अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - मूत्र मोचन सूक्त
214
विषि॑तं ते वस्तिबि॒लं स॑मु॒द्रस्यो॑द॒धेरि॑व। ए॒वा ते॒ मूत्रं॑ मुच्यतां ब॒हिर्बालिति॑ सर्व॒कम् ॥
स्वर सहित पद पाठविऽसि॑तम् । ते॒ । व॒स्ति॒ऽबि॒लम् । स॒मुद्रस्य॑ । उ॒द॒धेःऽइ॑व ।ए॒व । ते॒ । मूत्र॑म् । मु॒च्य॒ता॒म् । ब॒हिः । वाल् । इति॑ । स॒र्व॒कम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
विषितं ते वस्तिबिलं समुद्रस्योदधेरिव। एवा ते मूत्रं मुच्यतां बहिर्बालिति सर्वकम् ॥
स्वर रहित पद पाठविऽसितम् । ते । वस्तिऽबिलम् । समुद्रस्य । उदधेःऽइव ।एव । ते । मूत्रम् । मुच्यताम् । बहिः । वाल् । इति । सर्वकम् ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(ते) तेरा (वस्तिविलम्) मूत्रमार्ग (विषितम्) खोल दिया गया है, (इव) जैसे (उदधेः) जल से भरे (समुद्रस्य) समुद्र का [मार्ग]। (एव) वैसे ही...। म.६ ॥८॥
भावार्थ
मन्त्र ७ देखो ॥
टिप्पणी
८−वि-सितम्। वि+षो अन्तकर्मणि−क्त, यद्वा, षिञ् बन्धे-क्त। विमुक्तम् वस्ति-विलम्। मं० १। वस्ति+विल स्तृतौ-क। मूत्रस्य छिद्रं मार्गम्। समुद्रस्य। स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। इति सम्+उन्दी क्लेदने-रक् सम्यक् उनत्ति क्लेदयति जलेन जगत् इति समुद्रः। समुद्रः कस्मात् समुद्द्रवन्त्यस्मादापः समभिद्रवन्त्येनमापः सम्मोदन्तेऽस्मिन् भूतानि समुदको भवति समुनत्तीति वा−निरु० २।१०। समुद्रः=अन्तरिक्षम्−निघ० १।३। सागरस्य। उदधेः। कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। इति उद वा उदक+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि। उदकपूर्णस्य। अन्यत् पूर्ववत् मं० ६ ॥
विषय
मूत्राशय का उद्बन्धन
पदार्थ
१. गतमन्त्र का वैद्य ही कहता है कि (ते) = तेरा (वस्तिबिलम) = मूत्राशय का द्वार मैंने ऐसे (विषितम्) = खोल दिया है, (इव) = जैसेकि (उदधे:) = जल के धारण करनेवाले (समुद्रस्य)= समुद्र का द्वार खोल दिया जाता है। २. (एव) = इस व्यवस्था से (ते) = तेरा यह (मूत्रम्) = नाना विषों से युक्त मूत्र-द्रव (बहिः मुच्यताम्) = बाहर निकल जाए और (इति) = इसप्रकार (सर्वकम्) = शरीर के सब अङ्ग (बाल) = पुनः अपने में जीवन-शक्ति का सञ्चय [Heard again] करनेवाले हाँ।
भावार्थ
मूत्राशय का उद्बन्धन होकर सविष मूत्र-द्रव शरीर से पृथक् हो और शरीर में पुनः शक्ति-सञ्चय हो।
भाषार्थ
(उदधेः समुद्रस्य इव) उदक की निधिरूप समुद्र के सदृश (ते ) तेरा (वस्तिबिलम्) मूत्राशय मार्ग (विषितम्) खुल गया है। (एव=एवम्) इस प्रकार (ते) तेरा (मूत्रम्) मूत्र (मुच्यताम्) विमुक्त अर्थात् प्रस्रवित हो जाय, (बहिः) मूत्राशय से बाहर हो जाय, (वालिति सर्वकम् ), अर्थ पूर्ववत्।
टिप्पणी
