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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधुवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मधु विद्या
    106

    मधो॑रस्मि॒ मधु॑तरो म॒दुघा॒न्मधु॑मत्तरः। मामित्किल॒ त्वं वनाः॒ शाखां॒ मधु॑मतीमिव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधो॑: ।अ॒स्मि॒ । मधु॑ऽतर: । म॒दुघा॑त् । मधु॑मत्ऽतर: । माम् । इत् । किल॑ । त्वम् । वना॑: । शाखा॑म् । मधु॑मतीम्ऽइव ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधोरस्मि मधुतरो मदुघान्मधुमत्तरः। मामित्किल त्वं वनाः शाखां मधुमतीमिव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधो: ।अस्मि । मधुऽतर: । मदुघात् । मधुमत्ऽतर: । माम् । इत् । किल । त्वम् । वना: । शाखाम् । मधुमतीम्ऽइव ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 34; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्या की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (मधोः) मधुर रस से मैं (मधुतरः) अधिक मधुर (अस्मि) होऊँ, (मदुघात्) लड्डू [वा मुलहटी ओषधि] से भी (मधुमत्तरः) अधिक मधुर रसवाला होऊँ। (त्वम्) तू (माम् इत्) मुझसे ही (किल) निश्चय करके (वनाः) प्रेम कर, (इव) जैसे (मधुमतीम्) मधुर रसवाली (शाखाम्) शाखा से [अनुराग करते हैं] ॥४॥

    भावार्थ

    विद्या का रस सांसारिक स्वादिष्ठ मिष्टान्न आदि रोचक पदार्थों से बहुत ही रसीला अर्थात् अधिक लाभदायक और उपकारी होता है। जैसे-जैसे ब्रह्मचारी यत्नपूर्वक विद्या की लालसा करता है, वैसे ही वैसे विद्या देवी भी उससे अनुराग करती है ॥४॥ मनु महाराज ने कहा है−अ० ४ श्लोक २० ॥ यथा यथा हि पुरुषः शास्त्रं समधिगच्छति। तथा तथा विजानाति विज्ञानं चास्य रोचते ॥१॥ जैसे-जैसे ही पुरुष शास्त्र को पढ़ता जाता है, वैसे ही वैसे वह अधिक विद्वान् होता जाता है और विज्ञान में उसकी रुचि होती है ॥

    टिप्पणी

    ४−मधोः। म० १। मधुररसात्, क्षौद्ररसात्। अस्मि। अहं भवानि। मधु-तरः। द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ। पा० ५।३।५७। इति मधु+तरप्। अधिकमाधुर्योपेतः। मदुघात्। मोदकात्। मुद हर्षे−ण्वुल्। छान्दसं रूपम् मिष्टखाद्यविशेषात्। यद्वा [मधुकात्] मधु+कै−क। मधु मधुरं कायति शब्दयति विज्ञापयतीति मधुकम्। यष्टिमधुकायाः, ओषधिविशेषात्। सायणभाष्ये तु (मदुघात्)=मधुदुघात्, मधु+दुह प्रपूरणे−कप्, घत्वं च, मधु−शब्दे धुलोपश्छान्दसः, मधुस्राविणः पदार्थविशेषात्−इति वर्तते। मधुमत्−तरः। मधु+मतुप्+तरप् पूर्ववत्। पा० ५।३।५७। अधिकतरमधुमान्, उपकारितरः। माम्। विद्यार्थिनं ब्रह्मचारिणम्। किल। प्रसिद्धौ, निश्चयेन। त्वम्। विद्ये। वनाः। वन संभक्तौ−लेट्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इति आडागमः। त्वं संभजेः, सेवस्व, कामयेथाः। शाखाम्। शाख व्याप्तौ−अच्, टाप्। वृक्षाङ्गविशेषम्। मधुमतीम्। म० १। मधु+मतुप्−ङीप्। मधुररसयुक्ताम् ॥

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    विषय

    शहद से भी अधिक मीठे

    पदार्थ

    १. मैं (मधो:) = वसन्तऋतु से भी अथवा शहद से भी (मधुतरः अस्मि) = अधिक मिठासवाला होऊँ। मेरे व्यवहार के माधुर्य के सामने शहद का मिठास भी फीका पड़ जाए। (मधुघात्) [मधु दुधात्] = माधुर्य का दोहन करनेवाले इस इक्षुदण्ड से भी (मधुमत्तर:) = मैं अधिक मिठासवाला होऊँ। है माधुर्य! (त्वम्) = तू (माम्) = मुझे (इत् किल) = निश्चय से (वना:) = सेवन कर-प्राप्त हो। उसी प्रकार प्राप्त हो (इव) = जैसेकि (मधुमती शाखाम्) = इस माधुर्यवाली इक्षुदण्डरूप शाखा को तू प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    हम शहद से भी अधिक मीठे बनें।

