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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - पूषादयो मन्त्रोक्ताः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - नारीसुखप्रसूति सूक्त
    139

    वि ते॑ भिनद्मि॒ मेह॑नं॒ वि योनिं॒ वि ग॒वीनि॑के। वि मा॒तरं॑ च पु॒त्रं च॒ वि कु॑मा॒रं ज॒रायु॒णाव॑ ज॒रायु॑ पद्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । ते॒ । भि॒न॒द्मि॒ । मेह॑नम् । वि । योनि॑म् । वि । ग॒वीनि॑के॒ इति॑ ।वि । मा॒तर॑म् । च॒ । पु॒त्रम् । च॒ । वि । कु॒मा॒रम् । ज॒रायु॑णा । अव॑ । ज॒रायु॑ । प॒द्य॒ता॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि ते भिनद्मि मेहनं वि योनिं वि गवीनिके। वि मातरं च पुत्रं च वि कुमारं जरायुणाव जरायु पद्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । ते । भिनद्मि । मेहनम् । वि । योनिम् । वि । गवीनिके इति ।वि । मातरम् । च । पुत्रम् । च । वि । कुमारम् । जरायुणा । अव । जरायु । पद्यताम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 11; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टिविद्या का वर्णन।

    पदार्थ

    (ते) तेरे (मेहनम्) गर्भ मार्ग को (वि) विशेष करके और (योनिम्) गर्भाशय को (वि) विशेष करके और (गवीनिके) पार्श्वस्थ दोनों नाड़ियों को (वि) विशेष करके (भिनद्मि) [मल से] अलग करती हूँ (च) और (मातरम्) माता को (च) और (कुमारम्) क्रीड़ा करनेवाले (पुत्रम्) पुत्र को (जरायुणा) जरायु से (वि वि) अलग-अलग [करती हूँ], (जरायु) जरायु (अव) नीचे (पद्यताम्) गिर जावे ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में धात्रेयी [धायी] अपने कर्म का वर्णन करके प्रसूता को उत्साहित करती है, अर्थात् धायी बड़ी सावधानी से प्रसवसमय प्रसूता के अङ्गों को आवश्यकतानुसार कोमल मर्दन करे और उत्पन्न होने पर माता और सन्तान की यथायोग्य शुद्धि करके सुधि रक्खे और ऐसा यत्न करे कि जरायु अपने आप गिर जावे, जिससे दोनों माता और सन्तान सुखी रहें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−वि+भिनद्मि। भिदिर् विशेषकरणे, द्विधाकरणे च। मलात् पृथक् करोमि, विश्लेषयामि। मेहनम्। १।३।७। गर्भमार्गम्। वि=विभिनद्मि। एवं (वि) इति शब्देन सह सर्वत्र योजनीयम्। योनिम्। म० ३। गर्भाशयम्। गवीनिके। १।३।६। पार्श्ववर्तिन्यौ नाड्यौ। मातरम्। १।२।१। मान्यते पूज्यते सा माता। जननीम्। पुत्रम्। पुवो ह्रस्वश्च। उ० ४।१६५। इति षूङ् शोधे-क्त्र। ह्रस्वश्च धातोः। पुनाति पित्रादीनिति पुत्रः। पुत्रः पुरुत्रायते निपरणाद्वा पुं नरकं ततस्त्रायत इति वा-इति यास्कः, निरु० २।११। पुरु+त्रैङ् रक्षणे-ड। यद्वा, पुत्+त्रैङ्-ड। यथा च रामायणे। २।१०७।१२। “पुन्नाम्नो नरकाद् यस्मात् पितरं त्रायते सुतः। तस्मात् पुत्र इति प्रोक्तः पितॄन् यः पाति सर्वतः ॥” अपत्यम्। सन्तानम्। कुमारम्। कुमार क्रीडने-अच्। क्रीडाशीलम्। शिशुम्। जरायुणा। म० ४। गर्भवेष्टनचर्मणा। अन्यत् गतम्−म० ४।

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    विषय

    अङ्ग-विकास

    पदार्थ

    १. हे मात: ! (ते) = तेरे (मेहनम्) = गर्भ-मार्ग को (विभिनधि) = विशेषरूप से खुला करता हूँ। इसीप्रकार (योनिम्) = योनि को भी (वि) = खुला करता हूँ और (गवीनिके) = दोनों नाड़ियों को भी वि-खुला करता हूँ। इन सबके संकीर्ण न होने से सन्तान का सुख-प्रसव होता है। २. बाहर आने पर (मातरं च पुत्रं च) = माता व पुत्र को (वि) = अलग-अलग करते हैं। उन्हें जोड़नेवाली नाड़ी को काटकर उनके पृथक् जीवन का आरम्भ करते हैं। आज तक माता ही खाती थी, उसकी रस आदि धातुएँ बनकर बच्चे को उस नाड़ी से प्राप्त हो जाती थीं। अब बच्चा स्वयं खाएगा और स्वतन्त्ररूपेण शरीर-धातुओं को उत्पन्न करेगा। ३. (कुमारं जरायुणा वि) = इस उत्पन्न कुमार को जरायु से पृथक् करते हैं। अब यह आवरण उसके लिए अनावश्यक हो गया है, अत: यह (जरायु) = जेर (अवपद्यताम्) = नीचे गिर जाए-बच्चे के शरीर से पृथक् हो जाए।