[जैसे कि समुद्र का उदक, खाड़ी रूप में, समुद्र से पृथक् हो जाता है, वैसे तेरा मूत्र वस्ति के मार्ग, अर्थात् द्वार से बाहर हो जाय। समुद्रस्य= समुद्र दो प्रकार के हैं, पार्थिव समुद्र और अन्तरिक्षस्थ समुद्र। अन्तरिक्ष में जल वाष्परूप में रहता है, और वर्षाकाल में मेघरूप में। "स उत्तरस्मादधरं१ समुद्रम्" (ऋ० १०।९८।५) में उत्तर-समुद्र का वर्णन हुआ है। उत्तर समुद्र = ऊर्ध्वा दिक का समुद्र। विषितम् = वि + षिञ् बन्धने (स्वादिः)+ क्तः।] [१. तथा निरुक्त (२।३।११)।]
विषय
शर और शलाका का वर्णन ( वस्तिचिकित्सा ) ।
भावार्थ
हे मूत्ररोग से पीड़ित पुरुष ! ( उदधेः समुद्रस्य ) ज्वार के साथ उमड़ते हुए सागर का जल जिस प्रकार उठ कर नदियों में बहने लगता है उसी प्रकार ( ते ) तेरा ( वस्ति-बिलं ) मूत्र कोष्ठ का छिद्र भी ( वि-सिंत ) खुलकरमूत्र के निकलने योग्य हो जाये और ( एवा० ) इस प्रकार तेरा समस्त मूत्र ‘बाल्’ शब्द के सहित बाहर आजाय ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः पर्जन्यमित्रादयो बहवो देवताः। १-५ पथ्यापंक्ति, ६-९ अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Health of Body and Mind
Meaning
The mouth of your bladder is open like a flood of the sea. Let the urine then flow free all at once.
Translation
Orifice of your bladder has been opened like a flood gate holding the water of an ocean. So may your urine be released. May all of it come out with a splash.
Translation
O' Ye patient, the passage of your urine vessel has been now opened like the sea holding tides, let the urine dropped in your urine pipe flow out freely. This is all that is required for you.
Translation
O patient suffering from a urinary disease, just as the water of the flooded ocean rises up, and flows into streams, so have I unclosed the orifice of thy bladder. May that urine of thine come out completely, free from check.
Footnote
I refers to a surgeon, who makes the pent-up urine of a patient flow by performing an operation or by administering medicinal herbs.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−वि-सितम्। वि+षो अन्तकर्मणि−क्त, यद्वा, षिञ् बन्धे-क्त। विमुक्तम् वस्ति-विलम्। मं० १। वस्ति+विल स्तृतौ-क। मूत्रस्य छिद्रं मार्गम्। समुद्रस्य। स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। इति सम्+उन्दी क्लेदने-रक् सम्यक् उनत्ति क्लेदयति जलेन जगत् इति समुद्रः। समुद्रः कस्मात् समुद्द्रवन्त्यस्मादापः समभिद्रवन्त्येनमापः सम्मोदन्तेऽस्मिन् भूतानि समुदको भवति समुनत्तीति वा−निरु० २।१०। समुद्रः=अन्तरिक्षम्−निघ० १।३। सागरस्य। उदधेः। कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। इति उद वा उदक+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि। उदकपूर्णस्य। अन्यत् पूर्ववत् मं० ६ ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