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    भाषार्थ

    (मधोः) मधु की अपेक्षा से (मधुतरः) अधिक मधुवाला, (मदुधात् ) मधु के दोहन करनेवाले मधुछत्ते से भी ( मधुमत्तरः) अधिक मधुर ( अस्मि ) मैं हो गया हूं। (माम् इत्) मुझे अवश्य ( त्वम् ) तू हे मधु मधुररस ! (वना:) प्राप्त हो (इव) जैसे कि तु ( मधुमतीम् शास्खाम् ) मधुरशाखारूप इक्षु को प्राप्त हुआ है ।

    टिप्पणी

    [किल प्रसिद्धौ। मधुमती शाखा है इक्षु अर्थात् गन्ना ( मन्त्र ५ ) मदुघात्=मधुदुघात्, धुलोपः छान्दसः, मधुस्राविणः पदार्थविशेषात् मधुमत्तरः अतिशयेन मधुमानस्मि (सायण) । मदुघात्=मधुदुहात्।]

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    विषय

    मधुलता के दृष्टान्त से ब्रह्म विद्या और मातृशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे जनो ! मैं ( मधोः ) मधु से भी ( मधुतरः ) अधिक प्रिय, चित्तहारी ( अस्मि ) हूं, ( मदुधात् ) ज्ञानरूप मधु के संचय करने हारे विद्वान् से भी ( मधुमत्तरः ) अधिक ज्ञान-मधु का संग्रह करने वाला हूं । हे पुरुष ! जिस प्रकार ( मधुमतीं ) मधु से युक्त ( शाखां ) शाखा या लता को रस का इच्छुक प्राणी सेवन करता है उस प्रकार ( माम् इत् ) मुझको ही ( किल ) निश्चय से ( त्वं ) तू ( वनाः ) सेवन कर । गृहपक्ष में पति का स्त्री के प्रति वचन है । मधु= स्नेह।

    टिप्पणी

    ( प्र द्वि० ) ‘मधोरहं मधुतरो मधुमान् मधुमत्तरः’ इति पैप्प० सं०। मधुघादिति क्वचित्कः पाठः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । मधुवनस्पतिर्देवता । मधुवनस्पतिस्तुतिः । अनुष्टुप् छन्दः । पञ्चर्चं, मधुद्यमणिसूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Life’s Honey

    Meaning

    I am sweeter than honey itself, sweeter than the treasure holds of honey in plants and man. O man, O sage, O divine, O love, accept me, O life, like a lovely branch bearing the honey suckle.

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    Translation

    I am sweeter than honey. Sweeter even than the honeyyielding plant (iksu or sugar cane) am I May you verily desire me like a branch with honey-comb on it.

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    Translation

    O sweet bride; I am sweeter even than honey and more sweet than Madhu-plant. As a man accepts, the branch or piece of sweet plants (sugar-cane etc) so you accept only me.

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    Translation

    I am sweeter than honey, yet more full of sweets than licorice, so mayest thou O Knowledge love me, as birds love the branch of a tree, full of sweet fruits.

    Footnote

    Licorice is sweet pudding.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−मधोः। म० १। मधुररसात्, क्षौद्ररसात्। अस्मि। अहं भवानि। मधु-तरः। द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ। पा० ५।३।५७। इति मधु+तरप्। अधिकमाधुर्योपेतः। मदुघात्। मोदकात्। मुद हर्षे−ण्वुल्। छान्दसं रूपम् मिष्टखाद्यविशेषात्। यद्वा [मधुकात्] मधु+कै−क। मधु मधुरं कायति शब्दयति विज्ञापयतीति मधुकम्। यष्टिमधुकायाः, ओषधिविशेषात्। सायणभाष्ये तु (मदुघात्)=मधुदुघात्, मधु+दुह प्रपूरणे−कप्, घत्वं च, मधु−शब्दे धुलोपश्छान्दसः, मधुस्राविणः पदार्थविशेषात्−इति वर्तते। मधुमत्−तरः। मधु+मतुप्+तरप् पूर्ववत्। पा० ५।३।५७। अधिकतरमधुमान्, उपकारितरः। माम्। विद्यार्थिनं ब्रह्मचारिणम्। किल। प्रसिद्धौ, निश्चयेन। त्वम्। विद्ये। वनाः। वन संभक्तौ−लेट्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इति आडागमः। त्वं संभजेः, सेवस्व, कामयेथाः। शाखाम्। शाख व्याप्तौ−अच्, टाप्। वृक्षाङ्गविशेषम्। मधुमतीम्। म० १। मधु+मतुप्−ङीप्। मधुररसयुक्ताम् ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (মধোঃ) মধুর রস হইতে (মধুতরঃ) অধিক মধুর (অস্মি) হই (মদুধাৎ) মোদক হইতেও (মধুমত্তরঃ) অধিক মধুর রসযুক্ত হই। (ত্বং) তুমি (মাম্ ইৎ) আমার সহিত ও (কিল) নিশ্চয় (বনাঃ) প্রেম কর। (ইব) যেমন (মধুমতীং) মদ্রর রসযুক্ত (শাখাং) শাখার সহিত প্রেম কর।।

