अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - पूषादयो मन्त्रोक्ताः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - नारीसुखप्रसूति सूक्त
112
नेव॑ मां॒से न पीव॑सि॒ नेव॑ म॒ज्जस्वाह॑तम्। अवै॑तु॒ पृश्नि॒ शेव॑लं॒ शुने॑ ज॒राय्वत्त॒वेऽव॑ ज॒रायु॑ पद्यताम् ॥
स्वर सहित पद पाठनऽइ॑व । मां॒से । न । पीब॑सि । नऽइ॑व । म॒ज्जऽसु॑ । आऽह॑तम् । अव॑ । ए॒तु॒ । पृश्नि॑ । शेव॑लम् । शुने॑ । ज॒रायु॑ । अत्त॑वे । अव॑ । ज॒रायु॑ । प॒द्य॒ता॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नेव मांसे न पीवसि नेव मज्जस्वाहतम्। अवैतु पृश्नि शेवलं शुने जराय्वत्तवेऽव जरायु पद्यताम् ॥
स्वर रहित पद पाठनऽइव । मांसे । न । पीबसि । नऽइव । मज्जऽसु । आऽहतम् । अव । एतु । पृश्नि । शेवलम् । शुने । जरायु । अत्तवे । अव । जरायु । पद्यताम् ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टिविद्या का वर्णन।
पदार्थ
[वह जरायु] (नेव) न तो (मांसे) मांस में (न) न (पीवसि) शरीर की मुटाई में (नेव) और न (मज्जसु) हड्डियों की मीग में (आहतम्) बँधी हुयी हैं। (पृश्नि) पतली (शेवलम्) सेवार घास के समान (जरायु) जेली वा झिल्ली (शुने) कुत्ते के लिये (अत्तवे) खाने को (अव) नीचे (एतु) आवे, (जरायु) जरायु (अव) नीचे (पद्यताम्) गिर जावे ॥४॥
भावार्थ
जरायु एक झिल्ली होती है, जिसे जेली वा जेरी कहते हैं और जिस में बालक गर्भ के भीतर लिपटा रहता है, कुछ उसमें से बालक के साथ निकल आती है और कुछ पीछे। यह जरायु बालक उत्पन्न होने पर नाभि आदि के बन्धन से छुट जाती है और साररहित होकर माता के उदर में ऐसे फिरता है, जैसे सेवार नाम घास जलाशय में। शरीर में उसके रह जाने से रोग हो जाता है। इससे उस जरायु का उदर से निकल जाना आवश्यक है, जिससे प्रसूता नीरोग होकर सुखी रहे ॥४॥
टिप्पणी
४−न-इव। इव अवधाने। नैव। मांसे। मनेर्दीर्घश्च। उ० ३।६४। इति मन ज्ञाने धृतौ च सप्रत्ययः, दीर्घश्च। रक्तजधातुविशेषे। न। निषेधे। पीवसि। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पीव स्थौल्ये-असुन्। ञ्नित्यादिर्नित्यम्। पा० ६।१।१९७। इति नित्त्वाद् आद्युदात्तः। स्थूलत्वे। मज्जसु। श्वनुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति मस्ज जलान्तःप्रवेशे-कनिन्, निपात्यते च। अस्थिमध्यस्थस्नेहेषु। आ-हतम्। आङ्+हन वधे गतौ च-क्त। संबद्धम्। अव। अवाक्, अधस्तात्। एतु। गच्छतु पततु। पृश्नि। घृणि−पृश्नीति। उ० ४।५२। इति स्पृश स्पर्शे-नि, सलोपः। स्वल्पम्। शेवलम्। शीङो धुक्लक्वलञ्वालनः। उ० ४।३८। इति शीङ् शयने-वालन्, ह्रस्वो वा। नित्त्वाद् आद्युदात्तः। जलस्योपरिस्थतृणविशेषः, शेवालं शैवलं वा। तद्वत् जननीजठरे स्थितं जरायु। शुने। श्वनुक्षन्पूषन्। उ० १।१५९। इति श्वि गतौ-कनिन्। कुक्कुराय। जरायु। किंजरयोः श्रिणः। उ० १।४। इति जरा+इण् गतौ-ञुण्। गर्भवेष्टनचर्म। उल्वम्। मांसपिण्डश्च यः प्रजननानन्तरं निःसरति। अत्तवे। तुमर्थे सेसेन्०। पा० ३।४।९। इति अद भक्षणे−तवेन् प्रत्ययः। भक्षितुम्। पद्यताम्। पद गतौ दिवादित्वात् श्यन्। नित्यवीप्सयोः। पा० ८।१।४। इति नित्यतायां पुनः कथनम् गच्छतु, पततु ॥
