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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - पूषादयो मन्त्रोक्ताः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - नारीसुखप्रसूति सूक्त
    117

    यथा॒ वातो॒ यथा॒ मनो॒ यथा॒ पत॑न्ति प॒क्षिणः॑। ए॒वा त्वं द॑शमास्य सा॒कं ज॒रायु॑णा प॒ताव॑ ज॒रायु॑ पद्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॒ वातो॒ यथा॒ मनो॒ यथा॒ पत॑न्ति प॒क्षिणः॑ । ए॒वा त्वं द॑शमास्य सा॒कं ज॒रायु॑णा प॒ताव॑ ज॒रायु॑ पद्यताम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा वातो यथा मनो यथा पतन्ति पक्षिणः। एवा त्वं दशमास्य साकं जरायुणा पताव जरायु पद्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा वातो यथा मनो यथा पतन्ति पक्षिणः । एवा त्वं दशमास्य साकं जरायुणा पताव जरायु पद्यताम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 11; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टिविद्या का वर्णन।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (वातः) पवन और (यथा) जैसे (मनः) मन और (यथा) जैसे (पक्षिणः) पक्षी (पतन्ति) चलते हैं। (एव) वैसे ही (दशमास्य) हे दस महीनेवाले [गर्भ के बालक !] (त्वम्) तू (जरायुणा साकम्) जरायु के साथ (पत) नीचे आ, (जरायु) जरायु (अव) नीचे (पद्यताम्) गिर जावे ॥६॥

    भावार्थ

    (दशमास्य) दशवें अथवा ग्यारहवें महीने में बालक माता के गर्भ में बहुत शीघ्र चेष्टा करता है, तब वह उत्पन्न होता है और जरायु वा जेली कुछ उस के साथ और कुछ उसके पीछे निकलती है ॥६॥ ऋग्वेद म० ५ सू० ७८ म० ८ में इस प्रकार है। यथा॒ वातो॒ यथा॒ वनं॒ यथा॑ समु॒द्र एज॑ति। ए॒वा त्वं द॑शमास्य स॒हावे॑हि ज॒रायु॑णा ॥१॥ जैसे वायु, जैसे वृक्ष और जैसे समुद्र हिलता है, ऐसे ही तू हे दस महीनेवाले [गर्भ के बालक !] जरायु के साथ नीचे आ। शब्दकल्पद्रुम कोश में लिखा है। अष्टमे मासि याते च अग्नियोगः प्रवर्तते। मासे तु नवमे प्राप्ते जायते तस्य चेष्टितम् ॥१॥ जायते तस्य वैराग्यं गर्भवासस्य कारणात्। दशमे च प्रसूयेत तथैकादशमासि वा ॥२॥ आठवाँ महीना आने पर अग्नियोग होता है और नवमे महीने में उस [गर्भ] में चेष्टा होती है ॥१॥ गर्भ में वास करने के कारण उसको वैराग्य (उच्चाटन) होता है, तब दसवें अथवा ग्यारहवें महीने में वह उत्पन्न होता है ॥२॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    ६−यथा। येन प्रकारेण। वातः। हसिमृग्रिण्वा०। उ० ३।८६। इति वा सुस्वाप्तिगतिसेवासु−तन्। नित्त्वाद् आद्युदात्तः। वायुः, पवनः। मनः। १।१।२। ज्ञानसाधकम् अन्तःकरणम्। पतन्ति। शीघ्रं गच्छन्ति उड्डीयन्ते। पक्षिणः। अत इनिठनौ। पा० ५।२।११५। इति पक्ष−इनि। विहगाः। एव। निपातस्य च। पा० ६।३।१३६। इति दीर्घः। एवम्, तथा। दश-मास्य। तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च। पा० २।१।५१। इति तद्धितार्थे विषयभूते समासः। संख्यापूर्वो द्विगुः। पा० २।१।५२। इति द्विगुसंज्ञायाम्। द्विगोर्यप्। पा० ५।१।८२। इति भरणार्थे यप्। हे दशसु मासेषु मात्रा पोषित शिशो। साकम्। सह। सहयुक्तेऽप्रधाने। पा० २।३।१९। इति सहार्थेन साकं शब्देन योगे जरायुणा इति अप्राधान्ये तृतीया। पत। अधो गच्छ। अव। इत्यादि गतं म० ४॥

