अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 3
मधु॑मन्मे नि॒क्रम॑णं॒ मधु॑मन्मे प॒राय॑णम्। वा॒चा व॑दामि॒ मधु॑मद्भू॒यासं॒ मधु॑संदृशः ॥
स्वर सहित पद पाठमधु॑ऽमत । मे॒। नि॒ऽक्रम॑णम् । मधु॑ऽमत् । मे॒ । प॒रा॒ऽअय॑नम् । वा॒चा । व॒दा॒मि॒ । मधु॑ऽमत् । भू॒यास॑म् । मधु॑ऽसंदृश: ॥
स्वर रहित मन्त्र
मधुमन्मे निक्रमणं मधुमन्मे परायणम्। वाचा वदामि मधुमद्भूयासं मधुसंदृशः ॥
स्वर रहित पद पाठमधुऽमत । मे। निऽक्रमणम् । मधुऽमत् । मे । पराऽअयनम् । वाचा । वदामि । मधुऽमत् । भूयासम् । मधुऽसंदृश: ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
विद्या की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(मे) मेरा (निक्रमणम्) पास आना (मधुमत्) बहुत ज्ञानवाला वा रस में भरा हुआ और (मे) मेरा (परायणम्) बाहिर जाना (मधुमत्) बहुत ज्ञानवाला वा रस में भरा हुआ होवे। (वाचा) वाणी से मैं (मधुमत्) बहुत ज्ञानवाला वा रसयुक्त (वदामि) बोलूँ और मैं (मधुसन्दृशः) ज्ञान रूपवाला वा मधुर रूपवाला (भूयासम्) रहूँ ॥३॥
भावार्थ
जो मनुष्य घर, सभा, राजद्वार, देश, परदेश आदि में आने, जाने, निरीक्षण, परीक्षण, अभ्यास आदि समस्त चेष्टाओं और वाणी से बोलने अर्थात् शुभ गुणों के ग्रहण और उपदेश करने में (मधुमान्) ज्ञानवान् वा रस से भरे अर्थात् प्रेम में मग्न होते हैं, वही महात्मा (मधुसन्दृश) रसीले रूपवाले अर्थात् संसार भर में शुभकर्मी होकर उपकार करते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−मधु-मत्। म० १। अतिविज्ञानयुक्तम्। मधुरसोपेतम्। नि-क्रम-णम्। नि+क्रमु गतौ−ल्युट्। निकटगमनम्, आगमनम्। परा-अयनम्। परा+अय गतौ−ल्युट्। दूरगमनम् प्रस्थानम्। वाचा। १।१।१। वाण्या। वदामि। वद वाचि−लिङर्थे लट्। कथ्यासम् उच्यासम्। भूयासम्। भू सत्तायाम्−आशिषि लिङ्। अहं स्याम्। मधु-सन्दृशः। इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति मधु+सम्+दृशिर् प्रेक्षे=चाक्षुषज्ञाने−क। ज्ञानरसरूपः, मधुरदर्शनः ॥
विषय
आना-जाना भी मधुर हो
पदार्थ
१. (मे) = मेरा (निक्रमणम्) = [नि-in] अन्दर आना अथवा समीप प्राप्त होना (मधुमत्) = माधुर्य को लिये हुए हो। (मे) = मेरा (परायणम्) = बाहर च दूर [पर-far] जाना भी (मधुमत्) = माधुर्यवाला हो। (वाचा) = वाणी से (मधुमत्) = माधुर्यवाले शब्द ही (बदामि) = बोलूँ। मैं (मधुसन्दश: भूयासम्) = मधु जैसा ही हो जाऊँ। २. यहाँ ('निक्रमणं व परायणम्') = शब्द आने-जाने को कहते हुए व्यवहारमात्र के प्रतीक हैं। हमारा सारा व्यवहार मधुर हो। विशेषकर बोलने में तो मिठास हो ही। ठीक तो यही है हम मीठे-मीठे हो जाएँ, कटुव्यवहार हमसे सम्भव ही न हो।
भावार्थ
हमारा सब व्यवहार मधुर हो।
व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज
व्याख्याः शृङ्गी मुनि कृष्ण दत्त जी महाराज-मधु उच्चारण करो