विषय
पृश्नि-शेवलम् [छोटा-सा, सोये-सोये गति करनेवाला]
पदार्थ
१. (न इव मांसे) = न तो मांस में, (न पीवसि) = न ही चरबी में, (न इव मज्जसु) = और न ही मज्जा [marrow of the bones] में यह सन्तान किसी प्रकार से (आहतम्) = आहत हो। यह (पृश्नि:) = छोटे-से परिमाण का [Dwarfish] कोमल [Delicate], (शेवलम्) = [शी+वल] सोये-सोये गति करनेवाला गर्भस्थ सन्तान (अव एतु) = बाहर आ जाए। २. उसके शरीर का (जरायु) = आवृत करनेवाला जेर (शुने अत्तवे) = कुत्ते के खाने के लिए हो। अथवा यह जरायु-जेर अवपद्यताम्-पूर्णरूप से बाहर तो आ ही जाए। अन्दर रह गया इसका अंश माता के ज्वर आदि का कारण हो जाता है। ३. यहाँ गर्भस्थ बालक को (पृश्नि) = छोटा-सा कहा गया है। वह सोये-सोये ही शरीर के अन्दर के व्यापार कर रहा होता है, अत: 'शे-बल' है। यह गर्भस्थ बालक का सुन्दरतम चित्रण है। यह मांस, चर्बी व मज्जा आदि सब धातुओं में किसी भी प्रकार से हिसित न हो। इसकी सब धातुएँ ठीक हों। आवरणभूत जरायु इसका ठीक रक्षण करे और सन्तान के बाहर आ जाने पर इस जरायु को कुत्ते आदि के लिए फेंक दिया जाए। जरायु का अंश अन्दर न रह जाए।
भावार्थ
गर्भस्थ बालक की सब धातुएँ ठीक हों। वह जरायु से सुरक्षित हुआ बाहर आ जाए और पूर्ण स्वस्थ हो। जरायु के ठीक बाहर आ जाने से माता भी पूर्ण स्वस्थ हो।
भाषार्थ
(न इव) न मानो (मांसे) मांस में, ( न पीवसि ) न स्थूलावयव में, (न इव) न मानो (मज्जसु) नलिकास्थियों के अस्थिसार में (आहतम्) संलग्न है, (पृश्नि) शुभ्रवर्ण१ [सायण ], (शेवलम्) काई के सदृश वर्तमान (जरायु) जीर्ण हुआ गर्भावरण (शुने अत्तवे) कुत्ते के खाने के लिये (अव एतु) नीचे भूमि पर गिर जाय, (जरायु) जीर्ण हुआ गर्भावरण (अब पद्यताम् ) नीचे गिर जाय [गर्भ में ही न रह जाय]।
टिप्पणी
[पीवसि=पीव स्थौल्ये (भ्वादिः ) । आहतम्= संलग्नम्, संसक्तम्, आबद्धम् ।] [१. शुभ्र का अर्थ यदि श्वेत है तो यह ठीक नहीं, क्योंकि शुभ्र पद शेवल का विशेषण है, शेवल हरी होती है । शेवल है जल की काई। यदि शुभ्र का अर्थ है चमकीला तो यह विशेषण ठीक है, शेवल हरेपन में चमकीला तो होता ही है।]
विषय
सुखपूर्वक प्रसवविद्या ।
भावार्थ
( जरायु ) जिसमें गर्भाशयगत बालक लिपटा होता है, वह जो ( न इव ) नाहीं (मांसे ) मांस में, (न) न ( पीवसि ) शरीरगत मेद या चर्बी में और ( न इव ) न ( मज्जसु ) मज्जाओं में ही ( आहतम् ) सटा, चिपका होता है, इसलिये वह ( जरायु ) जरायु भाग भी ( पृश्नि ) केवल भीतर के अंग को स्पर्शमात्र करने वाला या श्वेतवर्ण का ( शेवलं ) और जो शयन करने वाले बालक पर आवरण सा होता है । वह ( जरायु ) गर्भवेष्टन ( शुने अत्तवे ) कुत्ते आदि हीन जन्तु के खाने के निमित्त ( अव पद्यताम् ) नीचे आ जावे।
टिप्पणी
‘नेव मांसैन’ इति सायणाभिमतपदच्छेदः पदपाठानुक्रमण्यादिविरुद्धः ?