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    विषय

    दशमास्य यथा वातो

    पदार्थ

    १. (यथा) = जैसे (वात:) = वायुः [पतति] सहज स्वभाव से चलती है, यथा मन:-जैसे मन तीव्र गतिवाला होता है, (यथा) = जैसे (पक्षिण:) = पक्षी (पतन्ति) = दोनों पलों से गति करते हैं, (एव) = उसी प्रकार हे (दशमास्य) = दस मास की अवस्थावाले गर्भ से बाहर आनेवाले बालक! (त्वम्) = तू जरायुणा (साकम्) = जेर के साथ (पत) = गतिवाला हो, गर्भ से बाहर आ और (जरायु) = यह जेर (अवपद्यताम्) = तुझसे पृथक् हो जाए। २. वायु की सहज गति की भाँति गर्भ सहज गति से बाहर आनेवाला हो। मन की शीघ्र गति को भौति बाहर आने की क्रिया में तनिक भी विलम्ब न हो। पक्षियों के दोनों पड़ों की गति की भांति इस उत्पन्न बालक के अवर व पर-दोनों गात्र ठीक हों। इसकी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियाँ ठीक प्रकार से कार्य करनेवाली हों।

    भावार्थ

    सन्तान के प्रसव का ठीक समय वही है जब वह दशमास्य होता है। यह दशमास्य दशम दशक तक-शतवर्षपर्यन्त जीनेवाला होता है।

    विशेष

    सूक्त के आरम्भिक मन्त्र में कहा है कि पुरुष अर्यमा, होता व वेधा' हो, स्त्री ऋत-प्रजाता हो तो सन्तान सुख से प्रसूत होती है [१]। सुख-प्रसव के लिए देवों के सम्पर्क में रहना आवश्यक है [२]। माता को प्रसन्न मनवाला होना चाहिए [३], तभी बालक की सब धातुएँ भी ठीक बनेंगी [४]। माता के गर्भाङ्गों का ठीक विकास सुख-प्रसूति के लिए आवश्यक है [५]। ऐसा होने पर यह दस मास का बालक सुखपूर्वक गति करता हुआ बाहर आ जाता है [६]। जिस प्रकार जरायु के आवरण से निकलकर बालक प्रकट होता है, उसी प्रकार मेघों के आवरण से निकलकर सूर्य चमक उठता है। सूर्य भी मानो जरायुज है

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    भाषार्थ

    (यथा वातः) जैसे वायु [शीघ्र प्रवाहित होती है ] (यथा मनः जैसे मन [शीघ विषयों की ओर जाता है], (यथा पक्षिणः पतन्ति) जैसे पक्षी बिना रुकावट [अन्तरिक्ष में] (पतन्ति) उड़ते हैं; (एव = एवम्) इस प्रकार (दशमास्य) १० मासों का हे शिशु! तूँ ( जरायुणा साकम् ) जीर्ण हुए गर्भावरण अर्थात् जेर के साथ (पत) गर्भाशय से शीघ्र निर्गत हो, (अव जरायु पद्यताम्) और जरायु भी नीचे गिरे ।

