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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 1 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 1
    ऋषि: - प्रजापति देवता - द्विपदा साम्नी बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    62

    अति॑सृष्टो अ॒पांवृ॑ष॒भोऽति॑सृष्टा अ॒ग्नयो॑ दि॒व्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अति॑ऽसृष्ट: । अ॒पाम् । वृ॒ष॒भ: । अति॑ऽसृष्ट: । अ॒ग्नय॑: । दि॒व्या: ॥१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अतिसृष्टो अपांवृषभोऽतिसृष्टा अग्नयो दिव्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अतिऽसृष्ट: । अपाम् । वृषभ: । अतिऽसृष्ट: । अग्नय: । दिव्या: ॥१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    दुःख से छूटने का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपाम्) प्रजाओं का (वृषभः) बड़ा ईश्वर [परमात्मा] (अतिसृष्टः) विमुक्त [छूटा हुआ] है, [जैसे] (दिव्याः) व्यवहारों में वर्तमान (अग्नयः) अग्नियाँ [सूर्य, बिजुली और प्रसिद्धअग्नि] (अतिसृष्टाः) विमुक्त हैं ॥१॥

    भावार्थ

    वह परमात्मा सब सृष्टिमें ऐसा स्वतन्त्र रम रहा है, जैसे सूर्य, बिजुली, अग्नि, वायु आदि संसार मेंनिरन्तर सर्वोपकारी हैं, सब मनुष्य उस जगदीश्वर की उपासना करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(अतिसृष्टः)स्वातन्त्र्येण विमुक्तः (अपाम्) आपः=आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये, यजुः० ६।२७।प्रजानाम् (वृषभः) वृषु सेचने परमैश्वर्ये च-अभच्, कित्। परमेश्वरः। सर्वस्वामी (अतिसृष्टाः) विमुक्ताः (अग्नयः) सूर्यविद्युत्प्रसिद्धाग्नयः (दिव्याः)व्यवहारेषु भवाः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    The mighty cloud of the waters of life is released, the flood is on the flow, the divine fires of life are released, the lights radiate, ...

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