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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - पूषादयो मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - नारीसुखप्रसूति सूक्त
    129

    चत॑स्रो दि॒वः प्र॒दिश॒श्चत॑स्रो॒ भूम्या॑ उ॒त। दे॒वा गर्भं॒ समै॑रय॒न्तं व्यू॑र्णुवन्तु॒ सूत॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चत॑स्र:‍ । दि॒व: । प्र॒ऽदिश॑: । चत॑स्र: । भूम्या॑: । उ॒त । दे॒वा: । गर्भ॑म् । सम् । ऐ॒र॒य॒न् । तम् । वि । ऊ॒र्णु॒व॒न्तु॒ । सूत॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चतस्रो दिवः प्रदिशश्चतस्रो भूम्या उत। देवा गर्भं समैरयन्तं व्यूर्णुवन्तु सूतवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चतस्र:‍ । दिव: । प्रऽदिश: । चतस्र: । भूम्या: । उत । देवा: । गर्भम् । सम् । ऐरयन् । तम् । वि । ऊर्णुवन्तु । सूतवे ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टिविद्या का वर्णन।

    पदार्थ

    (दिवः) आकाश की (चतस्रः) चारों (उत) और (भूम्याः) भूमि की (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) दिशाओं ने और (देवाः) दिव्य गुणवाले [अग्नि वायु आदि] देवताओं ने (गर्भम्) गर्भ को (समैरयन्) संगत किया है, वे सब (तम्) उस गर्भ को (सूतवे) उत्पन्न होने के लिये (व्यूर्णुवन्तु) प्रस्तुत करें ॥२॥

    भावार्थ

    अग्नि आदि दिव्य पदार्थों के यथार्थ संयोग से ईश्वरीय नियम के अनुसार यह गर्भ स्थिर हुआ है, मनुष्य उन तत्त्वों की अनुकूलता को, माता और गर्भ में, स्थिर रखने के लिये सदा प्रयत्न करते रहें, जिससे बालक बलवान् और नीरोग होकर पूरे समय पर उत्पन्न होवे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−टिप्पणी−देव वा देवता का अर्थ दिव्य वा अच्छे गुणवाला है। यजुर्वेद १४।२०। में ये देवता कहे हैं। अ॒ग्निर्दे॒वता॑। वातो॑ दे॒वता॑। सूर्यो दे॒वता॑। च॒न्द्रमा॑ दे॒वता॑। वस॑वो दे॒वता॑। रु॒द्रो दे॒वता॑। आ॒दि॒त्या दे॒वता॑। म॒रुतो॑ दे॒वता॑। विश्वे॑दे॒वा दे॒वता॑। बृह॒स्पति॑र्दे॒वता॑। इन्द्रो॑ दे॒वता॑। वरु॑णो दे॒वता॑ ॥ अग्नि १, वायु २, सूर्य ३, चन्द्रमा ४, सबके बसानेवाले अन्नादि पदार्थ ५, दुःख दूर करनेवाले जीव वा पदार्थ ६, प्रकाश करनेवाले पदार्थ अथवा अदिति, विद्या वा पृथिवी के पुत्र के समान सेवा करनेवाले पुरुष ७, दुष्टों के मारनेवाले शूरवीर पुरुष ८, सब अच्छे गुणवाले विद्वान् ९, बड़े वेदवचनों वा ब्रह्माण्डों का रक्षक परमेश्वर १०, ऐश्वर्य वा धन ११ और जल १२, यह सब (देवता) उत्तम गुणवाले हैं ॥ चतस्रः। त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृचतसृ। पा० ७।२।९९। इति चतुर्शब्दस्य जसि चतस्रादेशः। अचि र ऋतः। पा० ७।२।१००। इति रेफादेशः। चतुःसंख्याकाः। दिवः। १।११।२। आकाशस्य। प्र-दिशः। १।९।२। प्रकृष्टा दिशः। प्राच्याद्याः प्रधानदिशः। भूम्याः। भुवः कित्। उ० ४।४५। इति भू सत्तायां-मि। कृदिकारादक्तिनः। इति पक्षे ङीष्। पृथिव्याः, भूलोकस्य। देवाः। १।४।३। दिव्यपदार्था अग्न्यादयः। विद्वांसश्च। गर्भम्। अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ० ४।१५२। इति गॄ विज्ञापने, निगरणे च भन्। गीर्यते संचितकर्मफलदात्रा ईश्वरेण प्रकृतिबलात् जठरगह्वरे स्थाप्यते पुरुषशुक्रयोगेण स गर्भः। भ्रूणम्, उदरस्थसन्तानम्। सम्। सम्यक्, यथाविधि। ऐरयन्। ईर गतौ लङ्। संगतमकुर्वन्। वि+ऊर्णुवन्तु। ऊर्णुञ् आच्छादने-लोट्। विवृतं प्रस्तुतं कुर्वन्तु। सूतवे। तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति षूङ् प्राणिगर्भविमोचने−तवेन्। नित्त्वात् आद्युदात्तः। प्रसवितुम् ॥

