अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - मूत्र मोचन सूक्त
258
प्र ते॑ भिनद्मि॒ मेह॑नं॒ वर्त्रं॑ वेश॒न्त्या इ॑व। ए॒वा ते॒ मूत्रं॑ मुच्यतां ब॒हिर्बालिति॑ सर्व॒कम् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ते॒ । भि॒न॒द्मि॒ । मेह॑नम् । वर्त्र॑म् । वे॒श॒न्त्याःऽइ॑व । ए॒व । ते॒ । मूत्र॑म् । मु॒च्य॒ता॒म् । ब॒हिः । बाल् । इति॑ । स॒र्व॒कम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ते भिनद्मि मेहनं वर्त्रं वेशन्त्या इव। एवा ते मूत्रं मुच्यतां बहिर्बालिति सर्वकम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । ते । भिनद्मि । मेहनम् । वर्त्रम् । वेशन्त्याःऽइव । एव । ते । मूत्रम् । मुच्यताम् । बहिः । बाल् । इति । सर्वकम् ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(ते) तेरे (मेहनम्) मूत्रद्वार को (प्रभिनद्मि) मैं खोले देता हूँ, (इव) जैसे (वेशन्त्याः) झील का पानी (वर्त्रम्) बन्ध को [खोल देता है]। (एव), वैसे ही.... म. ६ ॥७॥
भावार्थ
जैसे सद्वैद्य लोह शलाका से रोगी के रुके हुए मूत्र को झील के पानी के समान खोलकर निकाल देता है, वैसे ही मनुष्य अपने शत्रु को निकाल देवे ॥७॥
टिप्पणी
७−प्र+भिनद्मि। भिदिर् विदारणे−लट्। व्यवहिताश्च। पा० १।४।८२। इति उपसर्गस्य व्यवधानम्। विवृणोमि, विवृतं करोमि। मेहनम्। मिह सेचने करणे ल्युट्। मेहति सिञ्चति मूत्रम्। मूत्रमार्गम्। वर्त्रम्। सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। वृतु वर्तने-ष्ट्रन्। बन्धम्। वेशन्त्याः। जॄविशिभ्यां झच्। उ० ३।१२६। इति विश प्रवेशे-झच्। झोऽन्तः। पा० ७।१।३। इति झस्य अन्तादेशः, वेशन्तः जलाशयः। भवे छन्दसि। पा० ४।४।११०। इति यत्। वेशन्ते सरोवरे भवा आपः। अन्यत् पूर्ववत् मं० ६ ॥
विषय
मेहन-प्रभेद
पदार्थ
१. मूत्र-निरोध से पीड़ित व्यक्ति को आथर्वणी चिकित्सा में निपुण वैद्य कहता है कि मैं (ते मेहनम्) = तेरे मूत्रद्वार को इसप्रकार (प्रभिनधि) = खोल देता हूँ (इव) = जैसेकि (बेशन्त्याः वत्रम्) = एक महान् सरोवर के बन्ध को खोल देते हैं। २. (एव) = इसप्रकार करने से (ते मूत्रम्) = शरीर में रुका हुआ यह मूत्र-द्रव (बहिः मुच्यताम्) = बाहर निकल जाता है। इसके साथ ही निरुद्ध विष भी निकल जाते हैं और (इति) = इस व्यवस्था से (सर्वकम्) = शरीर के सब अङ्ग (बाल) = [बल सञ्चरणे] ठीक से कार्य करने लगते हैं।
भावार्थ
मूत्र-द्वार का विकार दूर होकर मूत्र-द्रव बाहर हो और शरीर निर्विष बने।
भाषार्थ
(ते) तेरे (मेहनम्) मूत्रसेचक-मूत्रनाल का (भिनद्मि१) मैं [शल्य-चिकित्सक] भेदन करता हूँ, (इव) जैसेकि (वेशन्त्याः) तलाब के जलों का (वर्त्रम्) मार्ग भिन्न किया जाता है, विदारित किया जाता है।
टिप्पणी
["वत्रम्= वर्तते प्रवहति जलम् अत्रेति वर्त्रो मार्गः। वेशन्त्याः= शिन्ति तिष्ठन्ति अस्मिन् आप: इति वेशन्तः पल्वम्, तत्र भवा: आपः वेशन्त्याः" (सायण)। शेष पूर्ववत् ] [१. "लोहशलाकया" (सायण)। इसे Catheter कहते हैं।]
विषय
शर और शलाका का वर्णन ( वस्तिचिकित्सा ) ।
भावार्थ
हे मूत्रव्याधि से पीड़ित जन ! ( ते ) तेरी ( मेहनं ) मूत्र नाड़ी को मैं चिकित्सक रुके हुए मूत्र को बाहर करने के लिये ( भिनद्मि ) लोहशलाका द्वारा उसी प्रकार खोलता हूं जिस प्रकार ( वेशन्त्याः ) जल से भरे तालावसे ( वर्त्रं ) बन्ध को तोड़ दिया जाता है । ( एवा ते० ) इस प्रकार तेरा सम्पूर्ण मूत्र ‘बाल्’ शब्द सहित भरभराता, हुआ बाहर आजावे ।
टिप्पणी
‘वर्तं’ इति सायणाभिमतः पाठः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः पर्जन्यमित्रादयो बहवो देवताः। १-५ पथ्यापंक्ति, ६-९ अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Health of Body and Mind
Meaning
I remove the obstruction, open the urethra and release the flow. Let the urine flow free all at once.
