अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
ऋषिः - प्रजापति
देवता - याजुषी त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
91
रु॒जन्प॑रिरु॒जन्मृ॒णन्प्र॑मृ॒णन् ॥
स्वर सहित पद पाठरु॒जन् । प॒रि॒ऽरु॒जन् । मृ॒णन् । प्र॒ऽमृ॒णन् ॥१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
रुजन्परिरुजन्मृणन्प्रमृणन् ॥
स्वर रहित पद पाठरुजन् । परिऽरुजन् । मृणन् । प्रऽमृणन् ॥१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
दुःख से छूटने का उपदेश।
पदार्थ
(रुजन्) तोड़ता हुआ, (परिरुजन्) सब ओर से तोड़ता हुआ, (मृणन्) मारता हुआ, (प्रमृणन्) कुचलता हुआ ॥२॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य हैकि जिन रोगों वा दोषों से आत्मा और शरीर में विकार होवे, उनको ज्ञानपूर्वकहटावें और कभी न बढ़ने दें ॥२-४॥
टिप्पणी
२−(रुजन्) विदारयन् (परिरुजन्) सर्वतो विदारयन् (मृणन्) मारयन् (प्रमृणन्) प्रकर्षेण नाशयन् ॥
विषय
रुजन्-मृणन्
पदार्थ
१. माता, पिता व आचार्यों की प्रेरणाओं को न सुनने पर तथा प्रभु-ध्यान को छोड़ने से जीवन की स्थिति विकृत और अतिविकृत हो गई। (रुजन्) = मैंने अपने शरीर को रुग्ण कर लिया। (परिरुजन्) = शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग में मैं शक्तिभंग का कारण बना । जीवन के विलासमय हो जाने से शक्ति-विनाश तो होना ही था। २. (मृणन्) = [to slay] मैं मन के सब उत्तमभावों का हिंसन करनेवाला बना। (प्रमृणन्) = मैंने दिव्यभावों को पूर्णतया नष्ट ही कर डाला।
भावार्थ
प्रभु के ध्यान से तथा 'माता पिता व आचार्य की प्रेरणा से दूर होने पर शरीर व्याधियों का तथा मन आधियों का शिकार हो जाता है।
भाषार्थ
[उपर्युक्त मादक अग्नियों में प्रत्येक मादक-अग्नि] (रुजन्) शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग का तोड़-फोड़ करने वाली है, (परि रुजन्) सब प्रकार के तोड़-फोड़ करने वाली है, (मृणन्) हिंसा करने वाली है (प्र मृणन्) सर्वथा मार देने वाली है। मादक अग्नियां = भिन्न-भिन्न प्रकार की कामाग्नियां।
टिप्पणी
[रुजन्= रुज् भङ्गे; भग्न करने वाली। प्रमृणन् = प्र (प्रकर्षरूप में) मृणन्= मृण्, हिंसायास्]
विषय
पापशोधन।
भावार्थ
(रुजन्) देह को तोड़ने वाला (परि रुजन्) सब प्रकार से देह को फोड़ता हुआ, पीड़ित करता हुआ (मृणन् प्रमृणन्) मारता हुआ, काटता हुआ रोग भी अग्नि है। वह (म्रोकः) अति संतापकारी, (मनोहा) मन का नाशक, चेतना का नाशक, (खनः) शरीर के रस धातुओं को खोद डालने वाला, (निर्दाहः) अति अधिक दाहकारी, जलन उत्पन्न करने वाला, (आत्मदूषिः) अपने चित्त में विकार उत्पन्न करने वाला और (तनूदूषिः) शरीर में दोष उत्पन्न करने वाला ये सब प्रकार के भी संताप ही हैं। (तम्) इस उक्त प्रकार सब संतापक पदार्थों को (इदम्) यह इस रीति से (अति सृजामि) अपने से दूर करता हूं कि मैं (तम्) उस संतापकारी पदार्थ को (मा) कभी न (अभि अवनिक्षि) प्राप्त करूं। मैं उस में डूब न जाऊं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्देवता। १, ३ साम्नी बृहत्यौ, २, १० याजुपीत्रिष्टुभौ, ४ आसुरी गायत्री, ५, ८ साम्नीपंक्त्यौ, (५ द्विपदा) ६ साम्नी अनुष्टुप्, ७ निचृद्विराड् गायत्री, ६ आसुरी पंक्तिः, ११ साम्नीउष्णिक्, १२, १३, आर्च्यनुष्टुभौ त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Crushing, shattering, smashing, destroying ...
Translation
Breaking, shattering, crushing, slaughtering,
Translation
Breaking, breaking down, crushing, crushing to Pieces.
Translation
A malady, that is breaking, breaking down, crushing, crushing to pieces.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(रुजन्) विदारयन् (परिरुजन्) सर्वतो विदारयन् (मृणन्) मारयन् (प्रमृणन्) प्रकर्षेण नाशयन् ॥
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