यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 26
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - वातादयो देवताः
छन्दः - स्वराडभिकृतिः
स्वरः - ऋषभः
72
वाता॑य॒ स्वाहा॑ धू॒माय॒ स्वाहा॒भ्राय॒ स्वाहा॑ मे॒घाय॒ स्वाहा॑ वि॒द्योत॑मानाय॒ स्वाहा॑ स्त॒नय॑ते॒ स्वाहा॑व॒स्फूर्ज॑ते॒ स्वाहा॒ वर्ष॑ते॒ स्वाहा॑व॒वर्ष॑ते॒ स्वाहो॒ग्रं वर्ष॑ते॒ स्वाहा॑ शी॒घ्रं वर्ष॑ते॒ स्वाहो॑द्गृह्ण॒ते स्वाहोद्गृ॑हीताय॒ स्वाहा॑ प्रुष्ण॒ते स्वाहा॑ शीकाय॒ते स्वाहा॒ प्रुष्वा॑भ्यः॒ स्वाहा॑ ह्रा॒दुनी॑भ्यः॒ स्वाहा॑ नीहा॒राय॒ स्वाहा॑॥२६॥
स्वर सहित पद पाठवाता॑य। स्वाहा॑। धू॒माय॑। स्वाहा॑। अ॒भ्राय॑। स्वाहा॑। मे॒घाय॑। स्वाहा॑। वि॒द्योत॑माना॒येति॑ वि॒ऽद्योत॑मानाय। स्वाहा॑। स्त॒नय॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒स्फूर्ज॑त॒ इत्य॑व॒ऽस्फूर्ज॑ते। स्वाहा॑। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒वर्ष॑त॒ इत्य॑व॒ऽवर्ष॑ते। स्वाहा॑। उ॒ग्रम्। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। शी॒घ्रम्। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। उ॒द्गृ॒ह्ण॒त इत्यु॑त्ऽगृह्ण॒ते। स्वाहा॑। उद्गृ॑हीता॒येत्युत्ऽगृ॑हीताय। स्वाहा॑। प्रु॒ष्ण॒ते। स्वाहा॑। शी॒का॒य॒ते। स्वाहा॑। प्रुष्वा॑भ्यः। स्वाहा॑। ह्रा॒दुनी॑भ्यः। स्वाहा॑। नी॒हा॒राय॑। स्वाहा॑ ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा स्तनयते स्वाहावस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाववर्षते स्वाहोद्रँवर्षते स्वाहा शीघ्रँवर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः स्वाहा ह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
वाताय। स्वाहा। धूमाय। स्वाहा। अभ्राय। स्वाहा। मेघाय। स्वाहा। विद्योतमानायेति विऽद्योतमानाय। स्वाहा। स्तनयते। स्वाहा। अवस्फूर्जत इत्यवऽस्फूर्जते। स्वाहा। वर्षते। स्वाहा। अववर्षत इत्यवऽवर्षते। स्वाहा। उग्रम्। वर्षते। स्वाहा। शीघ्रम्। वर्षते। स्वाहा। उद्गृह्णत इत्युत्ऽगृह्णते। स्वाहा। उद्गृहीतायेत्युत्ऽगृहीताय। स्वाहा। प्रुष्णते। स्वाहा। शीकायते। स्वाहा। प्रुष्वाभ्यः। स्वाहा। ह्रादुनीभ्यः। स्वाहा। नीहाराय। स्वाहा॥२६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
यैर्मनुष्यैर्वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाऽभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा स्तनयते स्वाहाऽवस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाऽववर्षते स्वाहोग्रं वर्षते स्वाहा शीघ्रं वर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः स्वाहा ह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा च प्रयुज्यते ते प्राणप्रिया जायन्ते॥२६॥
पदार्थः