Translation
I hereby open your urinary passage like the weir or dam of a tank. So may your urine be released. May all of it come out with a splash.
Translation
I, the physician open the normal passage of your urine organ in such a manner as the let out of a bund is open for the swift flow of water. This is all that is required for you.
Translation
Just as the pent-up water of a lake is let loose by cleaving its dam, so do I, O patient open thy urinary passage. May that urine of thine come out completely, free from check.
Footnote
I refers to a surgeon, who opens the urinary passage of the patient, and allows the pent-up urine flow out.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−प्र+भिनद्मि। भिदिर् विदारणे−लट्। व्यवहिताश्च। पा० १।४।८२। इति उपसर्गस्य व्यवधानम्। विवृणोमि, विवृतं करोमि। मेहनम्। मिह सेचने करणे ल्युट्। मेहति सिञ्चति मूत्रम्। मूत्रमार्गम्। वर्त्रम्। सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। वृतु वर्तने-ष्ट्रन्। बन्धम्। वेशन्त्याः। जॄविशिभ्यां झच्। उ० ३।१२६। इति विश प्रवेशे-झच्। झोऽन्तः। पा० ७।१।३। इति झस्य अन्तादेशः, वेशन्तः जलाशयः। भवे छन्दसि। पा० ४।४।११०। इति यत्। वेशन्ते सरोवरे भवा आपः। अन्यत् पूर्ववत् मं० ६ ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(তে) তোমার (মেহনম্) মূহদ্বারকে (প্রতিনদ্মি) খুলিয়া দিতেছি (ইষ) যেমন (বেশন্ত্যাঃ) সরোবরের জল (বর্প্রং) বন্ধনকে খুলিয়া দেয় (এব) তেমন (তে) তোমার (মূত্রং) মূত্রতুল্য (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বাহিরে (মুচ্যতম্) মুক্ত হউক । (ইতি সর্বকম্) ইহাই সব।। ৭।। শব্দ জ্ঞান—‘মেহনম্’ মিহ ‘বíং’ বৃতু বর্তনে ট্রন্। বন্ধম্। ‘বেশন্ত্যাঃ’ বিশ প্রবেশে ঋচ্ বেশন্তে সরোবরে ভবা আপঃ।।
भावार्थ
তোমার মূত্র দ্বারকে খুলিয়া দিতেছি। জলাশয়ের জল যেমন বন্ধন খুলিয়া দেয় তেমন তোমর এই মূত্রতুল্য শত্রুকে বাহিরে পরিত্যাগ কর।
বৈদ্য যেমন আবদ্ধ মূত্রকে লৌহ শলাকাদ্বারা সরোবরের আবদ্ধ জলের ন্যায় খুলিয়া নিষ্কৃত দেয় মনুষ্য শত্রুকে শূরীভূত করিয়া তেমনই নিষ্কৃতি দেয়।।
मन्त्र (बांग्ला)
প্র তে ভিনদ্মি মেহনং বত্রং বেশম্ভ্যা ইব। এবা তে মূত্রং মুচ্যতাং বহিৰ্বালিতি সর্বকম্।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। পর্জন্যাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(শান্তিকরণম্) শান্তির জন্য উপদেশ।
भाषार्थ
(তে) তোমার (মেহনম্) মূত্রদ্বার (প্রভিনদ্মি) আমি উন্মুক্ত করি, (ইব) যেভাবে (বেশন্ত্যাঃ) ঝিলের/জলাশয়ের জল (বর্ত্রম্) বন্ধকে [খুলে দেয়/উন্মুক্ত করে দেয়]। (এব) সেভাবেই (তে মূত্রম্) তোমার মূত্র রূপ (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বাইরে (মুচ্যতাম্) নিষ্কাশিত হোক (ইতি সর্বকম্) এটাই আকাঙ্ক্ষা ॥৭॥
भावार्थ
যেভাবে সৎ বৈদ্য/পূর্ণ শিক্ষা প্রাপ্তকারী লৌহ শলাকা দিয়ে রোগীর আবদ্ধ থাকা/থেমে থাকা মূত্রকে ঝিল এর জলের মতো খুলে বের করে দেয়/নিষ্কাশিত করে, সেভাবেই যেন মনুষ্য নিজের শত্রুকে নিষ্কাশিত করে ॥৭॥
भाषार्थ
(তে) তোমার (মেহনম্) মূত্রসেচক-মূত্রনালীর (ভিনদ্মি১) আমি [শল্য-চিকিৎসক] ভেদন করি, (ইব) যেমন (বেশন্ত্যাঃ) পুকুরের জলের (বর্ত্রম্) মার্গ ভিন্ন করা হয়, বিদারিত করা হয়।
टिप्पणी
[“বত্রম্= বর্ততে প্রবহতি জলম্ অত্রেতি বর্ত্রো মার্গঃ। বেশন্ত্যাঃ= বিশন্তি তিষ্ঠন্তি অস্মিন্ আপঃ ইতি বেশন্তঃ পল্বম্, তত্র ভবাঃ আপঃ বেশন্ত্যাঃ” (সায়ণ)। শেষ পূর্ববৎ] [১. “লোহশলাকয়া” (সায়ণ)। ইহাকে Catheter বলে।]
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