आज मैं तुम्हें ये उद्गीत गाने के लिए आया हूँ मेरे प्यारे! राजा इस अग्नि का मानो देखो, अग्नि का गीत गाता हुआ, राजा बेटा! देखो, अपनी सभाएं करता हैं, अपनी सभा करता हुआ, राजा अपनी प्रजा को कहता है, हे प्रजाओं! तुम सत्य उच्चारण करो, मानो मैं भी सत्यवादी बनूंगा, जब तक मैं सत्यवादी नही बनूंगा, तो प्रजा मेरी सत्यवादी नही बनेगी। तो वह इसी अग्नि को ले करके अश्वमेध याग करता है, अश्वमेध याग करता है, मानो देखो, उसका याग, वह होता रहता हैं, जिसको मुनिवरों! देखो, हम देखो, जिसको बलिवैश्व याग कहते हैं। बलिवैश्व याग की कल्पना, जब राजा के समीप आती हैं, क्या कोई प्राणी हमें हनन नही करना चाहिए, इतना अहिंसा परमोधर्म आ जाना चाहिए, राजा के राष्ट्र में, क्या एक दूसरा प्राणी, प्राणी का भक्षक न हो। मेरे प्यारे! देखो, वाणी से देखो, वाणी से हिंसा का प्रारम्भ होता हैं, जब राजा अपनी वाणी से उद्गीत यथार्थता के रूप में गाता है, तो मुनिवरों! देखो, वह प्रजा भी, उसी प्रकार यथार्थ उद्गीत गाने लगती हैं, और गाती हुई मुनिवरों! देखो, प्रजा महान बन जाती है। राजा अश्वमेध याग और बलि वैश्व याग करता हैं, जब बलि वैश्व याग करता है तो सबके भाग अन्न में से देता है, वह मानो देखो, कुकर को भी देता हैं, और वह जितने भी पक्षी गण हैं, जलचर हैं देखो, उन सबको वह प्रदान करता रहता हैं।
तो मेरे प्यारे! देखो, अग्नि का जब चयन करता हैं, अग्नि की आभाओं में रत्त होने लगता है, तो मेरे प्यारे! देखो, वह राजा अपनी प्रजा से कहता है, हे प्रजाओं! तुम मानो अपने क्रिया कलापों में परिणत होते हुए, तुम प्रत्येक गृह में और बलिवैश्व याग अवश्य किया करो, क्योंकि बलिवैश्व याग, अग्नि में प्रदान किया जाता है। अग्नि उसे मानो उसकी भावना के साथ, वह प्रदान करती रहती हैं, इसी प्रकार उन्होने कहा सम्भवा अग्नि के द्वारा राजा देखो, राजा के राष्ट्र में यही अग्नि वाणी का स्वरूप धारण कर लेती हैं, जब वाणी कटु हो जाती हैं, तो राजा के राष्ट्र में कटुता आ जाती है जब यह वाणी मधुर बन जाती है, तो यही वाणी राजा के राष्ट्र का उत्थान कर देती हैं।
भाषार्थ
(मे) मेरा (निक्रमणम्) घर से निकलना ( मधुमत् ) मधुररूप हो, (मे) मेरा (परायणम्) दूरगमन या अन्यों को मिलना (मधुमत्) मधुररूप हो। (वाचा) वाणी द्वारा ( मधुमत्) मधुर (वदामि) मैं बोलता हूँ । (मधुसदृशः) मधु के सदृश सर्वतोभावेन मैं मधुर (भूयासम्) हो जाऊँ।
विषय
मधुलता के दृष्टान्त से ब्रह्म विद्या और मातृशक्ति का वर्णन।
भावार्थ
(मे ) मेरा ( निक्रमणं ) कार्यों में प्रवृत्त होना या जाना ( मधुमत् ) मधु के समान मधुर, सुखकर हों। ( मे परायणम् ) मेरा कार्यों के समाप्ति तक पहुंचना या पुनः आना भी ( मधुमत् ) सुखकारी हो । ( वाचा ) वाणी से ( मधुमत् ) मधु के समान मनोहर, प्रेमयुक्त वचन ( वदामि ) बोलूं। और मैं सब प्रकार से ( मधुसंदृशः ) मधु के समान ही देखने और दीखने हारा ( भूयासं ) होजाऊं अथवा मधुर दृष्टि वाला होऊं ।
टिप्पणी
‘विदानि’ इति ह्विटनिकामितः पाठः। मधुमन्मे परायणं मधुमत्पुनरायणम्। तानो देवा देवता पुनरावहतादिति इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः । मधुवनस्पतिर्देवता । मधुवनस्पतिस्तुतिः । अनुष्टुप् छन्दः । पञ्चर्चं, मधुद्यमणिसूक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Life’s Honey
Meaning
Let my coming, going forth and going out be full of honey sweetness. Let my final exit and ultimate resort be full of honey sweet Ananda. Let me speak and express the honey sweets of love and reverence with my words, and let me share the honey sweets of divinity in my vision and response to life’s experience.