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः पूषा देवता । १ पंक्तिश्छन्दः, २ अनुष्टुप् ३ उष्णिगर्भा ककुम्मती अनुष्टुप्, ४–६, पथ्यापंक्तिः । षड़र्चं सूक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Easy Delivery
Meaning
The cover of the foetus is not stuck in the flesh, nor in the fat, nor in marrow. Let the thin spotted sheet after birth be out for dogs to eat.
Translation
It is not as if fastened in the flesh, nor in the fat, nor as if in the marrows. Let the dappled and slimy after-birth come down for the dog to eat. Let the after-birth (jarayu) descend.
Translation
The secundines in which the embryo is covered neither sticked in the flesh nor in the fat or not in the marrow and hence this grass-like thin cover fall down and be left for dag to eat.
Translation
Secundines do not stick to fesh, fat or the marrow of bones. Soft like the grass, they come down, fit to be eaten by a dog, Let secundines come out through the uterus.
Footnote
Secundines: जरायु the outer skin of the embryo. This word is used in the plural number. The slough must come out if a part of it remains inside it creates various sorts of diseases.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−न-इव। इव अवधाने। नैव। मांसे। मनेर्दीर्घश्च। उ० ३।६४। इति मन ज्ञाने धृतौ च सप्रत्ययः, दीर्घश्च। रक्तजधातुविशेषे। न। निषेधे। पीवसि। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पीव स्थौल्ये-असुन्। ञ्नित्यादिर्नित्यम्। पा० ६।१।१९७। इति नित्त्वाद् आद्युदात्तः। स्थूलत्वे। मज्जसु। श्वनुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति मस्ज जलान्तःप्रवेशे-कनिन्, निपात्यते च। अस्थिमध्यस्थस्नेहेषु। आ-हतम्। आङ्+हन वधे गतौ च-क्त। संबद्धम्। अव। अवाक्, अधस्तात्। एतु। गच्छतु पततु। पृश्नि। घृणि−पृश्नीति। उ० ४।५२। इति स्पृश स्पर्शे-नि, सलोपः। स्वल्पम्। शेवलम्। शीङो धुक्लक्वलञ्वालनः। उ० ४।३८। इति शीङ् शयने-वालन्, ह्रस्वो वा। नित्त्वाद् आद्युदात्तः। जलस्योपरिस्थतृणविशेषः, शेवालं शैवलं वा। तद्वत् जननीजठरे स्थितं जरायु। शुने। श्वनुक्षन्पूषन्। उ० १।१५९। इति श्वि गतौ-कनिन्। कुक्कुराय। जरायु। किंजरयोः श्रिणः। उ० १।४। इति जरा+इण् गतौ-ञुण्। गर्भवेष्टनचर्म। उल्वम्। मांसपिण्डश्च यः प्रजननानन्तरं निःसरति। अत्तवे। तुमर्थे सेसेन्०। पा० ३।४।९। इति अद भक्षणे−तवेन् प्रत्ययः। भक्षितुम्। पद्यताम्। पद गतौ दिवादित्वात् श्यन्। नित्यवीप्सयोः। पा० ८।१।४। इति नित्यतायां पुनः कथनम् गच्छतु, पततु ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(মাংসে) মাংসে (নেব) নহে (ন পীবসি) মেদেও নহে (মজ্জসু) মজ্জাতে (ন) নহে (আহতম্) আবদ্ধ। (পৃশ্নি) লঘু (শেবলং) শৈবাল তুল্য (জরায়ু) জরায়ু (শুনে) কুকুরের জন্য (অত্তবে) ভোজনার্থ (অব) নিয়ে (এতু) আসুক। (জরায়ু) জরায়ু (অব) নিয়ে (পদ্যতাম্) পতিত হউক।।
