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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नि उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    35

    यः पृ॑थि॒वींबृह॒स्पति॑म॒ग्निं ब्र॑ह्म॒ वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । पृ॒थि॒वीम् । बृह॒स्पति॑म् । अ॒ग्निम् । ब्रह्म॑ । वेद॑ ॥१०.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः पृथिवींबृहस्पतिमग्निं ब्रह्म वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । पृथिवीम् । बृहस्पतिम् । अग्निम् । ब्रह्म । वेद ॥१०.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 10; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [पुरुष] (पृथिवीम्) पृथिवी [पृथिवी के राज्य] को (बृहस्पतिम्) बड़े-बड़े प्राणियों कारक्षक गुण, और (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूह को (अग्निम्) अग्नि [अग्निसमानतेजोमय] (वेद) जानता है ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रजापालक औरअतिथिसत्कारक होकर वेदज्ञानियों के साथ विराजकर ब्रह्मवर्चसी होवे ॥८, ९॥

    टिप्पणी

    ९−(यः)पुरुषः (पृथिवीम्) भूमिराज्यम् (बृहस्पतिम्) महतां प्राणिनां रक्षकगुणम् (अग्निम्) अग्निवत्तेजोमयम् (ब्रह्म) वेदज्ञानिकुलम् (वेद) जानाति ॥

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    विषय

    पृथिवी+द्यौ [ज्ञान व बल]

    पदार्थ

    १. (इयं वा उ पृथिवी) = यह पृथिवी ही निश्चय से (बृहस्पति:) = बृहस्पति है, (द्यौः एव इन्द्रः) = द्युलोक ही इन्द्र है। जैसे पृथिवी व धुलोक माता व पिता के रूप में होते हुए सब प्राणियों का धारण करते हैं [द्यौष्पिता, पृथिवीमाता], इसीप्रकार बृहस्पति व इन्द्र-ज्ञानी पुरोहित व राजा मिलकर राष्ट्र का धारण करते हैं। २. (अयं वा उ अग्नि:) = निश्चय से यह अग्नि ही ब्रह्म-ज्ञान है और (असौ आदित्यः क्षत्रम्) = वह आदित्य क्षत्र-बल है। ज्ञान ही राष्ट्र को ले-चलनेवाला 'अग्रणी' है। जैसे उदय होता हुआ सूर्य कृमियों का संहार करता है, उसीप्रकार क्षत्र व बल राष्ट्रशत्रुओं का उपमर्दन करनेवाला आदित्य है। ३. (एनम्) = इस व्यक्ति को (ब्रह्म आगच्छति) = ज्ञान समन्तात् प्राप्त होता है। यह (ब्रह्मवर्चसी भवति) = ब्रह्मवर्चसवाला होता है, (य:) = जो (पृथिवीं बृहस्पतिम्) = पृथिवी को बृहस्पति के रूप में तथा अग्निं ब्रह्म-पृथिवी के मुख्य देव अग्नि को बृहस्पति के मुख्य गुण 'ब्रह्म' [ज्ञान] के रूप में वेद-जानता है, ४. (एनम्) = इस व्यक्ति को (इन्द्रियम् आगच्छति) = समन्तात् वीर्य [बल] प्राप्त होता है, तथा यह (इन्द्रवान् भवति) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाला होता है जो (आदित्यं क्षत्रम्) = सूर्य को बल के रूप में तथा (दिव्यम्) = सूर्याधिष्ठान द्युलोक को (इन्द्रम्) = बल के अधिष्ठानभूत राजा के रूप में देखता है।

    भावार्थ

    हम ज्ञान को ही माता के रूप में जानें 'ज्ञानाधिपति, बृहस्पति' पृथिवी के रूप में है। इसका गुण 'ज्ञान' अग्नि है। इसे प्राप्त करके हम ब्रह्मवर्चस्वी हो। बल को हम रक्षक पिता युलोक के रूप में देखें। द्युलोक इन्द्र है तो उसका मुख्य देव आदित्य बल है। इस तत्त्व को समझकर हम प्रशस्त, सबल इन्द्रियोंवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (यः) जो कि (पृथिवीम्) पृथिवी को (बृहस्पतिम्) बृहस्पति और (अग्निम्) अग्नि को (ब्रह्म) ब्रह्म (वेद) जानता तथा तदनुकूल आचरण करता है।

    टिप्पणी

    [ब्रह्म = ब्राह्मधर्म या परमेश्वर]

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    विषय

    व्रात्य का आदर, ब्राह्मबल और क्षात्रबल का आश्रय।

    भावार्थ

    (यः) जो (पृथिवीम् बृहस्पतिम्) पृथिवी को बृहस्पति और (अग्निम् ब्रह्म) अग्नि को ब्रह्म (वेद) जान लेता है (एनं) उसको (ब्रह्म आगच्छति) ब्रह्मबल प्राप्त होता है (ब्रह्मवर्चसी भवति) वह ब्रह्मवर्चस्वी हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ द्विपदासाम्नी बृहती, २ त्रिपदा आर्ची पंक्तिः, ३ द्विपदा प्राजापत्या पंक्तिः, ४ त्रिपदा वर्धमाना गायत्री, ५ त्रिपदा साम्नी बृहती, ६, ८, १० द्विपदा आसुरी गायत्री, ७, ९ साम्नी उष्णिक्, ११ आसुरी बृहती। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Who knows that the earth is Brhaspati and Agni is Brahma, (that is, the social order is an integration of knowledge and power, stability and enlightened movement forward like the radiation of light).

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    Translation

    who knows earth as the lord of knowledge and adorable leader (fire) as the intellectual power.

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    Translation

    Who knows the earth as Brihaspati and fire as Brahma.

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    Translation

    Who considers the rule over Earth as conducive to moral uplift of man¬ kind, and spiritual knowledge as shining like fire.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(यः)पुरुषः (पृथिवीम्) भूमिराज्यम् (बृहस्पतिम्) महतां प्राणिनां रक्षकगुणम् (अग्निम्) अग्निवत्तेजोमयम् (ब्रह्म) वेदज्ञानिकुलम् (वेद) जानाति ॥

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