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    विषय

    देवों का सम्पर्क व सुख-प्रसव

    पदार्थ

    १. (दिवः) = धुलोक की (चतस्त्रः प्रदिश:) = चारों प्रकृष्ट दिशाएँ, (भम्याः चतस्त्र:) = भूमि की चारों दिशाएँ (उत) = और (देवा:) = इन दिशाओं में स्थित सब देव (गर्भम्) = गर्भ को (सम् एरयन्) = सम्यक्तया उस-उस शक्ति को प्राप्त करानेवाले होते हैं। 'धुलोक की चारों दिशाएँ तथा भूमि की चारों दिशाएँ इस वाक्यांश [मुहावरे] का भाव यही है कि 'सारा ब्रह्माण्ड'। वस्तुत: यह शरीर-पिण्ड ब्रह्माण्ड का छोटा रूप होता है-('यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे')। इस पिण्ड में ब्रह्माण्ड के सूर्यादि देव अपनी-अपनी शक्ति प्राप्त कराते हैं। सूर्य ही 'चक्षु' का रूप धारण करके आँख में रहने लगता है, वायु 'प्राण' बनकर नासिका में, अग्नि 'वाक्' बनकर मुख में। इसीप्रकार भिन्न-भिन्न सब देव शरीर में वास करके शरीर को सशक्त बनाते हैं। गर्भिणी नारी इन देवों के सम्पर्क में रहती हुई गर्भस्थ सन्तान को इन सब देवों की शक्ति से युक्त करती हैं। २. अब ये सब देव (ताम्) = उस गर्भस्थ सन्तान को (सूतवे) = सुख-प्रसव के लिए (वि ऊर्तुवन्तु) = गर्भ के आवरण से रहित करें, गर्भ के आच्छादन से बाहर लानेवाले हों। यहाँ यह स्पष्ट है कि जो स्त्री सूर्य-किरणों व वायु आदि के सम्पर्क में रहेगी, खुली दिशाओं में विहारशील होगी, वह सन्तान को सुख से जन्म देनेवाली होगी।

    भावार्थ

    सूर्यादि देवों का सम्पर्क सुख-प्रसूति में अत्यन्त सहायक है।

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    भाषार्थ

    (चतस्रः दिवः प्रदिशः) चार द्युलोक की विस्तृत दिशाएँ हैं। ( उत ) तथा (चतस्रः भूम्याः ) चार भूमि की हैं । (देवा:) देवों ने (गर्भम् ) को (समैरयन्) मिलकर प्रेरित किया है। (सूतवे) प्रसव के लिये (सम् व्यूर्णुवन्तु) वे गर्भ को विगताच्छादन करें, आच्छादन से रहित करें।

    टिप्पणी

    [देवाः= सम्भवतः १० मास । यथा "दशमे मासि सूतवे" (अथर्व० ५।२५।१०)। चतस्रः= जैसे द्युलोक की तथा भूमि की चार-चार विस्तृत दिशाएँ हैं, वैसे प्रसूतिगृह की चारों दिशाएँ भी विस्तृत होनी चाहिए, जिसमें खुली वायु तथा खुले प्रकाश का प्रवेश होता रहे।]

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    विषय

    सुखपूर्वक प्रसवविद्या ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( दिवः ) सूर्य के चारों ओर ( चतस्रः प्रदिशः ) चार दिशाएं उसको घेरे हैं और जिस प्रकार (भूम्याः) भूमि को ( चतस्रः प्रदिशः ) चारों दिशाएं घेरे हैं, उसी प्रकार (गर्भं) गर्भ को भी चारों ओर से घेरा हुआ है । ( तम् ) उसको ( देवाः ) पांचों भूत ( सम् एैरयन् ) गति देते हैं और वेही (सूतवे) उत्पन्न करने के लिए ( वि ऊर्णुवन्तु ) उसे आवरणकारी गर्भस्थान से बाहर करते हैं ।

    टिप्पणी

    ( च० ) ‘व्यूर्णपन्तु’ इति सायणाभिमतः पाठः । (तृ० ) समैरयन्तां इर्शत क्काचित्कः पाठः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः पूषा देवता । १ पंक्तिश्छन्दः, २ अनुष्टुप् ३ उष्णिगर्भा ककुम्मती अनुष्टुप्, ४–६, पथ्यापंक्तिः । षड़र्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Easy Delivery

    Meaning

    Four are the directions and subdirections of heaven, four are the directions of the earth. All the divinities feed, develop and move the foetus, and they open up the body system and the foetus on maturity for the birth.