(वाताय) यो वाति तस्मै (स्वाहा) (धूमाय) (स्वाहा) (अभ्राय) मेघनिमित्ताय (स्वाहा) (मेघाय) यो मेहति सिञ्चति तस्मे (स्वाहा) (विद्योतमानाय) विद्युतः प्रवर्त्तकाय (स्वाहा) (स्तनयते) दिव्यं शब्दं कुर्वते (स्वाहा) (अवस्फूर्जते) अधो वज्रवद् घातं कुर्वते (स्वाहा) (वर्षते) यो वर्षति तस्मै (स्वाहा) (अववर्षते) (स्वाहा) (उग्रम्) तीव्रम् (वर्षते) (स्वाहा) (शीघ्रम्) तूर्णम् (वर्षते) (स्वाहा) (उद्गृह्णते) य ऊर्ध्वं गृह्णाति तस्मै (स्वाहा) (उद्गृहीताय) ऊर्ध्वं गृहीतं जलं येन तस्मै (स्वाहा) (प्रुष्णते) पुष्टिं पूरयते (स्वाहा) (शीकायते) यः शीकं सेचनं करोति तस्मै (स्वाहा) (प्रुष्वाभ्यः) पूर्णाभ्यः (स्वाहा) (ह्रादुनीभ्यः) अव्यक्तं शब्दं कुर्वतीभ्यः (स्वाहा) (नीहाराय) कुहकाय (स्वाहा)॥२६॥
भावार्थः
ये यथाविध्यग्निहोत्रादीन् कुर्वन्ति ते वाय्वादिशोधका भूत्वा सर्वेषां हितकरा भवन्ति॥२६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जिन मनुष्यों ने (वाताय) जो बहता है, उस पवन के लिये (स्वाहा) उस को शुद्ध करने वाली यज्ञक्रिया (धूमाय) धूम के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अभ्राय) मेघ के कारण के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (मेघाय) मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (विद्योतमानाय) बिजुली से प्रवृत्त हुए सघन बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (स्तनयते) उत्तम शब्द करती हुई बिजुली के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अवस्फूर्जते) एक-दूसरे के घिसने से वज्र के समान नीचे को चोट करते हुए विद्युत् के लिये (स्वाहा) शुद्ध करने हारी यज्ञक्रिया (वर्षते) जो बद्दल वर्षता है, उसके लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अववर्षते) मिलावट से तले ऊपर हुए बद्दलों में जो नीचे वाला है, उस बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (उग्रम्) अतितीक्ष्णता से (वर्षते) वर्षते हुए बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (शीघ्रम्) शीघ्र लपट-झपट से (वर्षते) वर्षते हुए बद्दल के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (उद्गृह्णते) ऊपर से ऊपर बद्दलों के ग्रहण करने वाले बद्दल के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (उद्गृहीताय) जिसने ऊपर से ऊपर जल ग्रहण किया उस बद्दल के लिये (स्वाहा) शुद्धि करने वाली यज्ञक्रिया (प्रुष्णते) पुष्टि करते हुए मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (शीकायते) जो सींचता अर्थात् ठहर-ठहर के वर्षता, उस मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (प्रुष्वाभ्यः) जो पूर्ण घनघोर वर्षा करते हैं, उन मेघों के अवयवों के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (ह्रादुनीभ्यः) अव्यक्त गड़गड़ शब्द करते हुए बद्दलों के लिये (स्वाहा) शुद्धि करने वाली यज्ञक्रिया और (नीहाराय) कुहर के लिये (स्वाहा) उस की शुद्धि करने वाली यज्ञक्रिया की है, वे संसार के प्राणपियारे होते हैं॥२६॥