Translation
May honey-sweet be my coming in, and may honey-sweet my going: away be. May I speak honey-sweet with my tongue; and may I become honey personified.
Translation
By the use of this plant let my activity be full of sweetness. and let the finishing of my ventures be full of sweetness. May sweet words from my tongue and may I possess the sight of eyes full of sweetness.
Translation
May my conduct be sweet, may my travels be free from travail, may I be sweet in talk, may I become the embodiment of loveliness and sweetness.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−मधु-मत्। म० १। अतिविज्ञानयुक्तम्। मधुरसोपेतम्। नि-क्रम-णम्। नि+क्रमु गतौ−ल्युट्। निकटगमनम्, आगमनम्। परा-अयनम्। परा+अय गतौ−ल्युट्। दूरगमनम् प्रस्थानम्। वाचा। १।१।१। वाण्या। वदामि। वद वाचि−लिङर्थे लट्। कथ्यासम् उच्यासम्। भूयासम्। भू सत्तायाम्−आशिषि लिङ्। अहं स्याम्। मधु-सन्दृशः। इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति मधु+सम्+दृशिर् प्रेक्षे=चाक्षुषज्ञाने−क। ज्ञानरसरूपः, मधुरदर्शनः ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(মে) আত্মার (নিক্রমণং) নিকটে আসা (মধুমৎ) মধুযুক্ত (মে) আমার (পরায়ণম্) বাহিরে যাওয়া (মধুবৎ) মধুযুক্ত হউক। (বাচা) বাণী দ্বারা আমি (মধুমৎ) মধুযুক্ত (বদামি) বাক্য বলি। আমি (মধু সংসদৃশঃ) মধুর রূপযুক্ত (ভূয়াসম্) থাকি।।
भावार्थ
আমার গমনাগমন মধুর হউক। বাণী দ্বারা মধুর বাক্য বলি। আমার রূপ মধুর হউক।।
मन्त्र (बांग्ला)
মধুমন্মে নিক্রমণং মধুমন্মে পরায়ণম্। বাচা বদামি মধুমদ্ ভূয়াসং মধু সংদৃশঃ।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। মধুবনষ্পতিঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(বিদ্যাপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ) বিদ্যা প্রাপ্তির উপদেশ
भाषार्थ
(মে) আমার (নিক্রমণম্) কাছে আগমন (মধুমৎ) বহু জ্ঞানবান বা রসে পূর্ণ এবং (মে) আমার (পরায়ণম্) বাইরে গমন (মধুমৎ) বহু জ্ঞানবান বা রসে পূর্ণ হোক। (বাচা) বাণী দ্বারা আমি (মধুমৎ) বহু জ্ঞানবান বা রসযুক্ত (বদামি) কথা বলি এবং আমি (মধুসন্দৃশঃ) জ্ঞান রূপবান বা মধুর রূপবান (ভূয়াসম্) থাকি ॥৩॥
भावार्थ
যে মনুষ্য ঘর, সভা, রাজদ্বার, দেশ, পরদেশ আদিতে আসা, যাওয়া, নিরীক্ষণ, পরীক্ষণ, অভ্যাস আদি সমস্ত চেষ্টায় এবং বাণী দ্বারা কথন অর্থাৎ শুভ গুণসমূহের গ্রহণ এবং উপদেশ প্রদানে (মধুমান্) জ্ঞানবান বা রস পূর্ণ অর্থাৎ প্রেমে মগ্ন হয়ে থাকে, সেই মহাত্মাই (মধুসন্দৃশ) রসপূর্ণ রূপবান অর্থাৎ সংসারে পূর্ণ শুভকর্মী হয়ে উপকার করেন ॥৩॥
भाषार्थ
(মে) আমার (নিক্রমণম্) ঘর থেকে বহির্গমন (মধুমত্) মধুররূপ হোক, (মে) আমার (পরায়ণম্) দূরযাত্রা বা অন্যদের সাথে সাক্ষাৎকার (মধুমৎ) মধুররূপ হোক। (বাচা) বাণী দ্বারা (মধুমৎ) মধুর (বদামি) আমি বলি। (মধুসদৃশঃ) মধুর সদৃশ সর্বতোভাবে আমি যেন মধুর (ভূয়াসম্) হই/হয়ে যাই।
हिंगलिश (1)
Subject
Sweet Temperament : Madhu Vidya
Word Meaning
My salutations on entry and exit should be sweet. My entire behaviour should be sweet. सब से मिलने पर मधुरता पूर्ण अभिवादन हो, विदा लेते समय मधुरता पूर्ण विदाइ हो, समस्त व्यवहार मधुरता के शिष्ठाचार से पूरित हो.
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