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    Translation

    Four quarters of the sky as well as four regions of the earth and bounties of Nature have given motion to the foetus. May they unclose it for easy birth.

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    Translation

    As the four quarters surround the Sun, and four directional nooks the earth so the foetus is surrounded with natural elements. The elements move the child in the womb and they prepare the women for giving birth.

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    Translation

    The forces of nature, residing in the four regions of the sky, and the four regions of the Earth, have developed the embryo, let them release the child with ease from the covering of the womb.

    Footnote

    Four regions in East, West, North, South. Forces of nature: Air, water, fire, etc.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−टिप्पणी−देव वा देवता का अर्थ दिव्य वा अच्छे गुणवाला है। यजुर्वेद १४।२०। में ये देवता कहे हैं। अ॒ग्निर्दे॒वता॑। वातो॑ दे॒वता॑। सूर्यो दे॒वता॑। च॒न्द्रमा॑ दे॒वता॑। वस॑वो दे॒वता॑। रु॒द्रो दे॒वता॑। आ॒दि॒त्या दे॒वता॑। म॒रुतो॑ दे॒वता॑। विश्वे॑दे॒वा दे॒वता॑। बृह॒स्पति॑र्दे॒वता॑। इन्द्रो॑ दे॒वता॑। वरु॑णो दे॒वता॑ ॥ अग्नि १, वायु २, सूर्य ३, चन्द्रमा ४, सबके बसानेवाले अन्नादि पदार्थ ५, दुःख दूर करनेवाले जीव वा पदार्थ ६, प्रकाश करनेवाले पदार्थ अथवा अदिति, विद्या वा पृथिवी के पुत्र के समान सेवा करनेवाले पुरुष ७, दुष्टों के मारनेवाले शूरवीर पुरुष ८, सब अच्छे गुणवाले विद्वान् ९, बड़े वेदवचनों वा ब्रह्माण्डों का रक्षक परमेश्वर १०, ऐश्वर्य वा धन ११ और जल १२, यह सब (देवता) उत्तम गुणवाले हैं ॥ चतस्रः। त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृचतसृ। पा० ७।२।९९। इति चतुर्शब्दस्य जसि चतस्रादेशः। अचि र ऋतः। पा० ७।२।१००। इति रेफादेशः। चतुःसंख्याकाः। दिवः। १।११।२। आकाशस्य। प्र-दिशः। १।९।२। प्रकृष्टा दिशः। प्राच्याद्याः प्रधानदिशः। भूम्याः। भुवः कित्। उ० ४।४५। इति भू सत्तायां-मि। कृदिकारादक्तिनः। इति पक्षे ङीष्। पृथिव्याः, भूलोकस्य। देवाः। १।४।३। दिव्यपदार्था अग्न्यादयः। विद्वांसश्च। गर्भम्। अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ० ४।१५२। इति गॄ विज्ञापने, निगरणे च भन्। गीर्यते संचितकर्मफलदात्रा ईश्वरेण प्रकृतिबलात् जठरगह्वरे स्थाप्यते पुरुषशुक्रयोगेण स गर्भः। भ्रूणम्, उदरस्थसन्तानम्। सम्। सम्यक्, यथाविधि। ऐरयन्। ईर गतौ लङ्। संगतमकुर्वन्। वि+ऊर्णुवन्तु। ऊर्णुञ् आच्छादने-लोट्। विवृतं प्रस्तुतं कुर्वन्तु। सूतवे। तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति षूङ् प्राणिगर्भविमोचने−तवेन्। नित्त्वात् आद्युदात्तः। प्रसवितुम् ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (দিবঃ) আকাশের (চত্রঃ) চারি ও (ভূম্যাঃ) ভূমির (চত্রঃ) চারি (প্রদিশঃ) দিক এবং (দেবাঃ) দিব্য গুণযুক্ত পদার্থ সমূহ (গর্ভং) গর্ভকে (সমৈরয়ন্) স্থির করিয়াছে। এসব (তম্) গর্ভকে (সূতবে) ভূমিষ্ঠ করিবার জন্য (ব্যূর্ণবস্তু) প্রস্তুত করুক।।