भावार्थ
जो मनुष्य यथाविधि अग्निहोत्र आदि यज्ञों को करते हैं, वे पवन आदि पदार्थों के शोधनेहारे होकर सब का हित करने वाले हाते हैं॥२६॥
विषय
वात, धूम, अभ्र आदि नाना मेघ की दशाओं की तुलना के साथ-साथ नायक के नाना कर्मों का वर्णन ।
भावार्थ
( वाताय, स्वाहा ) बहने वाली, तीव्र वायु का उत्तम उपयोग करो, उसके समान प्रबलता से शत्रु पर आक्रमण करने और शत्रुरूप वृक्ष को उखाड़ने वाले सेनापति का आदर करो । अथवा (स्वाहा ) उसको उत्तम बल प्राप्त हो । (धूमाय स्वाहा ) धूम और धूम के समान नीले मेघ, उत्तम रीति से उत्पन्न हों । 'धूम' शत्रु को कंपाने वाले को मान प्राप्त हो । (अभ्राय स्वाहा ) वर्णकारी मेघ की पूर्व दशा का मेघ अच्छे प्रकार बने । अभ्र अर्थात् बदली के समान राष्ट्र या शत्रु सेना पर छा जाने वाले का उत्तम आदर हो । (मेघाय स्वाहा ) जल वर्षाने वाला 'मेघ' है, वैसे ही प्रजा पर सुखों की वर्षा करने वाला पुरुष 'मेघ' है, (विद्योतमानाय स्वाहा) विविध विद्यतों की पैदा करने वाला मेघ 'विद्योतमान' है और विविध विद्याओं, गुणों से स्वयं प्रकाशमान, अन्यों को भी प्रकाश देने वाला पुरुष 'विद्योतमान' है, उसको आदर प्राप्त हो । (स्तनयते स्वाहा) गर्जते हुए मेघ की, सिंहनाद करते पुरुष की भी वृद्धि हो । ' (अवस्फूर्जते स्वाहा) विद्युतें फेंकते हुए मेघ बढ़े। और वैसे ही आग्नेयास्त्रों का शत्रु पर प्रयोग करने वाले वीर सेनापति की विजय हो । ( वर्षते स्वाहा, उग्रं वर्षते स्वाहा) बरसते हुए, प्रचण्ड वेग से बरसते हुए मेघ बढ़े उनके समान प्रजाओं पर सुखों की और शत्रुओं पर शस्त्रवर्षा करते व भयंकरता से अस्त्र बरसाते हुए वीर सेनापति की वृद्धि और विजय हो । ( उद्गृह्णने स्वाहा, उद्गृहीताय स्वाहा ) जलों को ऊपर उठाते हुए, और खूब जल से भरे मेघ अच्छी प्रकार उठे उनके समान शत्रु और मित्र राष्ट्र और अपने राष्ट्र से बल, धन, ऐश्वर्य संग्रह करते हुए और कर चुके हुए वीर पुरुष की वृद्धि और विजय हो । (प्रुष्णते स्वाहा ) स्थूल बूंदों से सींचते या नदी ताल आदि भरते हुए मेघ की वृद्धि हो । और प्रजा पर स्नेह से देखते उसे धनधान्य से पूर्ण करते हुए की वृद्धि और यश हो । (शीकायते स्वाहा ) सेचन करते हुए, फुहार छोड़ते हुए मेघ की उत्पत्ति हो । और सुखकारी धनधान्य, उपकारों, सद्वचनों से प्रजा पर सुख सेचन करते हुए राजा की वृद्धि हो । (प्रुष्वाभ्यः स्वाहा ) मेघ के स्थूल बिन्दु सेचन करने वाली धाराओं की वृद्धि हो, प्रजा को समृद्धि करने वाली राज-शक्तियों की वृद्धि हो । (हादुनीभ्यः स्वाहा ) शब्द करने वाली विद्यतें बढ़े। राजा की गरजती तोपें बढ़े। ( नीहाराय स्वाहा ) कुहरे की वृद्धि हो शत्रु लक्ष्मी को नि:शेष हर लेने वाले सेनापति की वृद्धि हो । इस मन्त्र में मेघ की सब दशाओं और उसके समान आचरण करने वाले वीर सेनापति आदि की वृद्धि की प्रार्थना है ।