বিষি তং তে বস্তি বিলং সমূদ্রস্যোদধেরিব। এবা তে মূত্রং মূচ্যতাং বহি বালিতি সর্বকম্।।
“বিষিতম্” বি-ষিঞ বন্ধে-ক্ত। ‘বিলং’ ছিদ্রং। ‘সমূদ্রস্য’ সাগয়স্য সম উনিত্ত ক্লেদ্বনে-রক্। সম্যক্ উনত্তি ক্লেদষাত জলেন জগং ইতি সমূদ্রঃ। সমূদ্রঃ কস্মাং সমূদ্ দ্রবান্তাা স্মাদাপঃ । সমভিদ্রবন্তোনমাপঃ সন্মোদদন্তেহস্মিন্ ভূতানি সমূদকো ভবতি সমূনত্তীতি বা। নিরুক্ত ২.১০ । সমূদ্রঃ অন্তরিক্ষম্ । নিঘণ্টু ১.৩ । ‘উদসেঃ’ উদ বা উদক-ডুদাঞ্ ধারণ পোষণয়োঃ কি। উদক পূর্ণস্য।।
भावार्थ
তোমার মূত্র দ্বার উন্মুক্ত হইয়াছে। যেমন জলপূর্ণ সমূদ্রের মার্গ খুলিয়া যায় তেমন তোমরা মূত্র তুল্য শত্রু বাহিরে নির্গত হউক।।
मन्त्र (बांग्ला)
বিষি তং তে বস্তি বিলং সমূদ্রস্যোদধেরিব। এবা তে মূত্রং মূচ্যতাং বহি বালিতি সর্বকম্।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। পর্জন্যাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(শান্তিকরণম্) শান্তির জন্য উপদেশ।
भाषार्थ
(তে) তোমার (বস্তিবিলম্) মূত্রমার্গ (বিষিতম্) উন্মুক্ত করা হয়েছে, (ইব) যেভাবে (উদধেঃ) জলপূর্ণ (সমুদ্রস্য) সমুদ্রের [মার্গ], (এব) তেমনই (তে মূত্রম্) তোমার মূত্র রূপ (বাল্) শত্রুকে (বহিঃ) বাইরে (মুচ্যতাম্) বহিষ্কার করা হয়/বের করে দেওয়া হয়/নিষ্কাশিত করা হোক (ইতি সর্বকম্) এটাই আকাঙ্ক্ষা ॥৮॥
भावार्थ
তোমার মূত্রমার্গ উন্মুক্ত করা হয়েছে, যেমন জলপূর্ণ সমুদ্রের [মার্গ], তেমনই মনুষ্য যেন নিজের শত্রুকে নিষ্কাশিত করে দেয় ॥৭॥
भाषार्थ
(উদধেঃ সমুদ্রস্য ইব) উদকের নিধিরূপ সমুদ্রের সদৃশ (তে) তোমার (বস্তিবিলম্) মূত্রাশয় মার্গ (বিষিতম্) খুলে গিয়েছে/উন্মুক্ত হয়েছে। (এব=এবম্) এইভাবে (তে) তোমার (মূত্রম্) মূত্র (মুচ্যতাম্) বিমুক্ত অর্থাৎ প্রস্রবিত হোক/হয়ে যাক, (বহিঃ) মূত্রাশয় থেকে বাহির হোক/হয়ে যাক, (বালিতি সর্বকম্), অর্থ পূর্ববৎ।
टिप्पणी
[যেমন সমুদ্রের জল, খাড়ী/উপসাগর রূপে, সমুদ্র থেকে পৃথক্ হয়ে যায়, সেভাবেই তোমার মূত্র বস্তি/মূত্রাশয়ের মার্গ, অর্থাৎ দ্বার থেকে বাহির হোক/হয়ে যাক। সমুদ্রস্য= সমুদ্র দুই প্রকারের, পার্থিব সমুদ্র ও অন্তরিক্ষস্থ সমুদ্র। অন্তরিক্ষে জল বাষ্পরূপে থাকে, এবং বর্ষাকালে মেঘরূপে। “স উত্তরস্মাদধরং১ সমুদ্রম্” (ঋ০ ১০।৯৮।৫) এ উত্তর-সমুদ্রের বর্ণনা হয়েছে। উত্তর সমুদ্র = ঊর্ধ্বা দিকের সমুদ্র। বিষিতম্ = বি + ষিঞ্ বন্ধনে (স্বাদিঃ)+ ক্তঃ।] [১. তথা নিরুক্ত (২।৩।১১)।]
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