    भावार्थ

    আকাশের চারিদিক, ভূমির চারিদিক এবং দিব্যগুণ যুক্ত পদার্থ সমূহ গৰ্ভকে স্থিতি দান করিয়াছে। ইহারা গর্ভকে ভূমিষ্ঠ হইতে প্রস্তুত করুক।।
    অগ্নি, বায়ু, জল, আকাশাদি দিব্য পদার্থ সমূহের সংযোগে ঈশ্বরীয় বিধানুসারে গর্ভ স্থির হয়। গর্ভকে স্থির রাখিতে অনুকূল ব্যবস্থা করিলে তাহা নীরোগ অবস্থায় যথা সময়ে ভূমিষ্ঠ হয়। দিব্যগুণযুক্ত পদার্থকেই দেবতা বলে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    চতস্রো দিবঃ প্রদিশশ্চতস্রো ভুম্যা উত৷ দেবা গর্ভং সমৈরয়ন্ তং ব্যূর্ণবন্তু সূতবে।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। পূষাদয়ো মন্তোক্তাঃ। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (সৃষ্টি বিদ্যা বর্ণনম্) সৃষ্টিবিদ্যার বর্ণনা

    भाषार्थ

    (দিবঃ) আকাশের (চতস্রঃ) চারি (উত) দিক (ভূম্যাঃ) ভূমির (চতস্রঃ) চারি (প্রদিশঃ) দিক-সমূহ এবং (দেবাঃ) দিব্য গুণী [অগ্নি বায়ু আদি] দেবতাগণ (গর্ভম্) গর্ভকে (সমৈরয়ন্) সঙ্গত করেছে, তারা সবাই (তম্) সেই গর্ভকে (সূতবে) উৎপন্ন হওয়ার জন্য (ব্যূর্ণুবন্তু) প্রস্তুত করুক ॥২॥

    भावार्थ

    অগ্নি আদি দিব্য পদার্থের যথার্থ সংযোগের মাধ্যমে ঈশ্বরীয় নিয়মের অনুসারে এই গর্ভ স্থিত হয়েছে, মনুষ্য সেই তত্ত্বের অনুকূলতাকে, মাতা ও গর্ভে, স্থির রাখার জন্য সদা চেষ্টা করতে থাকুক, যাতে বালক বলবান্ ও নীরোগ হয়ে একদম সঠিক সময়ে উৎপন্ন/জন্ম হয় ॥২॥ টিপ্পণী−দেব বা দেবতার অর্থ দিব্য বা উত্তম গুণের অধিকারী। যজুর্বেদ ১৪।২০ এ দেবতা বলা হয়েছে। অগ্নির্দেবতা। বাতো দেবতা। সূর্যো দেবতা। চন্দ্রমা দেবতা। বসবো দেবতা। রুদ্রো দেবতা। আদিত্যা দেবতা। মরুতো দেবতা। বিশ্বেদেবা দেবতা। বৃহস্পতির্দেবতা। ইন্দ্রো দেবতা। বরুণো দেবতা ॥----অগ্নি ১, বায়ু ২, সূর্য ৩, চন্দ্রমা ৪, সবকিছু স্থিতকারী অন্নাদি পদার্থ ৫, দুঃখ দূরকারী জীব বা পদার্থ ৬, প্রকাশকারী পদার্থ অথবা অদিতি, বিদ্যা বা পৃথিবীর পুত্রের সমান সেবাকারী পুরুষ ৭, দুষ্টকে হত্যকারী শৌর্যশালী পুরুষ ৮, সমস্ত ভালো গুণের বিদ্বান্ ৯, বড়ো বেদ-বচন বা ব্রহ্মাণ্ডের রক্ষক পরমেশ্বর ১০, ঐশ্বর্য বা ধন ১১, এবং জল ১২, এই সব (দেবতা) উত্তম গুণান্বিত ॥

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    भाषार्थ

    (চতস্রঃ দিবঃ প্রদিশঃ) চার দ্যুলোকের বিস্তৃত দিক-সমূহ আছে। (উত) এবং (চতস্রঃ ভূম্যাঃ) চার ভূমির আছে। (দেবাঃ) দেবতাগণ (গর্ভম্) গর্ভকে (সমৈরয়ন্) একসাথে মিলে প্রেরিত করেছে। (সূতবে) প্রসবের জন্য (সম্ ব্যূর্ণুবন্তু) সেই/দেবতাগণ গর্ভকে বিগতাচ্ছাদন করুক, আচ্ছাদনরহিত করুক।

    टिप्पणी

    [দেবাঃ= সম্ভবতঃ ১০ মাস । যথা "দশমে মাসি সূতবে" (অথর্ব০ ৫।২৫।১০)। চতস্রঃ= যেমন দ্যুলোকের এবং ভূমির চার-চার বিস্তৃত দিশা আছে, তেমনিই প্রসূতিগৃহের চারিদিকও বিস্তৃত হওয়া উচিত, যার মধ্যে উন্মুক্ত বায়ু ও উন্মুক্ত আলোর প্রবেশ হতে থাকে।]

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