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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशागौ सूक्त
    108

    यया॒ द्यौर्यया॑ पृथि॒वी ययापो॑ गुपि॒ता इ॒माः। व॒शां स॒हस्र॑धारां॒ ब्रह्म॑णा॒च्छाव॑दामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यया॑ । द्यौ: । यया॑ । पृ॒थि॒वी । यया॑ । आप॑: । गु॒पि॒ता: । इ॒मा: । व॒शाम् । स॒हस्र॑ऽधाराम् । ब्रह्म॑णा । अ॒च्छ॒ऽआव॑दामसि ॥१०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यया द्यौर्यया पृथिवी ययापो गुपिता इमाः। वशां सहस्रधारां ब्रह्मणाच्छावदामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यया । द्यौ: । यया । पृथिवी । यया । आप: । गुपिता: । इमा: । वशाम् । सहस्रऽधाराम् । ब्रह्मणा । अच्छऽआवदामसि ॥१०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 10; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (यया) जिस [शक्ति] करके (द्यौः) सूर्य, (यया) जिस करके (पृथिवी) पृथिवी और (यया) जिस करके (इमाः) यह (आपः) प्रजाएँ (गुपिताः) रक्षित हैं, (सहस्रधाराम्) सहस्रों पदार्थों की धारण करनेवाली (वशाम्) [उस] वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (अच्छावदामसि) हम आदर से बुलाते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    हम लोग वेद द्वारा परमेश्वर की सर्वरक्षक शक्ति को यथावत् जानकर अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(यया) शक्त्या (द्यौः) सूर्यः (पृथिवी) (आपः) आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७ (गुपिताः) रक्षिताः (इमाः) दृश्यमानाः (वशाम्) म० २। कमनीयां परमात्मशक्तिम् (सहस्रधाराम्) अ० ७।१५।१। असंख्यपदार्थानां धरित्रीम् (ब्रह्मणा) वेदद्वारा (अच्छावदामसि) अ० ७।३८।३। सत्कारेणाह्वयामः। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    सहस्त्रधारा वशा

    पदार्थ

    १. (यया) = जिस वेदवाणी से (द्यौः) [गुपितः] = द्युलोक अपने में सुरक्षित किया गया है, (यया पृथिवी) = जिससे यह पृथिवीलोक अपने में सुरक्षित हुआ है, (यया) = जिस वेदवाणी से (इमाः आपः) = यह व्यापक अन्तरिक्षलोक (गुपिता:) =  सुरक्षित किया गया है। उस (सहस्त्रधाराम्) = हजारों ज्ञानों का अपने में धारण करनेवाली (वशाम्) = वेदधेनु का (ब्रह्मणा) = ज्ञान के हेतु से (आवदामसि) = हम अच्छी प्रकार से उच्चारण करते हैं।

    भावार्थ

    यह वेदवाणी हमारे लिए 'धुलोक, पृथिवीलोक व अन्तरिक्षलोक'-इन तीनों लोकों का ज्ञान देती है। सहनों ज्ञानों द्वारा हमारा धारण करनेवाली इस वेदवाणी का हम ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से उच्चारण करते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (यया) जिस वशा द्वारा (द्यौः) द्युलोक (यया) और जिस द्वारा पृथिवी, (यया) जिस वशा द्वारा (इमाः) ये (आपः) समग्र जल (गुपिताः) सुरक्षित हैं, उस (वशाम्) वशा का, (सहस्रधाराम्) जोकि हजारों लोक-लोकान्तरों का धारण कर रही है, (ब्रह्मणा) वेद द्वारा या ब्रह्मवेद [अथर्ववेद] द्वारा (अच्छा) अच्छे प्रकार या साक्षात् रूप में (वदामसि) हम कथन करते हैं।

    टिप्पणी

    [वशा= पारमेश्वरी माता]।

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    विषय

    वशा रूप महती शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (यया) जिसने (द्यौः) द्यौलोक को और (यया पृथिवी) जिसने पृथिवी को और (यया इमाः, आपः) जिसने इन समस्त जलों को (गुपिताः) अपने भीतर सुरक्षित रखा हुआ है (ताम्) उस (सहस्रधाराम्) सहस्रों धाराओं वाली, सहस्रों को धारण पोषण करने में समर्थ पदार्थों के प्रवाहों से युक्त उस (वशाम्) अति कमनीय, सब जगत् को वश करने वाली ‘वशा’ को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा हम (अच्छा वदामसि) भली प्रकार वर्णन करते हैं। इयं वै वशा पृश्निः। श० १। ८। ३। १५ ॥ इयं वै पृथिवी वशा पृश्निर्यदिदमस्यां मूलि चामूलिचान्नाद्यं प्रतिष्ठितं तेनेयं वशा पृश्निः। श० ५। १। ३। ३॥ द्यौ और पृथिवी दोनों ही ‘वशा’ हैं। इनमें नाना प्रकार के अन्न, रस प्रतिष्ठित हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। १, ककुम्मती अनुष्टुप्। ५, पंञ्चपदाति जागतानुष्टुप् स्कन्धोग्रीवी बृहती, ६, ८, १०, विराजः, २३ बृहती, २४ उपरिष्टाद् बृहती, २६ आस्तारपंक्तिः, २७ शङ्कुमती, २९ त्रिपदाविराड्गायत्री, ३१ उष्णिग्गर्भा, ३२ विराट् पथ्या बृहती, २-४, ७, ९, ११-२२, २५, २८, ३०, ३३, ३४, अनुष्टुभः। चतुस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha Gau

    Meaning

    We know and with Vedic songs joyously celebrate the generous mother cow by which the heaven of light, by which the earth, and by which these dynamic energies of the universe are sustained in security and balance, the all controlling Cow the gifts of which flow in a thousand streams.

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    Translation

    By whom the heaven, by whom the earth, by whom these waters are well preserved, that vašā (cosmic cow), yielding a thousand streams, we call here with our prayer.

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    Translation

    With the knowledge of the Veda we describe the nature of Vasha, the nature’s controlling energy which possesses hundreds of waps and by which has been preserved heavenly realm, by which has been preserved this earth and by which are preserved these waters.

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    Translation

    We invoke with reverence, through Vedic verses, the beautiful power of God, the sustainer of a thousand objects, by whom the heaven, by whom the earth, by whom these subjects are preserved.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(यया) शक्त्या (द्यौः) सूर्यः (पृथिवी) (आपः) आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७ (गुपिताः) रक्षिताः (इमाः) दृश्यमानाः (वशाम्) म० २। कमनीयां परमात्मशक्तिम् (सहस्रधाराम्) अ० ७।१५।१। असंख्यपदार्थानां धरित्रीम् (ब्रह्मणा) वेदद्वारा (अच्छावदामसि) अ० ७।३८।३। सत्कारेणाह्वयामः। अन्यद् गतम् ॥

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