टिप्पणी
`प्रश्नते' इति काण्व ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विराड् अभिकृतिः । ऋषभः ॥
विषय
वात- विमलता [वायुशुद्धि] व वृष्टि
पदार्थ
१. (वाताय स्वाहा) = सदा बहनेवाली वायु के लिए यज्ञ हो, अर्थात् यज्ञों से शुद्ध हुई हुई वायु हमारे जीवन के लिए बहे। २. (धूमाय स्वाहा) = धूम के लिए यज्ञ हो । अग्नि में आहुत द्रव्य सूक्ष्म कणों में विभक्त होकर जब जलवाष्प के साथ इधर-उधर उड़ते हैं तब वह धूम कहलाता है। आकाश में पहुँचकर यही अभ्र व मेघ के रूप में हो जाता है। ३. (अभ्राय स्वाहा) = इस 'अभ्र' के लिए - सूक्ष्म मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो । ४. (मेघाय स्वाहा) = मेघों के लिए यज्ञक्रिया हो । ५. (विद्योतमानाय स्वाहा) = चमकते हुए मेघ के लिए अथवा विद्युत् से युक्त मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो । ६. (स्तनयते स्वाहा) = गर्जना करते हुए मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो । ७. (अवस्फूर्जते स्वाहा) = [अधो वज्रवदघातं कुर्वते - द०] बिजली को नीचे गिराते हुए मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो। ८ (वर्षते स्वाहा) = वर्षा करते हुए मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो । ९. (अववर्षते स्वाहा) = नीचे झुककर बरसनेवाले मेघों के लिए यज्ञक्रिया हो । १०. (उग्रं वर्षते स्वाहा) = बड़े जोर से बौछार के रूप में बरसते हुए मेघ के लिए यज्ञ हो । ११. (शीघ्रं वर्षते स्वाहा) = तेज़ी से बरसते हुए मेघ के लिए यज्ञ हो। १२. (उद्गृह्णते स्वाहा) = जलों को ऊपर ग्रहण करनेवाले मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो। १३. (उद्गृहीताय स्वाहा) = जो जलों को ऊपर ग्रहण कर चुका है उस मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो । जब बादल अधिक-से-अधिक पानी को अपने अन्दर ले चुकता है और बरसने लगता है तब वह उद्गृहीत कहलाता है, उस बादल के लिए यज्ञ की क्रिया हो। १४. (प्रुष्णते स्वाहा) = स्थूल बिन्दुओं में बरसनेवाले मेघ के लिए यज्ञक्रिया हो। १५. (शीकायते स्वाहा) = संयम करनेवाले बादल के लिए यज्ञक्रिया हो । १६. (प्रुष्वाभ्य:) = परिपूर्ण घनघोर वर्षा करनेवाले बादलों के लिए यज्ञक्रिया हो । १७. (ह्रादुनीभ्यः स्वाहा) = अधिक गड़गड़ाहट करते हुए बादलों के लिए यज्ञक्रिया हो । १८. (नीहाराय स्वाहा) = कुहरे के लिए यज्ञक्रिया हो ।
भावार्थ
भावार्थ- हम यज्ञादि उत्तम क्रियाओं को करनेवाले बनें, जिससे वायुमण्डल की शुद्धि हो, वृष्टि आदि यथासम्भव ठीक प्रकार से हो।
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे यथायोग्य अग्निहोत्र इत्यादी यज्ञ करतात. ती वायू, मेघ, विद्युत इत्यादी शुद्ध करून सर्वांचे हित करतात.
