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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 12
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    41

    कर्षे॑देनं॒ नचै॑नं॒ कर्षे॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कर्षे॑त् । ए॒न॒म् । न । च॒ । ए॒न॒म् । कर्षे॑त् ॥१३.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कर्षेदेनं नचैनं कर्षेत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कर्षेत् । एनम् । न । च । एनम् । कर्षेत् ॥१३.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 13; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अतिथि और अनतिथि के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [गृहस्थ] (एनम्) उस [झूठे व्रात्य] को (कर्षेत्) तिरस्कार करे, (न) अव (च) निश्चय करके (एनम्) उस [मिथ्याचारी] को (कर्षेत्) तिरस्कार करे ॥१२॥

    भावार्थ

    यदि कोई छली-कपटीमिथ्यावादी मनुष्य अपने को सत्यव्रतधारी अतिथि बताकर आजावे, गृहस्थ उस पाखण्डीधूर्त को अवश्य निरादर करके निकाल देवे, और अगले दो मन्त्रों के अनुसार वर्तावकरे ॥११, १२॥

    टिप्पणी

    १२−(कर्षेत्) कृष विलेखने-विधिलिङ्। अवकर्षेत्। तिरस्कुर्यात्।दण्डयेत् (एनम्) कुव्रात्यम् (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१। (च) अवधारणे (एनम्)अव्रात्यम् (कर्षेत्) तिरस्कुर्यात् ॥

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    विषय

    अवात्य अतिथि का भी अनिरादर

    पदार्थ

    १. (अथ) = अब (यस्य गृहान्) = जिसके घर को (अव्रात्य:) = एक अव्रती (व्रात्यब्रुवः) = अपने को व्रती कहनेवाला, नाम (बिभ्रती) = केवल अतिथि के नाम को धारण करनेवाला (अतिथि: आगच्छेत) = अतिथि आ जाए तो क्या (एनं कर्षेत) = इसे खदेड़ दें-क्या इसका निरादर करके भगा दें? (न च एनं कर्षेत्) = नहीं, निश्चय से उसे निरादरित न करें, २. अपितु अतिथि की भावना से ही इसप्रकार अपनी पत्नी से कहे कि (अस्यै देवतायै उदकं याचामि) = इस देवता के लिए उदक [पानी] माँगता हूँ। (इमां देवतां वासये) = इस देवता को निवास के लिए स्थान देता हूँ। (इमाम्) = इस और (इमां देवताम्) = इस देवता को ही (परिवेवेष्यात) = भोजन परोसे। ऐसा करने पर (अस्यै) = इस गृहस्थ का (तत्) = वह भोजन परिवेषणादि कर्म (तस्यां एव देवतायाम्) = उस अतिथिदेव में ही (हुतं भवति) = दिया हुआ होता है। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार अतिथि के महत्त्व को समझता है, वह इस व्रात्यब्रुव को भी भोजन परोस ही देता है और अतिथियज्ञ को विच्छिन्न नहीं होने देता।

    भावार्थ

    अन्नती भी अतिथिरूपेण उपस्थित हो जाए तो उसका निरादर न करके उसे भी खानपान से तृप्त ही करें। अतिथियज्ञ को विच्छिन्न न होने दे।

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    भाषार्थ

    (एनम्) इसे गृहस्थी क्या (कर्षेत्) कष्ट पहुँचाए [अन्नादि न देने से] (न, च, एनम् कर्षेत्) इसे न कष्ट पहुंचाए [अपितु]:-

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Should the householder put him off, or should he not put him off?

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    Translation

    Should he drag him? He may not drag him,

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    Translation

    Should he condemn him or should not condemn him ?

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    Translation

    Should ignore him, and now verily discard such a counterfeit scholar.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(कर्षेत्) कृष विलेखने-विधिलिङ्। अवकर्षेत्। तिरस्कुर्यात्।दण्डयेत् (एनम्) कुव्रात्यम् (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१। (च) अवधारणे (एनम्)अव्रात्यम् (कर्षेत्) तिरस्कुर्यात् ॥

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