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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 93/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नोधाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सं मा॒तृभि॒र्न शिशु॑र्वावशा॒नो वृषा॑ दधन्वे पुरु॒वारो॑ अ॒द्भिः । मर्यो॒ न योषा॑म॒भि नि॑ष्कृ॒तं यन्त्सं ग॑च्छते क॒लश॑ उ॒स्रिया॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । मा॒तृऽभिः॑ । न । शिशुः॑ । वा॒व॒शा॒नः । वृषा॑ । द॒ध॒न्वे॒ । पु॒रु॒ऽवारः॑ । अ॒त्ऽभिः । मर्यः॑ । न । योषा॑म् । अ॒भि । निः॒ऽकृ॒तम् । यन् । सम् । ग॒च्छ॒ते॒ । क॒लशे॑ । उ॒स्रिया॑भिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं मातृभिर्न शिशुर्वावशानो वृषा दधन्वे पुरुवारो अद्भिः । मर्यो न योषामभि निष्कृतं यन्त्सं गच्छते कलश उस्रियाभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । मातृऽभिः । न । शिशुः । वावशानः । वृषा । दधन्वे । पुरुऽवारः । अत्ऽभिः । मर्यः । न । योषाम् । अभि । निःऽकृतम् । यन् । सम् । गच्छते । कलशे । उस्रियाभिः ॥ ९.९३.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 93; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वृषा) कर्मयोगी यः (पुरुवारः) अनेकजनैः वरणीयः सः (अद्भिः) सत्कर्मभिः (दधन्वे) धार्यते। यः कर्मयोगी (वावशानः) परमात्मविषयककामनावान् तथा (मातृभिः) स्वेन्द्रियवृत्तिभिः (शिशुः, न) सूक्ष्मकर्तेव (सं, दधन्वे) धारयति (न) यथा (योषां) स्त्रियं (मर्यः) मनुष्यः धारयति तथैव (उस्रियाभिः) ज्ञानशक्तिद्वारा कर्मयोगी परमात्मविभूतीर्धारयति। तथा यः परमात्मा (निष्कृतं) ज्ञानविषयो भवन् (कलशे) तस्य कर्मयोगिनोऽन्तःकरणे सङ्गच्छते प्राप्नोति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वृषा) कर्मयोगी जो (पुरुवारः) बहुत लोगों को वरणीय है, वह (अद्भिः) सत्कर्मों द्वारा (दधन्वे) धारण किया जाता है। जो कर्म्मयोगी (वावशानः) परमात्मा की कामनावाला है और (मातृभिः) अपनी इन्द्रियवृत्तियों से (शिशुः) सूक्ष्म करनेवाले के (न) समान (संदधन्वे) धारण करता है, (न) जिस प्रकार (योषां) स्त्री को (मर्य्यः) मनुष्य धारण करता है, इस प्रकार (उस्रियाभिः) ज्ञान की शक्तियों के द्वारा कर्म्मयोगी परमात्मा की विभूतियों को धारण करता है और जो परमात्मा (निष्कृतं) ज्ञान का विषय हुआ (कलशे) उस कर्म्मयोगी के अन्तःकरण में (संगच्छते) प्राप्त होता है ॥२॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार ऐश्वर्य्यप्रद प्रकृतिरूपी विभूति को उद्योगी पुरुष धारण करता है, इसी प्रकार प्रकृति की नानाशक्तिरूप विभूति को कर्मयोगी पुरुष धारण करता है ॥२॥

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    विषय

    बालकवत् देह में आत्मा का शक्ति संञ्चय।

    भावार्थ

    (मातृभिः शिशुः न) माताओं से जिस प्रकार बालक पुष्टि को प्राप्त होता है उसी प्रकार (वावशानः) नाना प्रकार से कामना करता हुआ (पुरु-वारः) नाना इन्द्रिगण से परिवाहित होकर (वृषा) सब में शक्ति सेचन और बलदान करनेवाला होकर (अद्भिः दधन्वे) प्राणगणों द्वारा धारण पोषण किया जाता है। (मर्यः न योषाम् अभि) मनुष्य जिस प्रकार स्त्री को प्राप्त होता है इसी प्रकार जो सोम (कलशे) इस देह में (उस्त्रियाभिः) शक्तियों से (सं गच्छते) संगत हो जाता है वह (निष्कृतम् अभि) परमधाम को प्राप्त हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नोधा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    अद्भिः संदधन्वे, उस्त्रियाभिः संगच्छते

    पदार्थ

    (वावशान:) = दिव्य गुणों की कामना करता हुआ, (वृषा) = शक्ति का सेचन करनेवाला, (पुरुवार:) = पालक व पूरक वरणीय वस्तुओंवाला सोम (अद्भिः) = कर्मों के द्वारा इस प्रकार (संदधन्वे) = धारण किया जाता है (न) = जैसे कि (मातृभिः) = माताओं से (शिशुः) = एक सन्तान । निरन्तर कर्मों में लगे रहना ही सोमरक्षण का उपाय है। रक्षित सोम हमारे अन्दर दिव्य गुणों का धारण करता है और हमारे में शक्ति का सेचन करता है। (न) = जैसे (मर्यः) = एक मनुष्य (योषाम् अभि) = स्त्री की ओर जाता है, उसी प्रकार यह सोम (कलशे) = इस शरीर में (निष्कृतं) = परिष्कृत हृदय की ओर (यन्) = जाता हुआ (उस्त्रियाभिः) = प्रकाशों के साथ संगच्छते संगत होता है। सोम के कारण जीवन प्रकाशमय हो उठता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- कर्मों में लगे रहने से सोम का धारण होता है और धारित सोम जीवन को प्रकाशमय बना देता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Like a child fulfilled and secure with mother’s and grandmother’s love, the loving Soma, generous treasure home of universal gifts of life, fulfils the celebrant with showers of pranic energy and, like a lover meeting his lady love, blesses his consecrated heart, and therein vibrates with the dedicated soul with divine radiations of light in thought, word and deed.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे ऐश्वर्य प्रदान करणाऱ्या प्रकृतिरूपी विभूतीला उद्योगी पुरुष धारण करतो त्याच प्रकारे प्रकृतीच्या नाना शक्तीरूपी विभूतीला कर्मयोगी पुरुष धारण करतो. ॥२॥

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