विषय
पुनश्च, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - ज्या लोकांनी (वाताय) वाहणाऱ्या वायूसाठी (स्वाहा) त्याला शुद्ध करण्याची यज्ञक्रिया केली (वा करीत आहेत) तसेच जे लोक (धूमाय) धुरासाठी (स्वाहा) (धूर दूर होऊन वायू प्रदूषणरहित होण्यासाठी) यज्ञक्रिया) करतात (ते लोक साऱ्या जगाचे प्राणप्रिय ठरतात) जे लोक (अम्राय) वृष्टीरचनेचे कारण असलेल्या (स्वाहा) तसेच (मेघाय) प्रत्यक्ष बरसणाऱ्या मेघाकरिता (स्वाहा) यज्ञक्रिया करतात तसेच जे (विद्योतमानाय) विद्युताद्वारे संचालित होणाऱ्या संधन सजल मेधासाठी (स्वाहा) आणि (स्तनयते) उत्तम नाद करणाऱ्या विद्युतेसाठी (स्वाहा) शुद्ध करणारी यज्ञक्रिया करतात (ते संसाराला प्रिय असतात) (अवस्फूर्जते) एकमेकाशी झालेल्या घर्षणामुळे खाली भूमीकडे प्रहार करणाऱ्या विजेसाठी (स्वाहा) जे शुद्धीकरण करतात (आकाशस्थ विद्युत ऊर्जेंचा योग्य विनियोग करतात) तसेच (वर्तते) बरसणाऱ्या ढगासाठी (स्वाहा) जे यज्ञक्रिया करतात (ते जगाला प्राणप्रिय असतात) (अववर्षते) आकाशातील शुद्ध जल ज्यामधे असते, त्या सर्वांहून उच्चस्थानी असलेल्या ढगापैकी सर्वात भिन्न असलेल्या ढगासाठी (स्वाहा) आणि (शीघ्रम्) शीघ्रतेने मोठा घनघोर पाऊस वर्ष ते पाडणाऱ्या ढगासाठी जे (स्वाहा) यज्ञकर्म करतात (ते सर्वांना प्रिय ठरतात) (उद्गृह्णते) सर्वाहून उच्चस्थानी असलेल्या मेघांचे पाणी ओढून घेणाऱ्या मेघासाठी (स्वाहा) तसेच (उद्गृहीताय) ज्याद्वारे वरच्यावर जलाचे आकर्षण होते, त्या मेघासाठी (स्वाहा) जे शुद्ध करणारी यज्ञक्रिया करतात, (ते सर्वप्रिय होतात) (पुष्णते) पुष्टी करणाऱ्या मेघासाठी (स्वाहा) तसेच (शीकायते) जो राहून-राहून बरसतो, त्या मेघासाठी (स्वाहा) जे यज्ञक्रिया करतात, तसेच (प्रष्वाभ्यः) जे ढग पूर्ण व भरपूर पाऊस पाडतात, त्या मेघांच्या अवयवासाठी (स्वाहा) जे यज्ञक्रिया करतात, (ते सर्वप्रिय होतात) (ह्रातदुनीभ्यः) अव्यक्त शब्द म्हणजे गडगडणाऱ्या मेघासाठी (स्वाहा) शुद्धी करणारी यज्ञक्रिया जे करतात, तसेच (नीहाराय) धुक्यासाठी (स्वाहा) त्याची शुद्धी करण्याची यज्ञक्रिया जे करतात, ते सर्व जगाचे प्राणप्रिय होतात वा असतात ॥26॥
भावार्थ
missing
इंग्लिश (3)
Meaning
Perform yajna for the purification of air ; for the purification of misty air, for purifying fine cloud $ for purifying the cloud j for purifying the dense shining cloud } for purifying the thundering lightning ; for purifying the bursting cloud, for purifying the raining cloud, for purifying the pouring cloud ; for purifying the violently raining cloud ; for purifying the high cloud that has held water ; for purifying the sprinkling cloud, for purifying the drizzling cloud ; for purifying the clouds that rain cats and dogs ; for purifying the thundering clouds; and for purifying the hoar-frost.
Meaning
Perform yajna for the purification, treatment and management of the air and wind, smoke and smog, the mist, the rainy cloud, the lightning cloud, the thundering cloud, the hailing cloud, the raining cloud, the pouring cloud, the bursting cloud, the vapour-holding cloud, the held up vapours, the refreshing rain, the rain that irrigates, the rain that is full and flourishing, the roaring cloud, and the frost and freezing rain.