भावार्थ
জরায়ু মাংস দ্বারা আবদ্ধ নহে, মেদ বা মজ্জা দ্বারাও আবদ্ধ নহে। ইহা লঘু শৈবাল তুল্য অনবদ্ধ। কুকুরের ভোজনের জন্য ইহা নিম্নে আসুক। জরায়ু নিম্নে পতিত হউক।।
জরায়ু এক ঝিল্লী বিশেষ। সন্তান মাতৃগর্ভে জরায়ু দ্বারা বেষ্টিত থাকে। ভূমিষ্ঠ হইলে ইহার কতকাংশ সন্তানের সহিত বাহিরে আসে এবং অবিশিষ্ট অংশ মাতৃগর্ভে জলের উপর শৈবালের ন্যায় বিচরণ করে। ইহা মাতৃগর্ভে থাকিয়া গেলে মাতাকে নানারূপ রোগে কষ্ট পাইতে হয়। গর্ভ হইতে ইহার নিষ্ক্রমণ আবশ্যক।।
मन्त्र (बांग्ला)
নেব মাংসে ন পীবসি নেব মজ্জস্বাহতম্। অবৈতু পৃশ্নি শেবলং শুনে জরায়ত্তবেহব জরায়ু পদ্যতাম্।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। পূষাদয়ো মন্তোক্তাঃ। পথ্যা পঙক্তিঃ
मन्त्र विषय
(সৃষ্টি বিদ্যা বর্ণনম্) সৃষ্টিবিদ্যার বর্ণনা
भाषार्थ
[সেই জরায়ু] (নেব) না তো (মাংসে) মাংসে (ন) না (পীবসি) শরীরের স্থূলতায় (নেব) এবং না (মজ্জসু) অস্থিমজ্জায় (আহতম্) বাঁধা থাকে। (পৃশ্নি) পাতলা (শেবলম্) শৈবালের সমান (জরায়ু) ঝিল্লি (শুনে) কুকুরের জন্য (অত্তবে) খাবারের জন্য (অব) নীচে (এতু) আসবে/আসুক, (জরায়ু) জরায়ু (অব) নীচে (পদ্যতাম্) পড়ে যাবে/পতিত হোক ॥৪॥
भावार्थ
জরায়ু একটা ঝিল্লীর মতো হয়, এবং যার মধ্যে সন্তান গর্ভের ভিতর থাকে, তা থেকে কিছুটা বালকের সাথে বেরিয়ে আসে এবং কিছুটা পরে। এই জরায়ু সন্তান জন্ম হলে নাভি আদির বন্ধন থেকে মুক্ত হয়ে যায় এবং সাররহিত হয়ে মাতার উদরে এমনভাবে ফিরে, যেমন শৈবাল জলাশয়ে। শরীরে তা থেকে গেলে রোগ হয়। ফলে সেই জরায়ুর উদর থেকে বেরিয়ে যাওয়া আবশ্যক, যাতে প্রসূতা নিরোগ হয়ে সুখী থাকে ॥৪॥
भाषार्थ
(ন ইব) না মানো (মাংসে) মাংসে, (ন পীবসি) না স্থূলাবয়বে, (ন ইব) না মানো (মজ্জসু) নলিকাস্থির অস্থিসারে (আহতম্) সংলগ্ন আছে, (পৃশ্নি) শুভ্রবর্ণ১ [সায়ণ], (শেবলম্) শৈবালের সদৃশ বর্তমান (জরায়ু) জীর্ণ হওয়া গর্ভাবরণ (শুনে অত্তবে) কুকুরের খাওয়ার জন্য (অব এতু) নীচে ভূমিতে পড়ুক/পতিত হোক, (জরায়ু) জীর্ণ হওয়া গর্ভাবরণ (অব পদ্যতাম্) নীচে পড়ুক/পতিত হোক [গর্ভে যেন থেকে না যায়]।
टिप्पणी
[পীবসি=পীব স্থৌল্যে (ভ্বাদিঃ)। আহতম্= সংলগ্নম্, সংসক্তম্, আবদ্ধম্ ।] [১. শুভ্র এর অর্থ যদি শ্বেত হয় তবে তা ঠিক নয়, কেননা শুভ্র পদ শৈবালের বিশেষণ, শৈবাল সবুজ হয়। শৈবাল হল জলের শ্যাওলা। যদি শুভ্রের অর্থ চমকিত তবে এই বিশেষণ ঠিক, শৈবাল সবুজত্বের মধ্যে চমকিত তো হয়ই।]
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