपि च (विश्वाः, क्षितयः) सर्वाणि लोकान्तराणि (अस्य, हस्ते) तस्य परमात्मनो हस्तगतानि सन्ति। (उत्सः) सर्वलोकानामुत्पत्तिस्थानम्। (गृणते, ते) स्तोत्रे उपासकाय (नियुत्वान्, असत्) ज्ञानप्रदः स्यात् (मध्वः) आनन्दस्वरूपः (अंशुः) सर्वव्यापकश्चासि। (इन्द्रियाय) कर्म्मयोगिने (पवते) पवित्रतां प्रददातु ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(दिवो विष्टम्भः) जो द्युलोक का सहारा है (धरुणः पृथिव्याः) और पृथिवी का आधार है (उत) और (विश्वाः, क्षितयः) सब लोक-लोकान्तर (अस्य, हस्ते) उस परमात्मा के हस्तगत हैं। (उत्सः) वह सब लोगों का उत्पत्तिस्थान है। परमात्मा (गृणते ते) स्तुति करनेवाले उपासक के लिये (नियुत्वान् असत्) ज्ञानप्रद हो। (मध्वः) जो परमात्मा आनन्दस्वरूप है, (अंशुः) सर्वव्यापक है, वह (इन्द्रियाय) कर्म्मयोगी के लिये (पवते) पवित्रता दे ॥६॥
भावार्थ
द्युभ्वादिलोकों का अधिकरण एकमात्र वही परमात्मा है अर्थात् उसी परमात्मा के सहारे सब ब्रह्माण्डों की स्थिति है। इस प्रकार यहाँ परमात्मा को अधिकरणरूप से वर्णन किया है ॥६॥
विषय
सर्ववशी प्रभु।
भावार्थ
वह प्रभु (दिवः विष्टम्भः) आकाश, सूर्य आदि का धारक, आश्रय, (पृथिव्याः धरुणः) पृथिवी को भी धारण करनेवाला, है। (विश्वा उत क्षितयः) समस्त मनुष्य भी (अस्य हस्ते) उसके हाथ में, उसके वश में हैं। हे जीवगण ! वह (नियुत्त्वान्) नाना शक्तियों का स्वामी, (उत्सः) सबका उद्भव-स्थान और (ते) तुझ (गृणते) उपदेष्टा के उपकार के लिये (असत्) हो। और (मध्वः अंशुः) यह मधुर ज्ञान के कारण भीतर व्यापक प्रभु (इन्द्रियाय) ऐश्वर्य वा इन्द्र के पदके लिये (पवते) प्राप्त है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उशना ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १ पादानिचृत्त्रिष्टुप्। २, ५, ६ त्रष्टुप्। ३, ७ विराट् त्रिष्टुप्। निचृत्त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्।
विषय
'मस्तिष्क शरीर व इन्द्रियों' का धारक सोम
पदार्थ
यह सोम (दिवः विष्टम्भः) = मस्तिष्क रूप द्युलोक का विशेषरूप से धारण करनेवाला है। (पृथिव्याः धरुण:) = शरीर रूप पृथिवी का धारक है। मस्तिष्क व शरीर दोनों का आधार पर सोम ही है । (विश्वः क्षितयः) = सब भूमियाँ, अर्थात् ' अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनन्दमय' सभी कोश (उत) = निश्चय से (अस्य हस्ते) = इसी के हाथ में हैं। सोम ही इनको उस-उस ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाला है । (उत्सः) [उत्सरभि सर्वे कामा: अस्मात् सा०] = सब वरणीय वस्तुओं का स्रोतभूत यह सोम (गृणते) = स्तुति करनेवाले (ते) = तेरे लिये (नियत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला (असत्) = होता है । सोम के द्वारा ही ये इन्द्रियाश्व शक्तिशाली बनते हैं । यह (मध्वः अंशुः) = माधुर्ययुक्त प्रकाश की किरण ही है । सोम जीवन को मधुर व प्रकाशमय बनाता है। यह (इन्द्रियाय पवते) = [इन्द्रियं वीर्यं] शक्ति के लिये प्राप्त होता है । सब अंग-प्रत्यंगों को यह शक्तिशाली बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम मस्तिष्क शरीर व इन्द्रियों का धारण करता है। हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, cosmic spirit of peace and glory, is the pillar of heaven, and it is the foundation support of the earth. Indeed all stars and planets of the universe and all people of the earth are in its hand for control and sustenance. O man, may this soma spirit, this fount of infinite glory and benevolence, commanding all forces of the universe, the honey sweet vibrations and radiations of it, be for the good and glory of the celebrant humanity. Indeed they all flow for humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
द्यु भव इत्यादी लोकांचा आधार एकमेव परमात्माच आहे. अर्थात् त्याच परमेश्वराच्या आधारे सर्व ब्रह्मांडाची स्थिती आहे. या प्रकारे परमेश्वराला आधाररूपाने वर्णिलेले आहे. ॥६॥
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