    भावार्थ

    सब मार्गों के ठीक विकास से ही सुख-प्रसव सम्भव होता है।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरे (मेहनम्) मुत्रद्वार का (वि भिनद्मि) मैं भेदन करता हूँ , (योनिम् नि) योनि का भेदन करता हूँ, (वि गवीनिके) पार्श्ववर्ति दो नाड़ियों का भेदन करता हूँ। (पुत्रम् च) नरक से त्राण करनेवाले पुत्र को (मातरम् च) और माता को (वि) पृथक करता हूँ, तथा (कुमारम् ) कुमार को (वि) पृथक् करता हूँ (जरायुणा) जरायु से अर्थात् जीर्ण हुए गर्भावरण से। (जरायु अव पद्यताम्) जरायु नीचे पतित हो जाय।

    टिप्पणी

    [गवीनिके= योनेः पार्श्ववर्तिन्यौ निर्गमनप्रतिबन्धिके नाड्यौ (सायण)। कुमारम् पद द्वारा उत्पन्न शिशु की पुंल्लिङ्गता प्रकट की है। यह कुमार है, न कि कुमारी।]

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    विषय

    सुखपूर्वक प्रसवविद्या ।

    भावार्थ

    हे गर्भिणि ! (ते ) तेरे ( मेहनं ) अङ्ग को (वि भिनद्मि) खोलता हूं और बालक को सुगमता से बाहर आने देने के लिये ( योनिं वि ) योनिभाग गर्भाशय के मार्ग को भी चौड़ा करता हूं और ( गवीनिके ) योनिभाग के पासों पर लगी दो नाडियाँ जहां से मातृ बीज आता है उनसे भी (वि) विशेष रूप से वालक को अलग कर देता हूं। ( मातरं वि ) जननी को उस पुत्र से और (पुत्रं वि...) पुत्र को जननी से और ( कुमारं ) शिशु को ( जरायुणा ) गर्भावेष्टन के सम्बन्ध से (वि) जुदा २ कर देता हूं ( जिससे बालक सुखपूर्वक बाहर आजाय और सब के अनन्तर (जरायु) वह गर्भवेष्टन (अव पद्यताम्) नीचे आजाय। यहां साक्षात् ईश्वर ही प्रसवकारिणी के प्रति कह रहा है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः पूषा देवता । १ पंक्तिश्छन्दः, २ अनुष्टुप् ३ उष्णिगर्भा ककुम्मती अनुष्टुप्, ४–६, पथ्यापंक्तिः । षड़र्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Easy Delivery

    Meaning

    I, physician surgeon, open up your urinary passage, open up the passage of delivery from the womb and separate apart the two parts of the groin. I separate the mother and the baby from the afterbirth. Let the placenta descend.

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    Translation

    I split apart your passage of womb, apart the vagina, and apart both the groins.I split apart the son from the mother and the child from the after-birth. May the after-birth descend.

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    Translation

    O' pregnant woman; I the physician and surgeon open your organ; stretch the mouth of the womb; separate the embryo-from arteries adjacent to it; separate the mother from child and the child from mother and keep away child from secundivnes and secondines from child, so that the child come out and the second-ines fall down.

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    Translation

    I expand thy urinator, thy womb and thy groins. I separate the mother from the child, and the child from the mother. I separate the child from the secundines. Let secundines come out through the uterus.

    Footnote

    I refers to a skilled midwife, well-versed in medical science. Pt. Jaidev Vidyalankar interprets ‘I’ as referring to God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−वि+भिनद्मि। भिदिर् विशेषकरणे, द्विधाकरणे च। मलात् पृथक् करोमि, विश्लेषयामि। मेहनम्। १।३।७। गर्भमार्गम्। वि=विभिनद्मि। एवं (वि) इति शब्देन सह सर्वत्र योजनीयम्। योनिम्। म० ३। गर्भाशयम्। गवीनिके। १।३।६। पार्श्ववर्तिन्यौ नाड्यौ। मातरम्। १।२।१। मान्यते पूज्यते सा माता। जननीम्। पुत्रम्। पुवो ह्रस्वश्च। उ० ४।१६५। इति षूङ् शोधे-क्त्र। ह्रस्वश्च धातोः। पुनाति पित्रादीनिति पुत्रः। पुत्रः पुरुत्रायते निपरणाद्वा पुं नरकं ततस्त्रायत इति वा-इति यास्कः, निरु० २।११। पुरु+त्रैङ् रक्षणे-ड। यद्वा, पुत्+त्रैङ्-ड। यथा च रामायणे। २।१०७।१२। “पुन्नाम्नो नरकाद् यस्मात् पितरं त्रायते सुतः। तस्मात् पुत्र इति प्रोक्तः पितॄन् यः पाति सर्वतः ॥” अपत्यम्। सन्तानम्। कुमारम्। कुमार क्रीडने-अच्। क्रीडाशीलम्। शिशुम्। जरायुणा। म० ४। गर्भवेष्टनचर्मणा। अन्यत् गतम्−म० ४।