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    विषय

    सुखपूर्वक प्रसवविद्या ।

    भावार्थ

    गर्भ का बाहर आना स्वाभाविक है, ( यथा ) जैसे (वातः) वायु या प्राण नासिका से आपसे आप बाहर आते हैं और (यथा मनः ) जिस प्रकार मन आपसे आप विषयों के प्रति जाता है और ( यथा ) जिस प्रकार (पक्षिणः) पक्षिगण अपने घोंसलों से निकल कर उड़ने लगते हैं ( एवा ) उसी प्रकार हे ( दशमास्य ) दश मास तक गर्भ में रहने हारे गर्भगत बालक ! ( त्वं ) तू ( जरायुणा ) गर्भकाल के वेष्टनचर्म अर्थात् जेर के (सार्क ) साथ ही बाहर आजा और ( जरायु ) जेर भी (अव पद्यताम्) नीचे बाहर आजाय । इति द्वितीयोऽनुवाकः ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः पूषा देवता । १ पंक्तिश्छन्दः, २ अनुष्टुप् ३ उष्णिगर्भा ककुम्मती अनुष्टुप्, ४–६, पथ्यापंक्तिः । षड़र्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Easy Delivery

    Meaning

    As the wind blows, as the mind moves, as birds fly, so you, O ten month mature baby, move and come with the placenta. Let the afterbirth descend.

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    Translation

    As the wind, as the mind and as the birds descend, so o foetus of ten months, may you descend along with the after-birth. May the after-birth descend.

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    Translation

    This ten month old embryo comes out of womb with secun-dines just like the wind, mind and birds move and the secundines fall out. [NB. Here in the last verse it has been distinctly mentioned that the emvryo and Secundines naturally come out of womb. They cannot remain in womb for over or for more than ten months.]

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    Translation

    Just as breaths come voluntarily out of the nose, just as the mind runs spontaneously after its sensual objects, and just as birds fly freely in the atmosphere, so shouldst thou, O babe of ten months old, come easily out of the womb with slough. Let secundines come out through the uterus.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−यथा। येन प्रकारेण। वातः। हसिमृग्रिण्वा०। उ० ३।८६। इति वा सुस्वाप्तिगतिसेवासु−तन्। नित्त्वाद् आद्युदात्तः। वायुः, पवनः। मनः। १।१।२। ज्ञानसाधकम् अन्तःकरणम्। पतन्ति। शीघ्रं गच्छन्ति उड्डीयन्ते। पक्षिणः। अत इनिठनौ। पा० ५।२।११५। इति पक्ष−इनि। विहगाः। एव। निपातस्य च। पा० ६।३।१३६। इति दीर्घः। एवम्, तथा। दश-मास्य। तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च। पा० २।१।५१। इति तद्धितार्थे विषयभूते समासः। संख्यापूर्वो द्विगुः। पा० २।१।५२। इति द्विगुसंज्ञायाम्। द्विगोर्यप्। पा० ५।१।८२। इति भरणार्थे यप्। हे दशसु मासेषु मात्रा पोषित शिशो। साकम्। सह। सहयुक्तेऽप्रधाने। पा० २।३।१९। इति सहार्थेन साकं शब्देन योगे जरायुणा इति अप्राधान्ये तृतीया। पत। अधो गच्छ। अव। इत्यादि गतं म० ४॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (য়থা) যেমন (বাতঃ) বায়ু (য়থা) যেমন (মনঃ) মন (য়থা) যেমন (পক্ষিণাঃ) পক্ষী (পতন্তি) বিচরণ করে (এব) তেমনই (দশমাস্য) হে দশ মাস বয়স্ক গর্ভস্থ সন্তান। (ত্বম্) তুমি (জরায়ুণা সাকং) জরায়ুর সহিত (পত) নীচে এস, (জরায়ু) জরায়ু (অব) নীচে (পদ্যতাম্) পতিত হউক।।