    भावार्थ

    মধুর রস হইতেও আমি মধুর রসযুক্ত হই । যেমন মদুর রসযুক্ত বিদ্যায় বিভিন্ন শাখার প্রতি প্রেম কর আমার প্রতি সেইরূপ প্রেম কর।।
    যথা যতাহি পুরুষঃ শাস্ত্রং সমাধি গচ্ছতি। তথাতথা বিজানাতিবিজ্ঞানং চাস্য রোচতে।। মনু ৪.২০। অর্থাৎ মনুষ্য যতই শাস্ত্র অধ্যায়ন করিতে তাকে ততই সে অধিক বিদ্বান হইতে থাকে এবং বিজ্ঞানে রুচি বৃদ্ধি পাইতে থাকে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    মধোরস্মি মধুতরো মদুধান্মধূমত্তরং । মামিৎ কিল ত্বং বনাঃ শাখাং মধুমতীমিব।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। মধুবনষ্পতিঃ। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (বিদ্যাপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ) বিদ্যা প্রাপ্তির উপদেশ

    भाषार्थ

    (মধোঃ) মধুর রস থেকে আমি (মধুতরঃ) অধিক মধুর (অস্মি) হবো/হই, (মদুঘাৎ) মিষ্টি [বা মিষ্টতাযুক্ত ঔষধি] থেকেও (মধুমত্তরঃ) অধিক মধুর রসবান হবো। (ত্বম্) তুমি (মাম্ ইৎ) আমাকেই/আমার প্রতি (কিল) নিশ্চিতভাবে (বনাঃ) প্রেম করো, (ইব) যেরূপ (মধুমতীম্) মধুর রসযুক্ত (শাখাম্) শাখার সাথে [অনুরাগ করে] ॥৪॥

    भावार्थ

    বিদ্যার রস সাংসারিক সুস্বাদু মিষ্টান্ন আদি রোচক পদার্থ থেকেও বহু রসময় অর্থাৎ অধিক লাভদায়ক এবং উপকারী হয়ে থাকে। যেরূপ ব্রহ্মচারী যত্নপূর্বক বিদ্যার লালসা করেন, তেমনি বিদ্যাও তাঁর প্রতি অনুরাগ করে ॥৪॥ মনু মহারাজ বলেছেন–অ০ ৪ শ্লোক ২০ ॥ যথা যথা হি পুরুষঃ শাস্ত্রং সমধিগচ্ছতি। তথা তথা বিজানাতি বিজ্ঞানং চাস্য রোচতে ॥১॥ যখন যখন পুরুষ শাস্ত্র অধ্যয়ন করতে থাকে, তখন তখন তিনি অধিক বিদ্বান হন এবং বিজ্ঞানে তাঁর রুচি হয়॥

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    भाषार्थ

    (মধোঃ) মধুর থেকেও (মধুতরঃ) অধিক মধুর (মদুঘাৎ) মধুর দোহনকারী মৌচাকের থেকেও (মধুমত্তরঃ) অধিক মধুর (অস্মি) আমি হয়ে গেছি। (মাম্ ইৎ) আমাকে অবশ্য (ত্বম্) তুমি হে মধু মধুররস ! (বনাঃ) প্রাপ্ত হও (ইব) যেভাবে তুমি (মধুমতীম্ শাখা) মধুরশাখারূপ ইক্ষুকে প্রাপ্ত হয়েছো।

    टिप्पणी

    [কিল প্রসিদ্ধৌ। মধুমতী শাখা হলো ইক্ষু অর্থাৎ আখ (মন্ত্র ৫)। মদুঘাৎ=মধুদুঘাৎ, ধুলোপঃ ছান্দসঃ, মধুস্রাবিণঃ পদার্থবিশেষাৎ মধুমত্তরঃ অতিশয়েন মধুমানস্মি (সায়ণ)। মদুঘাৎ = মধুদুহাৎ।]

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Sweet Temperament : Madhu Vidya

    Word Meaning

    My presence should be sweeter than even honey. I should be loved as company as honey is sought for its sweetness. मेरा सानिद्य मधु के समान मीठा हो. मेरे मिठास से सब आकर्षित हों .

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