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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 14
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशागौ सूक्त
    68

    सं हि वाते॒नाग॑त॒ समु॒ सर्वैः॑ पत॒त्रिभिः॑। व॒शा स॑मु॒द्रे प्रानृ॑त्य॒दृचः॒ सामा॑नि॒ बिभ्र॑ती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । हि । वाते॑न । अग॑त । सम् । ऊं॒ इति॑ । सर्वै॑: । प॒त॒त्रिऽभि॑: । व॒शा । स॒मु॒द्रे । प्र । अ॒नृ॒त्य॒त् । ऋच॑: । सामा॑नि । बिभ्र॑ती ॥१०.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं हि वातेनागत समु सर्वैः पतत्रिभिः। वशा समुद्रे प्रानृत्यदृचः सामानि बिभ्रती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । हि । वातेन । अगत । सम् । ऊं इति । सर्वै: । पतत्रिऽभि: । वशा । समुद्रे । प्र । अनृत्यत् । ऋच: । सामानि । बिभ्रती ॥१०.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 10; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ऋचः) स्तुतियोग्य [वेदवाणियों] और (सामानि) मोक्षज्ञानों को (बिभ्रती) रखती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (हि) ही (वातेन) वायु से (उ) और (सर्वैः) सब (पतत्रिभिः) पक्षियों से (सम् सम् अगत) निरन्तर मिली है, और उसने (समुद्रे) अन्तरिक्ष में (प्र) अच्छे प्रकार (अनृत्यत्) अङ्ग फड़काए हैं ॥१४॥

    भावार्थ

    ईश्वरशक्ति ईश्वरवाणी को मानती हुई वायु, पक्षियों और सब लोकों को अन्तरिक्ष में चलाती हुई विराजमान है ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(वातेन) वायुना (सम् सम् अगत) म० १३। निरन्तरं संगतवती (सर्वैः) समस्तैः (पतत्रिभिः) पक्षिभिः (समुद्रे) अन्तरिक्षे (प्र) प्रकर्षेण (अनृत्यत्) अङ्गानि विक्षिप्तवती (ऋचः) स्तुत्या वेदवाणीः (सामानि) अ० ७।५४।१। मोक्षज्ञानानि (बिभ्रती) धारयन्ती। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    सं वातेन

    पदार्थ

    १. (ऋचः) = विज्ञानों को तथा (सामानि) = प्रभुस्तोत्रों को (बिभ्रती) = धारण करती हुई यह (वशा) = वेदवाणी (समुद्रे) = प्रसादयुक्त मनवाले पुरुष में (प्रानृत्यत्) = प्रकर्षेण नृत्य करती है, अर्थात् इस "समुद्र' को ही प्राप्त होती है। (हि) = निश्चय से यह (वातेन) = हृदयान्तरिक्ष में [वा गतौ] गति के संकल्पवाले पुरुष के साथ (सम् अगत) = संगत होती है, (उ) = और (सर्वेः पतत्रिभिः सम्) =सब ऊँची उड़ान लेनेवालों के साथ-ऊँचे उद्देश्यवालों के साथ यह संगत होती है।

    भावार्थ

    वेदज्ञान को प्राप्त करने के लिए हम निर्मल [प्रसन्न] मनवाले हों, हृदय में कर्मसंकल्प से युक्त हों, जीवन में किसी ऊँचे लक्ष्य से प्रेरित होकर चलें।

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    भाषार्थ

    (हि) निश्चय से वशा (वातेन) वायु के साथ (सम् अगत) संगत हुई हुई है, (उ) तथा (सर्वेः) सब (पतत्रिभिः) उड़ने वाले पक्षियों के साथ (सम्) संगत हुई-हुई है। (वशा) वशा माता (समुद्रे) हृदय-समुद्र में (ऋचः सामानि) ऋच्यधिरूढसामगानों को (बिभ्रती) प्राप्त कर (प्र अनृत्यत्) प्रकर्षरूप में नाचती है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र कवितापूर्ण है। जो वशा माता वायु और पक्षियों के साथ संगत हुई उन की रक्षा कर रही है, वह हृदय-समुद्र में भक्तिगानों में मस्त हुई मानो प्रसन्नता में नाचती है। प्रसन्नता इसलिये कि मेरे पुत्र मुझे, निज भक्ति, भेंट में दे रहे हैं]।

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    विषय

    वशा रूप महती शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (सं वातेन सम् आगत हि) वह वशा जब वात=वायु से युक्त होती है तब (सर्वैः पतत्रिभिः सम् उ) समस्त पक्षियों से भी युक्त होती है। वह वशा (ऋचः) ऋग्वेद और (सामानि) सामवेद को (बिभ्रती) धारण करती हुई (समुद्रे प्रानृत्यत्) समुद्र में प्रसन्न होकर नाचती सी है। अर्थात् जब वात या वायु के समान सर्व जीवनाधार राजा से युक्त होती है तब पक्षियों के समान प्रजाजन भी उसके ऊपर रहते हैं। और समुद्र के समान समस्त रत्नों के आश्रय गम्भीर राजा के आश्रय पर ही (ऋचः सामानि) ऋग्वेद के परम विज्ञानों और सामवेद के उपदिष्ट आध्यात्म ज्ञानों को भी धारण करती हुई प्रसन्न होती दिखाई देती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। १, ककुम्मती अनुष्टुप्। ५, पंञ्चपदाति जागतानुष्टुप् स्कन्धोग्रीवी बृहती, ६, ८, १०, विराजः, २३ बृहती, २४ उपरिष्टाद् बृहती, २६ आस्तारपंक्तिः, २७ शङ्कुमती, २९ त्रिपदाविराड्गायत्री, ३१ उष्णिग्गर्भा, ३२ विराट् पथ्या बृहती, २-४, ७, ९, ११-२२, २५, २८, ३०, ३३, ३४, अनुष्टुभः। चतुस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha Gau

    Meaning

    Come together with wind and with all that fly, Vasha, divine mother, dances around in ecstasy across the oceans of the middle space, bearing the Rks and music of the Samans.

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    Translation

    United is she with the wind, united also all the winged creatures; bearing Rk verses and the Sāmans (the-songs) the Vašā dances upon the ocean.

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    Translation

    This Vasha nature’s energy is accompanied by wind, it has with it all the winged—creatures and this bearing the earth and the worlds plays its roles in the space.

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    Translation

    The beautiful power of God, equipped with the Rigveda and Sämavėda rules supreme in the atmosphere, linked with air and all sorts of birds.

    Footnote

    The power of God sustains the air and birds in the atmosphere.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(वातेन) वायुना (सम् सम् अगत) म० १३। निरन्तरं संगतवती (सर्वैः) समस्तैः (पतत्रिभिः) पक्षिभिः (समुद्रे) अन्तरिक्षे (प्र) प्रकर्षेण (अनृत्यत्) अङ्गानि विक्षिप्तवती (ऋचः) स्तुत्या वेदवाणीः (सामानि) अ० ७।५४।१। मोक्षज्ञानानि (बिभ्रती) धारयन्ती। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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