    भावार्थ

    বায়ু, মন ও পক্ষী যেমন স্বচ্ছন্দে বিচরণ করে। দশ মাসের পূর্ণ গর্ভস্থ সন্তান তেমনই জরায়ু সহিত স্বচ্ছন্দে নীচে আসুক। জরায় নীচে পতিত হউক।।
    দশমাস পূর্ণ হইলেই সন্তান মাতৃগর্ভে ক্রীড়াশীল হয় এবং তখনই ভূমিষ্ট হয়।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়থা বাতো য়তা মানো য়থা পতন্তি পক্ষিণঃ। এবা ত্বং দশমাস্য সাকং জরায়ুণা পতাব জরায়ু পদ্যতাম্।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অথৰ্বা। পৃষাদয়ো' মন্তোক্তাঃ। পথ্যা পঙ্ক্তিঃ

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    मन्त्र विषय

    (সৃষ্টি বিদ্যা বর্ণনম্) সৃষ্টিবিদ্যার বর্ণনা

    भाषार्थ

    (যথা) যেভাবে (বাতঃ) পবন ও (যথা) যেভাবে (মনঃ) মন ও (যথা) যেভাবে (পক্ষিণঃ) পক্ষী (পতন্তি) উড্ডয়ন করে। (এব) সেভাবেই (দশমাস্য) হে দশ মাসের [গর্ভের বালক !] (ত্বম্) তুমি (জরায়ুণা সাকম্) জরায়ুর সাথে (পত) নীচে এসো, (জরায়ু) জরায়ু (অব) নীচে (পদ্যতাম্) পতিত হবে/হোক ॥৬॥

    भावार्थ

    (দশমাস্য) দশম অথবা এগারোতম মাসে বালক মাতার গর্ভে অনেক শীঘ্রই চেষ্টা করে, তখন সে জন্ম হয় এবং জরায়ু কিছুটা তার সাথে এবং কিছুটা তার পরে বের হয় ॥৬॥ ঋগ্বেদ ৫/৭৮/৮ এ এইরকম রয়েছে। যথা বাতো যথা বনং যথা সমুদ্র এজতি। এবা ত্বং দশমাস্য সহাবেহি জরায়ুণা ॥৮॥---যেভাবে বায়ু, যেভাবে বৃক্ষ এবং যেভাবে সমুদ্র প্রবাহিত হয়, সেভাবেই তুমি হে দশম মাসের [গর্ভের বালক !] জরায়ুর সাথে নীচে এসো। শব্দকল্পদ্রুম কোশে লেখা রয়েছে।--অষ্টমে মাসি যাতে চ অগ্নিযোগঃ প্রবর্ততে। মাসে তু নবমে প্রাপ্তে জায়তে তস্য চেষ্টিতম্ ॥১॥ জায়তে তস্য বৈরাগ্যং গর্ভবাসস্য কারণাৎ। দশমে চ প্রসূয়েত তথৈকাদশমাসি বা ॥২॥ এবং অষ্টম মাসের আগমনে অগ্নিযোগ হয় এবং নবম মাসের আগমনে সেই [গর্ভ] এ চেষ্টা হয় ॥১॥ গর্ভে বাস করার কারণে তার বৈরাগ্য (উচ্চাটন) হয়, তখন দশম অথবা এগারোতম মাসে সে জন্ম হয় ॥২॥

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    भाषार्थ

    (যথা বাতঃ) যেমন বায়ু [শীঘ্র প্রবাহিত হয়] (যথা মনঃ যেমন মন [শীঘ্র বিষয়-সমূহের ধাবিত হয়], (যথা পক্ষিণঃ পতন্তি) যেমন পক্ষী বিনা বাধায় [অন্তরিক্ষে] (পতন্তি) ওড়ে/উড্ডয়ন করে; (এব = এবম্) এইভাবে (দশমাস্য) ১০ মাসের হে শিশু! তুমি (জরায়ুণা সাকম্) জীর্ণ গর্ভাবরণের সাথে (পত) গর্ভাশয় থেকে শীঘ্র নির্গত হও, (অব জরায়ু পদ্যতাম্) এবং জরায়ুও নীচে পড়ুক/পতিত হোক।

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