Translation
Svaha to wind. (1) Svaha to fumes. (2) Svaha to vapours. (3) Svaha to cloud. (4) Svaha to lightning cloud. (5) Svaha to thundering cloud. (6) Svaha to the bursting. (7) Svaha to the raining. (8) Svaha to lightly raining. (9) Svaha to heavily raining. (10) Svaha to quickly raining. (11) Svaha to the holding up. (12) Svaha to the held up. (13) Svaha to the sprinkling. (14) Svaha to the drizzling. (15) Svaha to drops, (16) Svaha to hails. (17) Svaha to hoar frost. (18)
Notes
Different forms of wind and cloud.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- যে সমস্ত মনুষ্যগণ (বাতায়) যাহা প্রবাহিত হয় সেই পবনের জন্য (স্বাহা) তাহাকে শুদ্ধ করিবার যজ্ঞক্রিয়া (ধূমায়) ধূমের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (অভ্রায়) মেঘের কারণের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (মেঘায়) মেঘের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (বিদ্যোতমানায়) বিদ্যুৎ দ্বারা প্রবৃত্ত সঘন বাদলের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (স্তনয়তে) উত্তম শব্দ করিতে থাকা বিদ্যুতের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (অবস্ফূর্জতে) একে অন্যের সহিত সংঘর্ষের ফলে বজ্রের সমান নিম্নে আঘাত করিতে থাকা বিদ্যুতের জন্য (স্বাহা) শুদ্ধকারক যজ্ঞক্রিয়া (বর্ষতে) যে বাদল বর্ষণ করে উহার জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (অববর্ষতে) মিশ্রণের ফলে উপরের বাদল যাহা নিম্নে আসিবে সেই বাদলের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (উগ্রম্) অতি-তীক্ষ্নতা দ্বারা (বর্ষতে) বর্ষণ করিতে থাকা বাদলের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (শীঘ্রম্) শীঘ্র ঝাপটা মারিয়া (বর্ষতে) বর্ষণ করিতে থাকা বাদলের জন্য (স্বাহা) উক্ত ক্রিয়া (উদ্গৃহ্নতে) উপর হইতে উপর বাদলগুলির গ্রহণকারী বাদলের জন্য (স্বাহা) উক্ত ক্রিয়া (উদ্গৃহীতায়) যাহা উপর হইতে উপর জলগ্রহণ করিয়াছে, সেই বাদলের জন্য (স্বাহা) শুদ্ধিকারী যজ্ঞক্রিয়া (পুষ্ণতে) পুষ্টি করিতে থাকা মেঘের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (শোকায়তে) যাহা সিঞ্চন করে অর্থাৎ থামিয়া থামিয়া বর্ষণ করে, সেই মেঘের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (প্রুষ্বাভ্যঃ) যাহা পূর্ণ ঘনঘোর বর্ষা করে, সেই সব মেঘের অবয়বের জন্য (স্বাহা) যজ্ঞক্রিয়া (হ্রাদুনীভ্যঃ) অব্যক্ত গড়গড় শব্দ করিতে থাকা বাদলের জন্য (স্বাহা) শুদ্ধিকারী যজ্ঞক্রিয়া এবং (নীহারায়) কুয়াশার জন্য (স্বাহা) তাহার শুদ্ধিকারী যজ্ঞক্রিয়া করিয়াছে, তাহারা সংসারের প্রাণপ্রিয় হয় ॥ ২৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য অগ্নিহোত্রাদি যজ্ঞ সকল যথাবিধি করিয়া থাকে তাহারা পবনাদি পদার্থগুলির শোধনকারী হইয়া সকলের হিতকারী হইয়া থাকে ॥ ২৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বাতা॑য়॒ স্বাহা॑ ধূ॒মায়॒ স্বাহা॒ভ্রায়॒ স্বাহা॑ মে॒ঘায়॒ স্বাহা॑ বি॒দ্যোত॑মানায়॒ স্বাহা॑ স্ত॒নয়॑তে॒ স্বাহা॑ব॒স্ফূর্জ॑তে॒ স্বাহা॒ বর্ষ॑তে॒ স্বাহা॑ব॒বর্ষ॑তে॒ স্বাহো॒গ্রং বর্ষ॑তে॒ স্বাহা॑ শী॒ঘ্রং বর্ষ॑তে॒ স্বাহো॑দ্গৃহ্ণ॒তে স্বাহোদ্গৃ॑হীতায়॒ স্বাহা॑ প্রুষ্ণ॒তে স্বাহা॑ শীকায়॒তে স্বাহা॒ প্রুষ্বা॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॑ হ্রা॒দুনী॑ভ্যঃ॒ স্বাহা॑ নীহা॒রায়॒ স্বাহা॑ ॥ ২৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বাতায়েত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । বাতাদয়ো দেবতাঃ । স্বরাডভিকৃতিশ্ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
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