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (তে) তোমার (মেহনং) গর্ভ দ্বারকে (বি) বিশেষভাবে (য়োনিং) গভশয়কে (বি) বিশেষভাবে (গবীনিকে) পার্শ্বস্থ উভয় নাড়ীকে (বি) বিশেষভাবে (ভিনদ্মি) মল হইতে পৃথক করি। (চ) এবং (মাতরং) মাতাকে (চ) এবং (কুমারং) শিশু (পুত্রুং) পুত্রকে (জরায়ুণা) জরায়ু হইতে (বি বি) পৃথক পৃথক করি। (জরায়ু) জরায়ু (অব) নীচে (পদ্যতাম্) পতিত হউক।।

    भावार्थ

    (ধাত্রী প্রসবকালে এই বলিয়া গর্ভিণীকে উৎসাহ দিতেছে)-তোমার গর্ভদ্বার, গর্ভাশয় ও পার্শ্বস্থ উভয় নাড়ীকে আমি বিশেষভাবে মলমুক্ত করিতেছি। মাতাকে ও শিশু সন্তানকে জরায়ু হইতে মুক্ত করিতেছি। জরায়ু এখন নীচে পতিত হউক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    বিতে ভিনদ্মি মেহনং বি য়োনিং বি গবীনিকে। বি মাতরং চ পুক্রং চ বি কুমারং জরায়ু ণাব জরায়ু পদ্যতাম্।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। পূষাদয়ো মন্তোক্তাঃ। পথ্যা পঙক্তিঃ

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    मन्त्र विषय

    (সৃষ্টি বিদ্যা বর্ণনম্) সৃষ্টিবিদ্যার বর্ণনা

    भाषार्थ

    (তে) তোমার (মেহনম্) গর্ভ মার্গকে (বি) বিশেষভাবে/বিশেষ করে এবং (যোনিম্) গর্ভাশয়কে (বি) বিশেষভাবে/বিশেষ করে এবং (গবীনিকে) গবিনী/পার্শ্বস্থ দুই নাড়িকে (বি) বিশেষভাবে/বিশেষ করে (ভিনদ্মি) [মল থেকে] আলাদা করছি (চ) এবং (মাতরম্) মাতাকে (চ) এবং (কুমারম্) ক্রীড়ারত (পুত্রম্) পুত্রকে (জরায়ুণা) জরায়ু থেকে (বি বি) পৃথক-পৃথক [করছি], (জরায়ু) জরায়ু (অব) নীচে (পদ্যতাম্) পড়ে যাবে/পতিত হোক ॥৫॥

    भावार्थ

    এই মন্ত্রে ধাত্রেয়ী [ধায়ী] নিজের কর্মের বর্ণনা করে প্রসূতাকে উৎসাহিত করে, অর্থাৎ ধায়ী অনেক সাবধানে প্রসবের সময় প্রসূতার অঙ্গকে আবশ্যকতানুসারে কোমল মর্দন করুক এবং জন্ম হলে মাতা ও সন্তানের যথাযোগ্য শুদ্ধি করে সুধি রাখুক এবং এমন প্রচেষ্টা করুক যাতে জরায়ু নিজে থেকেই পড়ে যায়,যাতে দুজনেই মাতা ও সন্তান সুখী থাকে ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (তে) তোমার (মেহনম্) মুত্রদ্বারের (বি ভিনদ্মি) আমি ভেদন করি, (যোনিম্ নি) যোনির ভেদন করি, (বি গবীনিকে) পার্শ্ববর্তী দুই নাড়ির ভেদন করি। (পুত্রম্ চ) নরক থেকে ত্রাণকারী পুত্রকে১ (মাতরম্ চ) এবং মাতাকে (বি) পৃথক করি, এবং (কুমারম্) কুমারকে (বি) পৃথক্ করি (জরায়ুণা) জরায়ু থেকে অর্থাৎ জীর্ণ হওয়া গর্ভাবরণ থেকে। (জরায়ু অব পদ্যতাম্) জরায়ু নীচে পতিত হোক/হয়ে যাক।

    टिप्पणी

    [গবীনিকে= যোনেঃ পার্শ্ববর্তিন্যৌ নির্গমনপ্রতিবন্ধিকে নাড্যৌ (সায়ণ)।][১. বৃদ্ধাবস্থা নরকরূপী, যখন ব্যাক্তি নিঃসহায় হয়ে পড়ে তখন পুত্রই রক্ষা করে।]

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