ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 93/ मन्त्र 3
उ॒त प्र पि॑प्य॒ ऊध॒रघ्न्या॑या॒ इन्दु॒र्धारा॑भिः सचते सुमे॒धाः । मू॒र्धानं॒ गाव॒: पय॑सा च॒मूष्व॒भि श्री॑णन्ति॒ वसु॑भि॒र्न नि॒क्तैः ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । प्र । पि॒प्ये॒ । ऊधः॑ । अघ्न्या॑याः । इन्दुः॑ । धारा॑भिः । स॒च॒ते॒ । सु॒ऽमे॒धाः । मू॒र्धानम् । गावः॑ । पय॑सा । च॒मूषु॑ । अ॒भि । श्री॒ण॒न्ति॒ । वसु॑ऽभिः॑ । न । नि॒क्तैः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत प्र पिप्य ऊधरघ्न्याया इन्दुर्धाराभिः सचते सुमेधाः । मूर्धानं गाव: पयसा चमूष्वभि श्रीणन्ति वसुभिर्न निक्तैः ॥
स्वर रहित पद पाठउत । प्र । पिप्ये । ऊधः । अघ्न्यायाः । इन्दुः । धाराभिः । सचते । सुऽमेधाः । मूर्धानम् । गावः । पयसा । चमूषु । अभि । श्रीणन्ति । वसुऽभिः । न । निक्तैः ॥ ९.९३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 93; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुमेधाः) सर्वोपरि विज्ञानवान् (इन्दुः) प्रकाशस्वरूपपरमात्मा (धाराभिः) स्वानन्तशक्तीनामैश्वर्येण (सचते) सर्वत्र सङ्गच्छते (उत) तथा (अघ्न्यायाः, ऊधः) गवां दुग्धाधारं स्तनमण्डलं (प्र, पिप्ये) नितान्तं वर्धयति तथा (गावः, चमूषु) गवां सङ्घेषु (पयसा) दुग्धेन (अभि, श्रीणन्ति) परिपूरणं करोति, तथा (निक्तैः, वसुभिः, न) शुभ्रधनानीव (मूर्धानं) तस्य परमात्मनः मुख्यस्थानीयैश्वर्यं वयं प्राप्नुवाम ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुमेधाः) सर्वोपरि विज्ञानवाला (इन्दुः) प्रकाशस्वरूप परमात्मा (धाराभिः) अपनी अनन्तशक्तियों के ऐश्वर्य्य से (सचते) सर्वत्र संगत होता है (उत) और (अध्न्याया ऊधः) गौवों के दुग्धाधार स्तनमण्डल को (प्र पिप्ये) अत्यन्त वृद्धियुक्त करता है और (गावश्चमूषु) गौवों की सेना में (पयसा) दुग्ध से (अभिश्रीणन्ति) संयुक्त करता है और (निक्तैर्वसुभिर्न) शुभ्रधनों के समान (मूर्धानं) उस परमात्मा के मुख्यस्थानीय ऐश्वर्य्य को हम लोग प्राप्त हों ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में इस बात की प्रार्थना है कि परमात्मा गौ, अश्वादि उत्तम धनों को हमको प्रदान करे ॥३॥
विषय
गो-वत्सवत् देही का ज्ञानवान् और पुष्ट होना।
भावार्थ
(अघ्न्याया ऊधः) गाय के स्तनभार से बच्छा जिस प्रकार पान करता है उसी प्रकार (अध्न्यायाः) न नाश होनेवाली परमेश्वरी गौ अर्थात् वाणी के (उधः) उत्तम पान योग्य ज्ञानरस को (इन्दुः) उस प्रभु का उपासक ही (प्र पिप्य) खूब पान करता है। और वह (सु-मेधाः) उत्तम बुद्धिमान् होकर (धाराभिः) शान्तिप्रद ज्ञान वाणियों, जलधाराओं के तुल्य ही (सचते) परिशोधित या अलंकृत हो जाता है। और (गावः) समस्त प्रजा और सर्वपोषक प्रतिनिधि जनों का उसकी (चमूषु) सेनाओं के पदपर सेनानायक के तुल्य, उसी के (चमूषु) विषयास्वाद लेने वाली इन्द्रियों के ऊपर (मूर्धानम्) प्रमुख शिरवत् विराजमान प्रभु को (निक्तैः वसुभिः न) शुद्ध वस्त्रों के तुल्य (अभि श्रीणन्ति) चारों ओर से ढकते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नोधा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
विषय
इन्दुः धाराभिः सचते सुमेधाः
पदार्थ
(उत) = और (इन्दुः) = यह सोम (अघ्न्याया:) = अहन्तव्य, नित्य स्वाध्याय के योग्य इस वेदवाणी रूप गौ के (ऊधः) = ज्ञानदुग्ध के आधार को (प्रपिप्ये) = आप्यायित करता है । हमारी बुद्धि को यह तीव्र बनाता है और हम उस ऊधस् से अधिकाधिक ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करनेवाले बनते हैं। यह सोम (सुमेधाः) = उत्तम बुद्धि को देनेवाला होता हुआ (धाराभिः) = अपनी धारण शक्तियों के साथ (सचते) = हमें प्राप्त होता है । उस समय ये (गावः) = वेदवाणी रूप गौवें (पयसा) = अपने ज्ञानदुग्ध के द्वारा (चमुषु) = इन शरीरों में (मूर्धानम्) = मस्तिष्क को (अभिश्रीणन्ति) = चारों ओर से आच्छादित करती हैं। इस प्रकार आच्छादित करती हैं, (न) = जैसे कि (निक्तैः) = शुद्ध (वसुभिः) = वस्त्रों से, ज्ञानवालों से मस्तिष्क को आच्छादित करती हैं, अर्थात् मस्तिष्क को ज्ञान से परिपूर्ण करती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम के सुरक्षित होने पर मस्तिष्क ज्ञान की वाणियों से आच्छादित होता है। हमारा जीवन ज्ञानमय बनता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of blessed light and omniscient power, essence of self-refulgent beauty, fills the inviolable receptacles of nature with milky nourishment which the man of enlightenment joining the milky flow, enjoys. The radiations of light, currents of energy and the words of wisdom all shine and elevate the soul in all situations of life with spiritual food as they shower him with the wealth and honours of immaculate order.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात ही प्रार्थना केलेली आहे की, परमेश्वराने गाई, अश्व इत्यादी उत्तम धन आम्हाला प्रदान करावे. ॥३॥
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